
कुसमुंडा खदान में लापरवाही! सुरक्षा नियमों की अनदेखी, पिकअप पर मजदूरों की ढुलाई से बढ़ा खतरा(photo-patrika)
Coal Workers: कोल इंडिया और इसकी सहयोगी कंपनियों में नियमित मजदूरों की संख्या लगातार घट रही है। पिछले 20 वर्षों में कोयला खदान में 2 लाख 32 हजार से अधिक नियमित श्रमिक घटे हैं। इसी अवधि में ठेका मजदूरों की संख्या बढ़ी है। मजदूरों की घटती संख्या के मामले में एसईसीएल भी अन्य कंपनियों की तरह ही है। एसईसीएल में वर्ष 2006 में नियमित कर्मचारियों की संख्या 85 हजार 871 थी, जो पहली अप्रैल 2025 को घटकर 37 हजार 523 हो गई है। इस अवधि में एसईसीएल के मेनपावर में 48 हजार 348 नियमित कर्मचारियों की कमी आई है।
मेनपावर की संख्या घटने का सबसे बड़ा कारण नियमित मजदूरों का सेवानिवृत्त होना है। इनके स्थान पर कोयला कंपनी में नए कर्मचारियों की भर्ती नहीं हो रही है और स्थाई नौकरी के अवसर कम हुए हैं। कंपनी से अनुकंपा या भूमि अधिग्रहण के बदले नौकरी दे रही है। जबकि सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों के स्थान पर नई भर्तियां नहीं हो रही है। मजदूरों की संख्या घटने से कोयला कंपनी को जहां आर्थिक लाभ हो रहा है वहीं ठेका मजदूरों को खदान में कंपनी द्वारा निर्धारित दर पर भुगतान प्राप्त नहीं हो रहा है।
एसईसीएल में हर साल ढाई से तीन हजार मजदूर घट रहे हैं। इससे मेनपावर में काफी गिरावट दर्ज की जा रही है। पहली अप्रैल 2018 में एसईसीएल का मेनपावर लगभग 49 हजार था जो अब घटकर 35 हजार 523 पर पहुंच गया है।
कोयला उद्योग में एक तरफ जहां नियमित कर्मचारियों की संख्या लगातार घट रही है वहीं दूसरी ओर ठेका कंपनियों और उसमें काम करने वाले मजदूरों की संख्या बढ़ रही है। कोरबा जिले में स्थित कोल इंडिया की मेगा प्रोजेक्ट, गेवरा, दीपका और कुसमुंडा में ठेका कंपनियों का दबदबा है। कंपनियां कोयला उत्पादन से लेकर मिट्टी हटाने का कार्य कर रही है। छोटी-बड़ी मशीनों की मरम्मत भी आउटसोर्सिंग कंपनियों के पास है। हालांकि कोयला उत्पादन में ठेका मजदूर जितना योगदान दे रहे हैं उसके अनुसार मेहनताना नहीं मिल रहा है।
Published on:
21 Apr 2025 06:04 pm
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