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गौर से देखिए: कचरापात्र नहीं, ये तो ऐतिहासिक धरोहर है

कचरापात्र बनी रियासतकालीन बावडिय़ां, संरक्षण नहीं मिल पाने से हुई दुर्दशा। इन्हें पहचान पाना भी हो गया मुश्किल।

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कोटा

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ritu shrivastav

Nov 03, 2017

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कचरापात्र बनी रियासतकालीन बावडिय़ां

रियासतकालीन बावडिय़ां व जलस्रोतों को भी संरक्षण नही मिल पाया। कस्बे के कई जलस्रोतों को संवारने के बजाय कचरा पात्र बना डाला। संरक्षण नहीं मिल पाने से जल देने वाले स्रोतों बावडिय़ां व कुओं का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है। कस्बे के मध्य स्थित गढ़ की बावड़ी दो दशक पूर्व तक आधे कस्बे का पनघट हुआ करती थी। आज भी इसमें अथाह पानी है। जब से जलप्रदाय योजना शुरू हुई और लोग नलों पर निर्भर कर दिए उसके बाद तो कूड़ादान बनाकर मीठा पानी भी प्रदूषित कर डाला। कभी आधे शहर की प्यास बुझाने वाली इस बावड़ी की कोई सुध नहीं ले रहा। दीवारों से धीरे-धीरे पत्थर, चूना व सीमेंट खिसकते जा रहे हैं। पूर्व दिशा की दीवार का आधा हिस्सा तो बावड़ी में गिर चुका है।

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बावड़ी से ही कस्बे में जलापूर्ति की जाती थी

शम्भू बाग में स्थित बावड़ी को भी संरक्षण की दरकार है। यह बावड़ी भी कस्बे के लोगों के लिए पेयजल का प्रमुख स्रोत हुआ करती थी।
1965 में नैनवां में जलप्रदाय योजना स्वीकृत हुई थी तो इस बावड़ी से ही कस्बे में जलापूर्ति की जाती थी। आधा कस्बा इसी बावड़ी से प्यास बुझाया करता था। बीस वर्ष तक कस्बे की प्यास बुझाने के बाद 1985 से नैनवां को पाईबालापुरा पेयजल योजना से जलापूर्ति होने लगी तो बावड़ी की सुध लेना ही छोड़ दिया।

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बना दिए कूड़े करकट के कुण्ड

गढ़पोल दरवाजे के पास कनकसागर के किनारे तथा चौपरज्या में नवलसागर के किनारे कुण्डों का निर्माण कराया था। पांच सदी पुराने इन कुण्डों को भी संरक्षण नहीं मिल पाया। दोनों ही कुण्डों की आधी से ज्यादा सीढिय़ां तो कचरे से अटी पड़ी है। संरक्षण नहीं मिला तो नैनवां के तालाब की पाल पर स्थित पांच सौ वर्ष पुरानी बावड़ी तालाब में समा चुकी है। अब बावड़ी के नामोनिशान के नाम पर मिट्टी का एक टीला ही अवशेष के रूप में रह गया है। तालाब के सूखने पर बावड़ी लबालब रहती थी। अब पानी का संकट होने लगा है तो लोगों को यह बावड़ी याद आने लगी है।

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इनको भी बचाओ

कनकसागर तालाब के अन्दर सलावट, फकीरों, कपूरजी, गुलरिया घाट, तीज का चबूतरा के पास की, पनवाड़ा के पास की दो, नीलकंठ महादेव के पास बेवरियो, चन्दा प्रभूजी का कुआं, हीरामनजी के पास का कुआं, द्वारिकाधीश व बागरियों की बगीची में कुई का निर्माण हो रहा है तो नवलसागर में गोपाल बेवरी, ब्रह्मï बेवरी, माताजी की बेवरी, गणेश बेवरी, उंडा घाट की बेवरी, बादलिया बाग की बावड़ी व मोती कुआं खुदा हुआ है। सभी मलबे से भरे पड़े हैं।