
CRPF Commandant cheetah gives success Tips to coaching students
फरवरी में आतंकियों से मुठभेड़ और जिंदगी व मौत के संघर्ष में जीतने के बाद शुक्रवार को चीता पहली बार अपनी जन्मभूमि कोटा लौटे। देश के हर हिस्से से कोटा में कोचिंग करने आए छात्रों से चीता ने सीधा संवाद किया। इंद्रा बिहार स्थित एलन करियर इंस्टीट्यूट में कमांडेंट चीता ने विद्यार्थियों से संवाद किया और उनके सवालों के जवाब दिए। इस दौरान जयघोष के बीच चीता, उनके पिता रामगोपाल, पत्नी उमा, भाई प्रवीण व उनके बच्चों का जोरदार स्वागत किया गया। चेतन ने विद्यार्थियों को सकारात्मक सोच रखने तथा अभिभावकों का सम्मान करने की शपथ भी दिलाई।
जिंदादिली से पढ़ाए 5 बड़े सबक- पहला सबक हौसला
छात्रों ने जब चेतन चीता से पूछा कि ठीक होने के बाद 'आई एम रॉकिंग...' कहने का क्या कारण था ? तो उन्होंने कहा कि सेना में जिम्मेदारी का बड़ा महत्व है। अस्पताल से डिस्चार्ज हुआ तो जवानों को संदेश देना चाहता था कि आतंकियों ने मेरे शरीर को घायल किया है लेकिन मेरे हौसले नहीं तोड़ पाए। इसीलिए कहा था 'आई एम रॉकिंग'।
दूसरा सबक बुलंदी का
चेतन चीता से जब छात्रों ने पूछा कि कैसे खुद को दृढ़ रखते हैं ? तो उसके जवाब में उन्होंने कहा कि हर परिस्थिति में खुद को शामिल करने की कोशिश करता हूं। हर बात में जवानों के साथ रहता हूं। उनका हौसला बुलंद रहता है और मैं दृढ़ रहता हूं।
तीसरा सबक अनुशासन का
कोचिंग छात्रों ने जब उनसे पूछा कि आप घर से दूर रहते हैं और हम बच्चे भी, क्या करना चाहिए ? तो उसके जवाब में चेतन चीता ने कहा कि आर्मी की सर्विस में कड़ी ट्रेनिंग होती है। मेहनत करना, खाना, बात करना, चलना सिखाया जाता है। आपके साथ भी यही है। 16-17 साल की उम्र में जो डिसिप्लीन सीखा है, उसे मैच्योर करें, फिर कोई भी परीक्षा हो, सक्सेस पाएंगे।
चौथा सबक जुनून
कोटा में पढ़ रहे विद्यार्थियों ने जब चीता से पूछा कि कोटा में पढऩा भी एक मिशन है, क्या मार्गदर्शन देंगे ? तो उन्होंने कहा कि मैं खुद पढ़ाई से भागता था। पापा कहते थे कि कंसन्ट्रेट करो लेकिन मेरी स्पोट्र्स में रूचि थी। फौज में आने के बाद लाइफ बदल गई। कश्मीर, नॉर्थ ईस्ट और पश्चिमी में चुनौतियों को देखा। जितनी बार तकलीफें आई, जिंदगी के लिए प्यार बढ़ता गया। स्टूडेंट्स भी ध्यान रखें, लाइफ एक मिशन है और बहुत कुछ करना बाकी है। कर्म करते चलें, हर मिशन पूरा होगा।
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पांचवा सबक बनें आत्मनिर्भर
छात्रों ने जब चेतन चीता से पूछा कि तनाव से कैसे बाहर आते हैं ? तो उसका बड़ी खूबसरती से जवाब देते हुए कहा कि जब मैं कोबरा बटालियन में था, महाराष्ट्र के गढ़चौली में मलेरिया बहुत होता है। सैनिकों की मौत भी हो जाती है। हम ऑफिसर होने के कारण खुद को जिम्मेदार मानते हैं, परेशान भी होते हैं, लेकिन इन परिस्थितियों में भी अपना श्रेष्ठ देने का प्रयास करते हैं। स्टूडेंट्स को भी आत्मनिर्भर बनना चाहिए। यदि आप आत्मनिर्भर हो गए तो जीवन में फैसले लेने सीख जाओगे और हर तनाव से बाहर आने में सक्षम हो जाओगे।
सड़क का पत्थर उठाना भी देश सेवा
चेतन चीता ने छात्रों को समझाया कि फौज में भर्ती होकर ही देश की सेवा नहीं की जा सकती। सड़क पर पत्थर उठाकर एक और रख देना भी राष्ट्रीय सेवा है। फौज से बेहतर कोई जगह नहीं।
Published on:
02 Dec 2017 12:47 pm
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