
कोलकाता दुर्गोत्सव : कभी इनकी खट-खट से गूंजती थी कोलकाता की गलियां, टाइपराइटरों के जीवन को बनाया थीम
कोलकाता. कभी भारत की राजधानी रहे कलकत्ता में ब्रिटिश जमाने से सुबह होते ही गलियों में टाइपराइटरों की खट-खट सुनाई देने लगती थी। अदालत से लेकर बैंक, अस्पताल यहां तक बड़े-बड़े बाजारों की सडक़ों पर भी टाइपिस्ट व टाइपराइटर सुबह से लेकर शाम तक लोगों की जरूरतों को कागजातों पर टाइप करते थे। वह ऐसा दौर था जब टाइपिस्ट की इतनी जरूरत थी कि गलियों में इसकी ट्रेनिंग के बड़े-बड़े कोचिंग सेंटर चला करते थे। लोग बकायदा इसके लिए कोर्स करते थे। कई बड़े कलाकारों ने भी कोलकाता की चित्रकारी की है तो उसमें इन टाइपिस्ट व टाइपराइटरों को विशेष स्थान दिया है। लेकिन समय व पिढ़ी बदलने के साथ-साथ कोलकाता की यह पहचान भी बदल गई है। अब शायद ही कोलकाता के किसी हिस्से में यह नजारा देखने को मिलता होगा। दशकों पहले कोलकाता में दिखाई देने वाले इस नजारे को बेहला फ्रेन्डस क्लब ने अपने पूजा पंडाल का थीम बनाया है।
उक्त पंडाल में एक टाइपराईटर की काल्पनिक कहानी दर्शाने की कोशिश की गई है। जिसका नाम हरिपद्दो है। यहां हरिपद्दो के एक टाइपराइटर होने से लेकर दुर्गा पूजा में अपने गांव में जाकर दुर्गा पूजा के आयोजन करने तक का पूरा चित्रण किया गया है। कलाकार ने काठ के टुकड़े पर बड़ी ही बारीकी से हरिपद्दो को मुख्य द्वार पर बनाया है। वहीं प्रवेश द्वार पर एक बड़ा सा टाइपराइटर भी बनाया गया है। कलाकार ने उक्त थीम के माध्यम से शहर के उस दौर को आज के दौर में दिखाने का प्रयास किया है। उनके अनुसार एक ओर जहां बुजूर्ग इस थीम को देखकर पुराने कोलकाता में खो जाएंगे। मंडप में मां दुर्गा के महिषासुर मर्दिनी रूप को विराजीत किया गया है।
Published on:
04 Oct 2019 07:44 pm
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