
Geeta Jayanti today
कोटा . निष्काम कर्म और गीता दर्शन के सार तत्व व्याख्यानों के साथ यहां गीता भवन में गीता सत्संग आश्रम समिति के तत्वावधान में पांच दिन से चल रहा गीता जयंती महोत्सव शनिवार को सम्पन्न हो गया। समापन पर शनिवार को तीन संतों का मार्गदर्शन मिला। इस मौके पर संतों ने कहा कि गीता अनन्तानंत समुद्र है। इसमें जितनी बार डुबकी लगाओगे, उतनी ही बार कुछ न कुछ प्राप्त करोगे। इसका पार पाना मुश्किल है। उन्होंने गीता के उपदेशों को जीवन में उतारने का आह्वान किया।
समापन पर विभिन्न स्थानों से आए संतों का अध्यक्ष के के गुप्ता, मंत्री बद्री लाल गुप्ता, संयोजक गिरिराज गुप्ता, उपाध्यक्ष कुंती मूंदड़ा, सह मंत्री आदित्य शास्त्री, कोषाध्यक्ष संजय गुप्ता समेत अन्य पदाधिकारियों ने संतों का सम्मान किया।
यूं मनाते हैं गीता जयंती
माना जाता है कि मोक्षदा एकादशी (मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी )पर भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में भगवान अर्जुन को युद्धभूमि में उपदेश देकर जीवन की सत्यता का बोध करवाया था। इसी के चलते धर्मावलम्बी इस दिवस को 'गीता जयंतीÓ के रूप में मनाते हैं।
सार्थक जीवन का तरीका बताती गीता
साध्वी मीरा ने बताया कि सवाईमाधोपुर से आई साध्वी मीरा ने कहा कि गीता व्यक्ति को सही अर्थ में जीवन जीने का तरीका बताती है। उन्होंने गीता के उपदेशों का सार बताते हुए कहा कि भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन से कहा कि यदि तू मुझे अपना समझता है तो मुझमें समर्पित हो जा। फिर तेरे द्वारा किए गए सभी कर्म तेरे नहीं रहेंगे, मेरे हो जाएंगे। अर्थात् जो व्यक्ति फल की इच्छा किए बिना भगवान को सब कुछ मानकर कर्म करता है वही आनंद-कल्याण प्राप्त करता है।
मृत्यु को भी उत्सव बनाती गीता
संत कबीर आश्रम के संत प्रभाकर ने कहा कि गीता जीना ही नहीं, मृत्यु को भी उत्सव बना देती है। इसे व्याप्त ज्ञान का एक कण भी जीवन में समा जाए तो जीवन रोशन हो जाता है और मृत्यु भी। उन्होंने कहा कि भक्ति का अर्थ परमात्मा में श्रद्धा व विश्वास। कर्म करना तो आवश्यक है लेकिन इसमें मोह व आसक्ति नहीं होनी चाहिए। जब कर्म और आसक्ति जुड़ जाती है तो व्याधियों का जन्म होने लगता है। अन्य संतों ने भी विचार व्यक्त किए।
पांच खास सीख
1. कर्म के साथ आसक्ति जोड़ी तो व्याधियों का जन्म।
2. शरीर के अंदर आत्मा भी है और परमात्मा भी। काम, क्रोध, लोभ व मोह इस शरीर में ही। हम जिसे अपनाते हैं, वैसे ही हो जाते हैं।
3. भक्ति का अर्थ है परमात्मा में विश्वास, ईश्वर का साथ ही भवसागर से पार करा सकता है।
4. गीता का एक एक श्लोक, एक एक शब्द शोध का विषय है।
5. कल्याण के तीन मार्ग, भक्ति-ज्ञान-कर्म। किसी पर भी निकल पड़ो, तर जाओगे। गीता तीनों का संगम।
Published on:
03 Dec 2017 06:27 pm
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