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कोटा शहर की जनता ने 3 साल पहले नगर निगम चुनाव में विकास के नाम पर भाजपा को वोट देकर बोर्ड बनवाया। उस समय जनता को जो सपने दिखाए गए, वो जमीन पर सच नहीं हो सके। वादों में 'क्लीन कोटा-ग्रीन कोटा' का सुनहरा सपना भी साकार नहीं हो सका, व्यवस्थाएं उल्टे बिगड़ गई। तीन साल में कोटा को स्मार्ट सिटी का तमगा तो मिल गया, लेकिन दशहरा मैदान के विकास के अलावा गिनाने लायक एक भी बड़ी उपलब्धि नहीं। गंदगी से फैला बीमारियों का प्रकोप जानलेवा साबित हुआ। कई हंसते-खेलते परिवारों की खुशियों को इन बीमारियों ने निगल लिया। आवारा मवेशियों का आतंक इतना बढ़ा कि कई जिन्दगियां भेंट चढ़ गई। अतिक्रमण व अवैध निर्माण काबू होने की जगह बढ़ते ही गए। महापौर महेश विजय ने तीन साल पहले 26 नवम्बर 2014 को शहर के मुखिया का ताजा पहना था। पत्रिका ने पहले साक्षात्कार में महापौर से शहर के विकास और निगम के कामकाज को लेकर विजन जाना था, उन्होंने पांच साल के विकास का खाका रखा था। महापौर के वादे कितने धरातल पर उतरे और कितने हवाई साबित हुए, पेश है उस पर रणजीत सिंह सोलंकी की रिपोर्ट...।
एक मंच पर तय होगा काम
वादा: महापौर ने कहा था कि सभी 65 पार्षद निगम परिवार के सदस्य हैं। जनप्रतिनिधियों से लेकर पार्षदों को साथ लेकर सामंजस्य से काम करेंगे। खींचतान के लिए कोई जगह नहीं रहेगी। मिलकर विकास के लिए काम करेंगे। हकीकत: पार्षद विधानसभावार बंट गए। विकास की बात आती है तो खींचतान शुरू हो जाती है। पार्षद धड़े में बंटे हैं। निगम या शहर से संबंधित कोई मुद्दा आता है तो पार्षद अलग-अलग दिशा में भागते हैं। महपौर और पार्षदों के बीच तालमेल नहीं बैठ पाया है। कई बार सार्वजनिक विवाद की बातें सामने आई हैं। माहापौर का दावा: मैं हमेशा सभी पार्षदों को साथ लेकर चलता हूं। पार्षद भी मुझे पूरा सहयोग देते हैं। कोचिंग पर लगाए टैक्स को लेकर पार्षदों ने मुझे अवगत कराया तो अधिकारों का प्रयोग करते हुए तत्काल वापस ले लिया।
स्मार्ट सिटी की पिक्चर अब भी डर्टी
वादा: महापौर ने प्राथमिकता में शहर को क्लीन और ग्रीन सिटी बनाने की बात कही थी। बोलो था एक-एक गली में जाकर व्यवस्थाएं देखेंगे और वहां कैसे सफाई हो सकती है, इस दिशा में काम करेंगे। हकीकत:स्वच्छ भारत मिशन के तहत शहर को साफ सुथरा बनाने की बड़ी-बड़ी बातें हुई। केन्द्र सरकार ने सफाई के संसाधन खरीदने के लिए पर्याप्त बजट दिया, लेकिन इस बजट को अन्य मदों पर खर्च कर दिया। शहर आज भी गंदगी-कचरे की समस्या से जूझ रहा है। महापौर का दावा: 24 वार्डों में डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण के टेण्डर जारी कर दिए। नवाचारों से सफाई व्यवस्था सुधारने का प्रयास। टिपर से कचरा उठाने की व्यवस्था की। 100 नए टिपर जल्द खरीदेंगे। नालों को 150 करोड़ से विकसित करेंगे।
ये सड़क सम्राट... जब चाहें ले लेते जान
वादा: नगर निगम चुनाव में भाजपा नेताअों ने आवारा मवेशियों कह समस्या को बड़ा मुद्दा बनाया था। महापौर ने आवारा मवेशियों की समस्या से स्थायी रूप से निजात दिलाने की बात कही थी। हकीकत:आवारा मवेशियों की समस्या जानलेवा साबित हो रही है। पिछले छह माह में दस लोगों की अकाल मौत हो चुकी है। इस समस्या को कोई समाधान नहीं हुआ है, बल्कि यह विकराल रूप लेते जा रही है। निगम को भी कोई समाधान नजर नहीं आ रहा। महापौर का दावा: बंधाधर्मपुरा गोशाला का विस्तार किया गया। करीब 15 सौ अतिक्ति गोवंश रखने की व्यवस्था की गई। नई गोशाला बनाने के लिए कल ही जिला कलक्टर की उपस्थिति में न्यास से समझौता हुआ है। इसमें 5 हजार गोंवश रखे जा सकेंगे।
देखभाल के अभाव में बने पार्किंग स्थल
वादा: शहर को ग्रीन सिटी के रूप में विकसित किया जाएगा। शहर में प्लांटेशन जोन बनाए जाएंगे, जहां अलग-अलग तरह के छायादार पौधे लगाए जाएंगे। शहर के पार्कों को विकसित किया जाएगा। हकीकत: शहर को हरा-भरा बनाने के प्रयास किए, लेकिन देखभाल के अभाव में हरियाली विकसित नहीं हो सकी। निगम क्षेत्र के कई पार्क बदहाल हैं। अमृत योजना में ग्रीन स्पेस विकसित करने के लिए बजट भी आया, लेकिन उप महापौर के वार्ड के पार्क के अलावा काम शुरू नहीं हो पाया। महापौर का दावा: निगम ने शहरभर में 10 हजार बड़े पौधे लगाए हैं। विभिन्न संस्थाओं को पौधे लगाने के लिए 4 हजार ट्री-गार्ड उपलब्ध करवाए हैं। अमृत योजना में पार्कों को नए सिरे से विकसित किया जा रहा है। ग्रीनबेल्ट भी विकसित की जा रही है।
नाली-पटान में ही उलझा रहा कार्यकाल
कोटा शैक्षणिक नगरी है। शैक्षणिक माहौल और बेहतर बनाएंगे। मास्टर प्लान के आधार पर निगम की ओर से शहर के विकास का विजन डॉक्यूमेंट तैयार करवाएंगे। हकीकत: भाजपा बोर्ड पिछले तीन साल में नाली-पटान के विकास को लेकर ही उलझा रहा। विकास की बातें तो हुई, लेकिन जमीनी हकीकत से दूर रहा। विजन डॉक्यूमेंट तैयार करने की बात हवाई साबित हुई। इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किए। महापौर का दावा: विकास के लिए समन्वित प्रयास किए जा रहे हैं। जनप्रतिनिधियों व यूआईटी के साथ विकास की दिशा में काम किए जा रहे हैं। स्मार्ट सिटी में एरोड्रम सर्किल पर फ्लाईओवर बनाने की कोशिश करेंगे। दादाबाड़ी फ्लाईओवर का सुझाव हमारा था।
3 सालों में शहर की उपलब्धियां, विफलताएं, नवाचार भूले, विवाद और सपने
उपलब्धियां: कोटा का चयन स्मार्ट सिटी में हुआ। दशहरा मैदान का प्रगति मैदान की तर्ज पर विकास शुरू। नगरीय परिवहन सेवा शुरू करना। विफलताएं: अतिक्रमण की समस्या से नहीं मिली निजात। आवारा मवेशियों की समस्या जानलेवा बनी। शहर की सफाई व्यवस्था में अब तक फिसड्डी। नवाचार भूले: पहली बार पत्रिका की पहल पर बोर्ड का तीन दिवसीय विशेष सत्र का आयोजन, इसमें पार्षदों ने समस्याएं उठाई उनका सदन में समाधान भी हुआ। सूखा और गीला कचरा संग्रहण करने के लिए एसएलआरएम प्रोजेक्ट शुरू किया गया। प्रायोगिक रूप से कुछ दिन चलने के बाद बंद। साइकिलिंग शेयर प्रोजेक्ट शुरू हुआ, कुछ दिन कोचिंग क्षेत्र में अच्छा संचालन हुआ है, लेकिन अब संचालन नहीं हो रहा। विवाद: महापौर और अधिकारियों में तालमेल नहीं। कोचिंग पर सफाई शुल्क पर विवाद उठा, पलटा फैसला। राजनीतिक दखलअंदाजी से अधिकारी परेशान। सपने: सभी वार्डों में डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण। कचरे से बिजली बनाने की योजना। पांच हजार क्षमता की नई गोशाला बनाएंगे।
Published on:
25 Nov 2017 12:48 pm
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