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कोल इंडिया के निदेशक बोले- विदेशी नहीं अब देशी मशीनों से किया जाएगा काम, तैयार हुआ प्लान

Coal India: विदेशी मशीनों की जगह देशी मशीनें लेंगी। इसका निर्माण मेक इन इंडिया के तहत देश के भीतर करने की योजना है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कोल इंडिया के निदेशक (तकनीकी) की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया था।

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Make in India: विदेशी मशीनों की जगह देशी मशीनें लेंगी। इसका निर्माण मेक इन इंडिया के तहत देश के भीतर करने की योजना है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कोल इंडिया के निदेशक (तकनीकी) की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया था।

समिति ने यह अनुमान लगाया गया है कि कोयला 2030 के बाद भी प्रमुख ऊर्जा स्रोत के रूप में बना रहेगा। देश में अगले 10 वर्षों में खुली खदानों और भूमिगत खदानों दोनों के लिए उपकरणों की भारी आवश्यकता होगी।

उसने अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस समिति में भारी उद्योग मंत्रालय, रेल मंत्रालय, एससीसीएल, एनएलसीआईएल, एनटीपीसी, डब्ल्यूबीपीडीसीएल, बीईएमएल, कैटरपिलर, टाटा हिताची, गेनवेल, उद्योग संघ आदि के प्रतिनिधि शामिल थे।

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समिति ने कोल इंडिया की वर्तमान जरुरतों के अनुसार भारी मशीनों के देश में निर्माण पर बल दिया है। सिफारिश की है कि निविदा शर्तों में मेक इन इंडिया मिशन के तहत स्वदेशी उपकरणों के उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए। मेक इन इंडिया के तहत पांच साल के लिए भारत में उपकरण डिजाइन करने, विकसित करने और बनाने के लिए निर्माताओं को प्रोत्साहित करने का सुझाव दिया है।

कोल इंडिया का कहना है कि स्वदेशी उपकरण क्षमताओं को बढ़ावा देने से आयातित उपकरणों की ब्रेकडाउन अवधि में भी कमी आएगी, जो अक्सर स्पेयर पार्ट्स की कमी के कारण गैर-परिचालन में रहते हैं। यह आवश्यक भागों और सामग्रियों पर शुल्क प्रतिबंधों के साथ इंजन, ट्रांसमिशन सिस्टम, डिफरेंशियल और मोटर्स जैसे प्रमुख समुच्चय का निर्माण करके हासिल किया जाएगा।

कोयला खदान में चलने वाली सभी भारी मशीनें विदेशी

कोरबा जिले की ओपेन कॉस्ट खदान में चलने वाली सभी भारी विदेशी हैं। मेगा प्रोजेक्ट में इलेक्ट्रिक शॉवेल्स, हाइड्रोलिक शॉवेल्स, डंपर, क्रॉलर डोजर, ड्रिल, मोटर ग्रेडर और फ्रंट-एंड लोडर व्हील डोजर जैसे उच्च क्षमता वाली मशीनें चल रही हैं। भूमिगत खदानों में भी मशीनें चल रही हैं।

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अभी यह हो रही परेशानी

मेगा प्रोजेक्ट गेवरा, दीपका और कुसमुंडा में कोयला खनन के लिए विदेशों से आयातित भारी मशीनों का इस्तेमाल किया रहा है। इसमें डंपर सबसे अधिक है। कुसमुंडा, गेवरा दीपका में कई मशीनें खड़ी है, जिनका टायर खराब हो चुका है या इंजन में खामी है। हमारे देश में इनके टायर निर्माण नहीं होता है। अब विदेश से टायर मांगी गई। इंजन या मशीन के अन्य हिस्सों में आने वाली गड़बड़ी का सुधार में इंडिया में नहीं होता है। इसके लिए विदेशों से इंजीनियर, मैकेनिक और पार्ट्स मंगानी पड़ती है। इसमें समय और धन दोनों अधिक खर्च होते हैं। देश में मशीनों का निर्माण होने से खनन संबंधित आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सुविधा होगी।