संख्या 50 से डेढ़ सौ तक पहुंची
पिछले कुछ वर्षों में देखा जाए तो हाथियों की संख्या 50 से डेढ़ सौ तक जा पहुंची है। कई बार ऐसी स्थिति से वन विभाग को निपटना पड़ा है जब इतने अधिक हाथियों का झुंड एक महीने तक जंगलों में उत्पात मचाते रहा है। वन विभाग के पास इतने संसाधन नहीं है कि इतने हाथियों के उत्पात से एक साथ निपटा जा सके।
खरीफ फसल के साथ रबी फसल का भी बंपर उत्पादन
कोरबा जिले में खरीफ फसल के साथ रबी फसल का भी बंपर उत्पादन सिर्फ करतला ब्लॉक में होता है। यहां के किसान दोनों फसल लेते हैं। यहां के किसान परेशान हैं। हालांकि मुआवजा अब शासन ने बढ़ा दिया है, लेकिन लगातार चौपट हो रही फसल से किसानों के लिए हर साल ये चिंता का विषय बन चुका है।
रेल कॉरिडोर बनने के बाद स्थिति और खराब होगी
रेल कॉरिडोर बनने के बाद हाथियों के उत्पात को लेकर स्थिति और भी खराब होगी। दरअसल जिस क्षेत्र मेंं लाइन बिछाई जा रही है, वे क्षेत्र हाथी प्रभावित हैं। लाइन बिछने के बाद ये हाथी किस ओर अपना नया रूट बनाते हैं इस पर ग्रामीण चिंता करने लगे हैं।
यही वजह है कोई भी उपाय कारगार नहीं
१. सोलर फेंसिंग कुछ गांव में लेकिन उसका भी लाभ नहीं
कुदमुरा व करतला क्षेत्र में हाथी प्रभावित गांवों को सोलर पॉवर फेंसिंग से सुरक्षित करने तार बिछाए गए थे, लेकिन जितने गांव में काम होना था, वहां पूरा नहीं हो सका है। खासकर हाथियों के रूट में फेंसिग काम नहीं किया गया है, लेकिन जहां लगाए भी गए वहां ये 10 फीसदी भी कारगार साबित नहीं हुए। हाथियों को इससे कोई असर नहीं पड़ा।
इधर हाथियों को भगाने के लिए हुल्ला पार्टी भी कारगार साबित नहीं हो सकी। हर साल इन दल के माध्यम से ग्रामीणों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है। हाथियों के उत्पात की सूचना मिलने पर इन्हें मौके पर भेजा जाता है लेकिन खासकर जब हाथियों की संख्या ५० से अधिक हो जाती है तब ये अमला बेबस नजर आता है।
३.प्रस्तावित अभ्यारण बनने के बाद कुछ हद तक मिलेगा लाभ
हाथियों को एक निश्चित क्षेत्र में रोकने और रहवास के उद्देश्य से लेमरू व कुदमुरा वन परिक्षेत्र में ४००- ५०० वर्ग किलोमीटर में अभ्यारण्य विकसित करने का निर्णय लिया गया था। इसके लिए वनमंडल कोरबा ने राज्य शासन को प्रस्ताव भी भेजा है। २००५ में विधानसभा ने कोरबा समेत सरगुजा, जशपुर व रायगढ़ मेें एलीफेंट रिजर्व हेतु संकल्प पारित कर इसे मंजूरी के लिए केन्द्र सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया। केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने २००७ में प्रोजेक्ट को हरी झण्डी दिखाई थी। २०१० तक राज्य सरकार को इसका क्रियान्वयन करना था। इस बीच अभ्यारण्य के लिए चिन्हांकित क्षेत्र में एक निजी कंपनी को २५५१.४७६ हेक्टेयर क्षेत्रफल में कोल ब्लॉक का आवंटन कर दिया गया। इसके बाद अभ्यारण्य का दायरा कम किया फिर पूरे प्रोजेक्ट को ही ठंडे बस्ते में डाल दिया। अब फिर से सिर्फ लेमरू में अभ्यारण प्रस्तावित किया गया है लेकिन इसके बनने से बहुत अधिक लाभ नहीं मिलेगा।
ये गांव सबसे अधिक प्रभावित
मातमार, गेरांव, कोरकोमा, चिर्रा, बैगामार, तौलीपाली, कुदमुरा, जिल्गा, कटकोना, बरपाली, कलमीटिकरा, गिरारी, कलगमार, तराईमार, सोलवा, बासीन, धौराभाटा, सलिहाभाठा, बोतली, बासिन, मदनपुर, कोरकोमा, बुंदेली, आमाडांड, चचिया, सुखरीकला समेत 34 गांव शामिल हैं।