
NHM कर्मचारियों की बड़ी मांग! दिवाली से पहले वेतन वृद्धि और Bonus का आदेश जारी करे सरकार...(photo-patrika)
CG Bonus: छत्तीसग्रह के कोरबा जिले में मजदूर हर जगह नियमित कर्मचाररियों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर काम करते हैं। कोल इंडिया के रूख से आउटसोर्सिंग या ठेका कर्मियों की नवरात्री इस साल भी फिकी रहने वाले वाली है। इस बार भी बोनस का लाभ नहीं मिलने वाला है। इससे ठेका मजदूरों में आक्रोश है। एसईसीएल की मेगा प्रोजेक्ट गेवरा, दीपका या कुसमुंडा हो अथवा कोरबा एरिया के अंतर्गत संचालित अंडर ग्राउंड या ओपेन कॉस्ट कोयला खदानें, यहां आउटसोर्सिंग के मजदूरों की भूमिका महत्वपूर्ण है।
CG Bonus: कंपनी दतर और सिविल विभाग में होने वाले सभी कार्य इन्हीं मजदूरों के जरिए होते हैं। कोयला खदान में कोल इंडिया की सहयोगी कंपनी एसईसीएल अपने अधीन काम करने वाली ठेका कंपनियाें से तीनों शिट में आउटसोर्सिंग के मजदूरों से 8-8 घंटे तक काम लेती हैं। इन्हें बोनसे देने से पीछे हट गई है।
कोरबा जिले में 10 हजार से अधिक ठेका मजदूर एसईसीएल की कोयला खदानों में काम करते हैं। गेवरा दीपका में साइलो की देखरेख और संचालन भी ठेका मजदूरों की ओर से किया जाता है। इसके बाद भी कंपनी इन्हें बोनस नहीं दे रही है। इससे इनमें मायूसी है।
कोयला खदानों में काम करने वाले किसी भी नियमित मजदूर का वेतन सवा लाख रुपए मासिक से कम नहीं है। नियमित मजदूर दतर में भी काम करते हैं। इन्हें सभी को कोल इंडिया की ओर से पीएलआर (परफॉर्मेंस लिंक रिवार्ड) दिया जाता है। इसके तहत कंपनी अपनी लाभ में से एक निश्चित राशि नियमित कोयला कर्मचारियों को देती है। मगर ठेका कर्मचारियों को प्रबंधन और यूनियन की सांठगांठ ने बोनस शब्द के पेंच में फंसा दिया है। हाइपॉवर कमेटी की सिफारिश अनुसार मासिक वेतन का हवाला देकर ठेका कर्मचारियों को बोनस नहीं दिया जाता है।
कोयला खदानों में काम करने वाले ठेका मजदूरों को आपने देखा होगा। अफसरों की गाड़ियां चलाने वाले ठेकेदार के ड्राइवर और दतर की साफ सफाई करने वाले सफाई कर्मी या इलेक्ट्रिशियन का काम करने वाले मजदूरों पर नजर गई होगी। मगर कोयला कंपनी इन्हें अपना मजदूर नहीं मानती है। कंपनी ने इस साल भी इन मजदूरों को इंसेंटिव लिंक रिवार्ड (आईएलआर) नहीं देने का निर्णय लिया है।
कोयला खदान में काम करने वाले ठेका कर्मियों को हाईपॉवर कमेटी द्वारा निर्धारित दर पर मासिक वेतन का भुगतान किया जाता है। इसके आधार पर प्रत्येक ठेका कर्मी को हर माह 21 हजार रुपए से अधिक मासिक वेतन प्राप्त होता है। इसी को आधार बनाकर एसईसीएल ने ठेका कर्मियों को बोनस देने से इनकार करती रही है।
खदान में मिट्टी खनन से लेकर कोयला उत्पादन और परिवहन तक में आउटसोर्सिंग कंपनियों की भूमिका महत्वपूर्ण है। कंपनी आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की मदद से 80 फीसदी कोयला खनन करती है। इसके अलावा वाहनों की मरमत, ड्राइविंग, सिविल वर्क और कोल हैंडलिंग प्लांट को संचालित करने में ठेका कर्मचारियों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। लेकिन इन कर्मचारियों को इस बार भी बोनस का लाभ नहीं मिलेगा।
कोल इंडिया की सहयोगी कंपनी एसईसीएल की कोयला खदानों के अलावा अन्य स्थान पर काम करने वाले ठेका मजदूरों की संया लगभग 40 हजार है। इसमें खनन कार्य से ज्यादा ठेका कर्मी गैर खनिक कार्यों से जुड़े हुए हैं। इन्हें बोनस का लाभ नहीं मिलेगा।
बोनस एक्ट के तहत जिन ठेका कर्मियों का मासिक वेतन 21 हजार रुपए से अधिक नहीं है, उन्हें सात हजार रुपए बोनस दिए जाने का प्रवधान है। लेकिन कोयला उद्योग में ठेका मजदूर का वेतन 21 हजार से अधिक है। उन्हें बोनस का लाभ नहीं मिल सकता है।
कोल इंडिया का निर्णय ठेका मजदूरों के साथ अन्याय है। जिस तहत से कोल इंडिया ने अपनी नियमित कर्मचारियों को परफॉर्मेंस लिंक रिवार्ड के दायरे ले आई है। उसी के तहत सभी ठेका मजदूरों को भी इस दायरे में लाने की जरुरत है।
बोनस भुगतान अधिनियम 1965 पूरे भारत में लागू है। इसके तहत प्रत्येक कर्मी बोनस का हकदार है, यदि उसकी मासिक वेतन 21 हजार रुपए से अधिक नहीं है और पिछले वित्तीय वर्ष में 30 दिन तक काम किया है।
इस बार नियमित कर्मचारियों के पीएलआर पर चर्चा से पहले भारतीय मदजर संघ की ओर से ठेका कर्मचारियों के बोनस का मामला उठाया गया था। कोल इंडिया का प्रबंधन केवल माइनिंग एक्टिविटी में काम करने वाले ठेका मजदूरों को इंसेंटिव लिंक रिवार्ड देने पर सहमत हुआ है। इसके तहत खनन कार्य में लगे मजदूरों को एक वेतन दिया जाएगा। खदान या दतर में अन्य स्थान पर काम करने वाले ठेका मजदूरों को इंसेंटिव लिंक रिवार्ड का लाभ नहीं मिल सकेगा।
Updated on:
01 Oct 2024 01:26 pm
Published on:
01 Oct 2024 01:25 pm
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