
कोटा . नगरीय परिवहन के कॉमर्शियल परमिट से बचने के लिए कोटा में निजी बस संचालकों ने प्रशासन की आंखों में धूल झोंकने का 'धंधा चला रखा है। इसके जरिए लाखों रुपए के राजस्व की चोरी की जा रही है। यह सब आला अधिकारियों की जानकारी में होने के बाद भी सभी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं।
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परिवहन विभाग ने शहर में यात्रियों को आवागमन की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए 17 रूट पर कुल 254 बसों को परमिट जारी किए, लेकिन इनमें से 220 निजी सिटी बसें सड़कों से गायब हैं। शहर में लोगों को नगरीय परिवहन की सुविधा उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है, ताकि वाहनों का दबाव नहीं बढ़े और यात्रियों को भी शहर में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने-आने में कोई परेशानी नहीं हो।
इसके लिए परिवहन विभाग सिटी बसों को परमिट जारी करता है, लेकिन बस मालिक नगरीय परिवहन का परमिट लेकर इन बसों को अन्य कॉमर्शियल गतिविधियों में लगा देते हैं। मसलन स्कूल और कोचिंग संस्थानों में अधिकांश बसें लगी हुई हैं, लेकिन यह बसें वहां भी नियम नहीं मान रही।
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स्कूल बसों के लिए उच्चतम न्यायालय की अलग गाइड लाइन है, जिसे ये बसें नहीं मानतीं। टैक्स और सरचार्ज चुकाने के बाद बस मालिकों को सिटी बस का तीन महिने का परमिट करीब 2500 रुपए महीने में मिल जाता है, लेकिन वाणिज्यिक संस्थानों और निजी आयोजनों में बुकिंग कराने का परमिट लेने के लिए हर महीने 12,500 रुपए से ज्यादा का कर चुकाना पड़ता है। टैक्स के इस अंतर के कारण ही अफसरों की मिलीभगत से यह अनदेखी चल रही है।
मिलीभगत से गुम स्टॉपेज
कोई भी रूट तय करने के बाद परिवहन विभाग सबसे पहले उस रूट पर पडऩे वाले बस स्टॉपेज चिह्नित करता है। जहां बसों के आने और जाने का समय सार्वजनिक तौर पर लिखवाया जाता है, लेकिन बस मालिकों की मिलीभगत के चलते परिवहन विभाग ने न तो कभी सिटी बसों के स्टॉपेज सार्वजनिक किए, न ही कहीं बसों के आने-जाने का समय लिखवाया।
आरटीओ को है सब खबर
परिवहन विभाग के अधिकारियों को शहर की सड़कों से सिटी बसें लापता होने की पूरी जानकारी है। परिवहन विभाग के अधिकारी खुद ही बताते हैं कि बस मालिक सिटी परमिट वाली बसों को तय रूट पर चलाने की बजाय स्कूल और कोचिंगों में लगा देते हैं। परमिट देने के बाद यात्रियों को सुविधा मिल रही है या नहीं यह जानने के लिए परिवहन विभाग में रूट पर नियमित जांच का नियम है, लेकिन ऐसी जांच कभी नहीं होती।
ये है सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन
एडवोकेट विवेक नंदवाना ने बताया कि उच्चतम न्यायालय ने स्कूल बस के सम्बन्ध में गाइड लाइन जारी की है। इसके तहत प्रत्येक स्कूल बस पर स्कूल बस लिखा होना चाहिए। यदि स्कूल बस को किराए पर लिया हुआ है तो ऐसी स्थिति में ऑन स्कूल ड्यूटी लिखा जाना चाहिए। बस में फ स्र्ट एड बॉक्स हो, बस की खिड़की में लोहे की जाली हॉरिजेंटल हो, अग्निशमन यंत्र हो, बस पर स्कूल का नाम एवं टेलीफोन नम्बर लिखा हो, स्कूल बैग्स रखने के लिए सीट के नीचे व्यवस्था हो।
बस में एक तीमारदार हो। रफ्तार चालीस किमी प्रतिघंटा से ज्यादा नहीं हो। बस में स्पीड गर्वनर लगा हो। यदि स्कूल बस में सवार बच्चों की उम्र 12 वर्ष तक या इससे कम है तो यान की सवारी क्षमता से पचास प्रतिशत से ज्यादा बच्चों को नहीं बैठाया जाना चाहिए, लेकिन बच्चों की उम्र 12 वर्ष से ज्यादा है तो प्रत्येक बच्चा एक सवारी माना जाएगा। ऐसी बस के वाहन चालक की वर्दी में हल्के नीले रंग की शर्ट, इस रंग की पेंट एवं काले रंग के जूते शामिल हैं। उसके शर्ट पर उसका नाम का बैज होना चाहिए। स्कूल बस की छत पर या साइड पर स्कूल बैग्स, वाटर बॉटल आदि नहीं लटकाई जानी चाहिए। प्रत्येक बच्चे का नाम एवं पूर्ण विवरण, जिसमें बच्चे का रक्त समूह भी सम्मिलित है और उसे कहां से बैठाया जाता है आदि सूची की जानकारी वाहन चालक को रखनी होगी। स्कूल बस का कलर पीला रहेगा और इस पर एक पट्टी पर चारों तरफ स्कूल कैब लिखा जाएगा।
इनका कहना
प्रादेशिक परिवहन अधिकारी धर्मेन्द्र चौधरी ने बताया कि शहर में जारी सिटी बसों के परमिट पर 100 से 125 बसें चल रही हैं। कई बसें हैं, जो स्कूल में चल रही है तो उनके पास स्कूल या कॉलेज का लेटर होता है। इसमें बच्चों को लेने व छोडऩे के लिए बस की जरूरत होने की बात होती है। इस पर उन्हें वहां चलने का अधिकृत परमिट दिया जाता है।
Published on:
23 Apr 2018 10:37 am
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