
रामगंजमंडी. अफीम में रोग लगने पर पीले पड़े पत्ते।
रामगंजमंडी. एक जमाने में उपखंड क्षेत्र में ग्रामीण खेती किसानी की आर्थिक रीढ़ अफीम का पट्टा होती थी। लेकिन लगातार सरकार की नीतियों के कारण अफीम के पट्टे गिने चुने गांवो में ही रह गए है। इन दिनों अफीम की फसल में चीरा लगाने का समय चल रहा है।
इस वर्ष अफीम में रोग लगने के कारण लगभग पूरे इलाके में फसल को काफी नुकसान हुआ है। रिछडिय़ा गांव के अफीम मुखिया मांगीलाल किराड़ ने बताया कि इस वर्ष सभी किसानों के अफीम पट्टों में रोग के कारण काफी नुकसान हुआ है। पहले तो जाड़े और गलन के कारण व अब चीरा लगाने के समय पर अफीम की फसल खड़ी हुई मुरझा गई है। अफीम डोडे सूख गए है, जिसके कारण सरकार द्वारा निर्धारित औसत लेवी देना किसानों के लिए मुश्किल होगा।
अफीम उत्पादक किसान श्यामलाल सुथार का कहना है कि पानी की कमी के कारण अफीम किसानों ने दूसरी जगह से टैंकर लाकर अफीम की फसल को बचाया। इस दौरान एक बार अफीम की फसल को टैंकर से पानी पिलाने का खर्चा करीब सात से आठ हजार रुपए आता है।
ऐसे में अफीम में रोग के कारण अफीम की खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है।
ढाकीया गांव के रामकुमार का कहना है कि अफीम बोने से लेकर कार्य समाप्ति तक बच्चे, बुजुर्ग सहित पूरा परिवार टापरी बनाकर दिन रात अफीम के खेत की रखवाली करते है। प्राकृतिक आपदा ने भी इस वर्ष किसान के माथे पर चिंता की लकीरे खींच दी है।
रोग ग्रस्त फसल का आकलन हो
खैराबाद पंचायत समिति के मोतीलाल अहीर ने अफीम की फसल में लगे रोगों के कारण प्राकृतिक आपदा के तहत केंन्द्र सरकार से किसानों को राहत देने की मांग की है। ऐसे प्रभावित कृषि क्षेत्र का जायजा लेने के बाद अहीर का कहना है कि अफीम की बुआई से लेकर अंत तक करीब 10 से 12 हजार रुपया प्रति आरी का खर्च किसान को वहन करना पड़ता है। ऐसे में आर्थिक नुकसान के कारण किसान की कमर टूट जाएगी। उन्होंने कहा की केंद्र सरकार के प्रतिनिधि लोकसभा स्पीकर ओम बिरला से मिलकर किसानों की इस समस्या का समाधान करवाने के लिए प्रतिनिधि मंडल के माध्यम से उन्हें अवगत करवाया जाएगा।
Published on:
06 Mar 2021 08:13 pm
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