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गढ़ में बेचैनी, भाजपा के दिग्गजों की धड़कनें तेज

चुनावी दौड़ से पहले ही इस बार भाजपा नेताओं की बेचैनी बढ़ गई है

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RajasthanElection

विधानसभा चुनाव कार्टून

रणजीत सिंह सोलंकी

कोटा. पिछले चुनाव में हाड़ौती ने 17 में से 16 सीटें भाजपा की झोली में डाली थी। इस बार चुनावी रणभेरी के साथ ही दोनों दलों के दिग्गज नेताओं की भी धड़कनें बढ़ गई है। चुनावी दौड़ से पहले ही इस बार भाजपा नेताओं की बेचैनी बढ़ गई है।
टिकट कटने की चर्चाओं के बीच भाजपा के मौजूदा विधायक अपनी जमीन मजबूत करने में लगे हुए हैं। वहीं दावेदारों ने ताल ठोक रखी है। दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूक कर पीने की कहावत कांग्रेस के दिग्गज नेताओं पर चरितार्थ हो रही है।
वसुंधरा राजे ने दो बार बतौर मुख्यमंत्री हाड़ौती का प्रतिनिधित्व किया है। लेकिन मौजूदा सरकार में कोटा जिले से किसी भी विधायक को मंत्री नहीं बनाने का मुद्दा पूरे पौने पांच साल ही चर्चा में रहा। चुनावी आहट के बीच मौजूदा सरकार में मंत्री प्रभुलाल सैनी और बाबूलाल वर्मा बेचैन है। दोनों ही मंत्रियों की निगाह दूसरी सीटों पर बताई जा रही है। कांग्रेसी नेता इस बार मजबूती से जुटे हैं। आचार संहिता लागू होने से पहले ही क्षेत्र में मतदाताओं को साध रहे हैं। पिछली बार हिंडोली सीट कांग्रेस के खाते में गई थी।

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झालरापाटन विस क्षेत्र
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का गृहजिला झालावाड़ है। इस कारण कांग्रेस भी झालावाड़ में मुख्यमंत्री को घेरने की रणनीति बनाने में जुटी है। मुख्यमंत्री के पुत्र दुष्यंतसिंह लगातार दो बार झालावाड़-बारां संसदीय क्षेत्र से सांसद निर्वाचित हुए हैं।

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अंता विधानसभा क्षेत्र
भाजपा ने प्रदेश में 2013 के चुनाव का आगाज बारां जिले की अंता विधानसभा क्षेत्र से किया था। भाजपा की तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष राजे ने तब यहां ऐलान किया था कि यदि पार्टी अंता जीत गई तो पूरा प्रदेश हमारा होगा।
यहां से पार्टी ने नामांकन के ऐनवक्त पर प्रभुलाल सैनी को चुनावी जंग में उतारा था। सैनी ने कांग्रेस से पूर्व मंत्री रहे प्रमोद जैन भाया को शिकस्त दी थी। इस बार अंता सीट को लेकर भाजपा ने बेचैनी है। सैनी के यहां से चुनाव नहीं लडऩे की राजनीतिक गलियारों में चर्चा है। सैनी हर बार नए क्षेत्र से चुनाव लडऩे में माहिर माने जाते हैं। इस सीट से हार-जीत को मुख्यमंत्री और दुष्यंतसिंह की प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाता है।

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कोटा दक्षिण विधानसभा

कोटा दक्षिण विधानसभा सीट पर अभी तक कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला है। इस सीट से दो बार ओम बिरला विधायक निर्वाचित हुए। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में बिरला को पार्टी में कोटा-बूंदी संसदीय क्षेत्र से वे विजयी हुए। इसके बाद हुए उप चुनाव में भी यह सीट भाजपा के ही खाते में गई और यहां से संदीप शर्मा विधायक निर्वाचित हुए। 2014 में हुए उपचुनाव में भाजपा केवल कोटा दक्षिण सीट पर ही जीत सकी थी।

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कोटा उत्तर और सांगोद विधानसभा
कोटा उत्तर विधानसभा क्षेत्र पर भी प्रदेश के नेताओं की निगाह है। कांग्रेस शासन में शहरी विकास के लिए भले ही पूर्व मंत्री शांति धारीवाल को लोग याद करते हैं, लेकिन पिछले चुनाव में इस सीट से धारीवाल हार गए थे। इस बार धारीवाल कोई रिस्क नहीं लेना चाहते हैं। लगातार क्षेत्र में सक्रिय हैं। विधायक प्रहलाद गुंजल भी अपनी जमीन बचाने की मशक्कत में जुटे हैं। सांगोद विधानसभा क्षेत्र में पिछली बार पराजित हुए पूर्व मंत्री भरतसिंह की सक्रियता से भाजपा नेता बेचैन है।

अहम मुद्दे
कोटा में औद्योगिक ठहराव आ गया है। उद्योग एक-एक बंद हो रहे हैं। बंद उद्योग चालू हो, नए उद्योग लगे।
चंबल के नहरी तंत्र को मजबूत किया जाए, टेल के हर खेत में पानी पहुंचे।
केशवरायपाटन सहकारी चीनी मिल का पुनर्संचालन हो।
परवन वृहद सिंचाई परियोजना पूर्ण हो।
लहसुन, धनिये, संतरे आदि के प्रसंस्करण उद्योग लगे।
स्मार्ट मीटर नहीं लगे, जो लगा दिए गए है उन्हें हटाया जाए।