
दम्पती हत्याकांड: मृत्युदंड से पहले अदालत की हत्यारे पर सख्त टिप्पणी, अपराध हृदय विदारक, मौत से कम सजा तो न्याय के उद्देश्य विफल
कोटा. राजेन्द्र अग्रवाल दम्पती हत्याकांडमें फैसला सुनाते हुए न्यायाधीश राजीव कुमार बिजलानी ने निर्णय में टिप्पणी भी की। न्यायाधीश ने टिप्पणी में लिखा कि मृतक दम्पती रात में अकेले रहते थे। उनकी सुरक्षा के लिए अन्य कोई व्यक्ति नहीं रहता। उनका एकमात्र पुत्र गुडगांव में रहकर सीए की पढ़ाई कर रहा था। मृतक वृद्ध व असहाय थे एवं स्वयं की रक्षा करने में सक्षम नहीं थे। ये सब जगदीश को इसलिए मालूम था, क्योंकि वह उनका चालक था। उसे चालक होने व मृतकों का उस पर विश्वास होने की वजह से ये जानकारियां थी। उसने विश्वास का दुरुपयोग किया। जगदीश के मन में जरा सी भी दया की भावना होती तो वह ऐसी नृशंस हत्या नहीं करता। ऐसा कृत्य केवल परिवार विशेष के प्रति विश्वास की भावना को ही ठेस नहीं पहुंचाता, वरन सम्पूर्ण समाज में उनके यहां काम करने वाले लोगों के प्रति अविश्वास की भावना पैदा करता है कि कभी भी ऐसा अपराध उनके साथ भी किया जा सकता है।
अभियुक्त मृतकों का चालक रहा। ऐसे में उसका घर उनकी तनख्वाह से ही चलता था, लेकिन इसके बावजूद लेशमात्र की दया भावना अपने नियोजनकर्ता के प्रति पैदा नहीं हुई एवं जघन्य प्लानिंग करते हुए उनकी हत्या ( Murder ) कारित की। मृतकों की जगदीश व परिवार से कोई दुश्मनी नहीं थी, न ही उन्होंने जगदीश को गंभीर या अचानक प्रकोपन दिया और न ही जगदीश ने क्रोध या आवेश में ये कृत्य किया। अपराध अति गंभीर जघन्य प्रकृति का हृदय विदारक है एवं अभियुक्त द्वारा समाज विरोधी प्रकृति का है।
दम्पती की क्रूरता व बर्बरतापूर्वक अमानवीय एवं जघन्य तरीके से की गई हत्या से न केवल परिवार बल्कि पूरे समाज में भय पैदा होता है। ऐसे में अभियुक्त में किसी प्रकार की पुनर्वास की संभावना प्रतीत नहीं होती। बल्कि ऐसा प्रतीत होता है कि अभियुक्त जगदीश समाज की मुख्य धारा में जुडऩे योग्य नहीं है। अत: अभियुक्त जगदीश के विरुद्ध प्रकरण विरलतम से विरल श्रेणी का पाया जाता है। यदि अभियुक्त को मृत्यु दंड से कम यदि कोई भी दंड दिया जाता है तो उससे न केवल न्याय के उद्देश्य विफल होंगे।
अपितु समाज में इस प्रकार की मनोवृत्ति रखने वाले एवं आपराधिक कृत्य करने वाले अपराधियों को बढ़ावा मिलेगा एव आमजन में ऐसे लोगों से हमेशा डर बना रहेगा। लेकिन यदि अभियुक्त का केस को विरलतम से विरल मानकर दंडित किया जाता है तो समाज में एक मिसाल कायम होगी। बल्कि समाज के मस्तिष्क पटल पर इसका पॉजीटिव प्रभाव होगा एवं इस प्रकार की मनोवृत्ति रखने वाले अपराधियों का साहस एवं मनोबल टूटेगा।
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शिमला की अपराध की तीव्रता कम
हत्या की सहअभियुक्त शिमला राजेन्द्र अग्रवाल की नियोजक नहीं थी। उसने केवल अपनी आवश्यकताओं को देखते हुए वह इस अपराध की भागी बनी थी। अत: परिस्थिति अभियुक्त शिमला के पक्ष में जाती है एवं अभियुक्त जगदीश की तुलना में उसके अपराध की तीव्रता को कम करती है। शिमला का केस महिला होने के कारण जगदीश से भिन्न है।
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खुली अदालत में सुनाया फैसला
न्यायाधीश ने खुली अदालत में सुनाए निर्णय में कहा कि मृत्युदंड की पालना में अभियुक्त जगदीश चंद माली की गर्दन में फांसी लगाकर तब तक लटकाया जाए जब तक उसकी मृत्यु न हो जाए। अभियुक्त को दंड प्रकिया संहिता की द्वितीय अनुसूची के प्रारूप संख्या 40 की अनुपालना में जिला जेल, कोटा को भिजवाने व मृत्युदंड की पुष्टि के लिए दंड प्रकिया संहिता की धारा 366 के तहत राजस्थान उच्च न्यायालय को भेजा जाए।
परिवार में कोई नहीं जिसे दें कम्पंसेशन
न्यायाधीश ने निर्णय में लिखा कि अग्रवाल दम्पती के पुत्र बृजेश अग्रवाल की भी मृत्यु हो चुकी है। ऐसे में परिवार में कोई व्यक्ति नहीं बचा। जिसे विक्टिम कम्पन्सेशन स्कीम के तहत प्रतिकर दिलाया जाए। दंड प्रकिया संहिता की धारा 365 के अनुसार निष्कर्ष एंव दंडादेश की एक प्रति जिला मजिस्टे्रट को प्रेषित करने के भी आदेश दिए।
न्यायालय द्वारा जब्तशुदा माल की सुपुर्दगी का आदेश पूर्व में पारित किया जा चुका है, लेकिन किसी प्रार्थी ने माल प्राप्त नहीं किया। अत: प्रकरण में जब्तशुदा माल वजह सबूत का निस्तारण अपील अवधि की समाप्ति के छह माह बाद नियमानुसार किया जाए। अपील होने की स्थिति में इसे मालखाने में सुरक्षित रखा जाए।
Published on:
01 Aug 2019 09:00 am
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