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नौकरी सरकार की प्रचार कर रहे पार्टी का

सरकारी सेवक सोशल मीडिया पर निकाल रहे सियासी गुबार. चोरी छिपे परोस रहे हेट कंटेंट, मॉनीटरिंग में जुटा पुलिस प्रशासन

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नौकरी सरकार की प्रचार कर रहे पार्टी का

कोटा के एक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एक पार्टी के समर्थन में रोजाना चार से पांच व्हाट्सएप मैसेज ब्रॉडकास्ट करते हैं। इन मैसेज में दूसरी पार्टी के नेताओं और नीतियों की जमकर मुखालफत और अपनी समर्थक पार्टी के नेताओं की तारीफ में खूब कसीदे पढ़े जाते हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि ह्यूमन वैल्यू का पाठ पढ़ाने वाले विवि के यह शिक्षक सामाजिक और धार्मिक विवादों पर जमकर हेट कंटेंट भी परोस रहे हैं, जबकि चुनाव आयोग ने इस तरह की गतिविधि को आचार संहिता का खुला उलंघन घोषित किया है।

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कोटा . चुनावों की घोषणा होते ही घर-घर जाकर कार्यकर्ताओं की मनुहार करना और उन्हें पार्टी के प्रचार प्रसार को गली मोहल्लों में उतारने का दौर अब तकरीबन गुजर चुका है। पिछले एक दशक से चुनावी मैनेजमेंट हाईटेक मैनेजर्स के हवाले हो गया और सोशल मीडिया उनकी पहली पसंद बन चुका है। जहां कार्यकर्ता की बजाय साइबर एक्सपर्ट की जाजम के हाथों में प्रचार की कमान होती है और वह कम वक्त में ज्यादा वोटर्स तक पहुंचने के लिए राजनीतिक दलों और उनके पदाधिकारियों के नहीं संभावित प्रत्याशियों तक के सोशल एकाउंट हैंडिल करते नजर आते हैं।
विधानसभा चुनावों की घोषणा होते ही कोटा में भी फेसबुक, यूट्यूब, ट्विटर, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम और विकीपीडिया ही नहीं हाल ही जन्मे वेब पोर्टल्स पर भी चुनावी रंग बिखरा हुआ है। शुरुआती दौर का प्रचार तीन हिस्सों में बंटा है। पहले में राजनीतिक दल और उनके हार्डकोर समर्थक पार्टीलाइन के मुताबिक कंटेंट अपने ग्रुप्स पर परोस रहे हैं। दूसरे वो लोग हैं जो टिकट मिलने की उम्मीद लगाए बैठे हैं और अपना दावा मजबूत करने के लिए खुद के ही नहीं समर्थकों के सोशल एकाउं्टस से भी दनादन पोस्ट करा रहे हैं। तीसरे वह लोग हैं जो नौकरी तो सरकार की कर रहे हैं, लेकिन प्रचार पार्टी का।

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प्रचार का समय निर्धारित
निर्वाचन आयोग ने सोशल मीडिया इलेक्शन कैम्पेन गाइडलाइन के जरिए फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम ही नहीं विकीपीडिया आदि माध्यमों पर भी चुनाव प्रचार का समय निर्धारित कर दिया है। चुनाव आचार संहिता जारी होने के बाद अब कोई उम्मीदवार, राजनीतिक दल और उनके समर्थक रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक किसी के समर्थन में कोई राजनीतिक अपील करती पोस्ट न तो अपलोड कर सकेंगे और न ही उसे शेयर कर सकेंगे।

जुड़ेगा चुनावी खर्च में
इंटरनेट कंपनी, वेबसाइट और सोशल मीडिया एकाउंट होल्डर्स को किया जाने वाला भुगतान निर्वाचन व्यय में जोड़ा जाएगा तथा सोशल मीडिया पोस्ट आदर्श आचार संहिता के दायरे में आएगी। यदि गलती से भी किसी ने अपना मोबाइल एप और पोर्टल डवलप कर उससे किसी प्रत्याशी या राजनीतिक दल का चुनाव प्रचार किया तो उसके डवलपमेंट में आया खर्च भी चुनावी खर्च में जोड़ दिया जाएगा। राजनीतिक दलों एवं प्रत्याशियों के कार्यालयों में कार्यरत सोशल मीडिया टीम को होने वाला भुगतान चुनाव व्यय में जोड़ा जाएगा।

लेनी होगी इजाजत
राजनीतिक दलों, प्रत्याशियों और उनके समर्थकों को चुनाव प्रचार से जुड़ा कोई भी कंटेट सोशल मीडिया पर अपलोड करने से पहले जिला निर्वाचन अधिकारी की इजाजत लेना जरूरी होगा। अनुमति के बाद भी कंटेंट की निगरानी रखने के लिए कोटा जिला प्रशासन ने 34 कमेटियां गठित की हैं। सोशल मीडिया पर पेड न्यूज और विज्ञापन की निगरानी करने की जिम्मेदारी सूचना विभाग के अधिकारियों से लैस मीडिया प्रकोष्ठ को सौंपी गई है, जबकि कंटेंट की गिरनानी कोटा पुलिस की साइबर सेल करेगी। वहीं इन सब पर होने वाले खर्चे की निगरानी को व्यय समिति गठित की गई है।

कराना होगा पंजीकरण
चुनावी कंटेंट अपलोड करने के लिए सोशल मीडिया एकाउंट्स, ग्रुप और पेज का जिला कलक्टर की अध्यक्षता में बनी विशेष समिति के समक्ष पंजीकरण कराना होगा। इसके बाद ही किसी राजनीतिक दल और प्रत्याशी के समर्थन में मैसेज और पोस्ट अपलोड कर पाएंगे। बिना पंजीकरण के चुनाव प्रचार करना कानूनन अपराध माना जाएगा। साथ ही, इसका खर्च भी उम्मीदवारों और पार्टी के चुनावी खर्च में शामिल किया जाएगा।

रिंगटोन-टेलीकॉलर पर भी शिकंजा
इस बार निर्वाचन आयोग सोशल मीडिया पर चुनाव प्रचार को लेकर खासा सख्ती बरत रहा है। आलम यह है कि चुनाव आयोग की अनुमति और सर्टिफिकेशन के
बिना कोई भी व्यक्ति, प्रत्याशी और राजनीतिक दल चुनावी विज्ञापन, एसएमएस,
रिंग टोन, कॉलर ट्यून और टेली कॉलर भी
जारी नही कर सकते हैं। कंटेंट की जांच और अनुमति लिए बिना इन सभी का इस्तेमाल गैरकानूनी माना जाएगा।

कर्मचारियों पर सख्ती
आचार संहिता लागू होते ही सरकारी कर्मचारियों को निर्वाचन से जुड़ी जिम्मेदारियां सौंपी जाएंगी। ऐसे में यदि कोई कर्मचारी किसी राजनीतिक दल या प्रत्याशी से प्रभावित होकर सोशल मीडिया पर कोई पोस्ट शेयर करता है तो इसे आचार संहिता का खुला उल्लंघन माना जाएगा। ऐसे कर्मचारियों के खिलाफ निर्वाचन नियमावली के तहत तत्काल सख्त कार्रवाई भी की जाएगी। हालांकि आचार संहिता जारी होने के बाद भी कोटा में बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारी अपने व्हाट्सएप ब्रॉडकास्ट और फेसबुक आदि सोशल मीडिया एकाउंट्स के जरिए राजनीतिक दलों के समर्थन में प्रचार अभियान छेड़े हुए हैं। जिनकी शिकायत हुई तो मुसीबत में फंस सकते हैं।

निजता का सम्मान
चुनाव आयोग ने इस फैसले के पीछे नागरिकों की निजता का सम्मान करने और सामान्य जनजीवन में अशांति या व्यवधान को रोकने को मुख्य वजह बताया है। निर्देश में आयोग ने कहा 'नागरिकों की निजता का सम्मान करने और सामान्य जनजीवन में अशांति को कम करने के लिए ऐसा करना आवश्यक है।Ó

यहां करें शिकायत
इसका उल्लंघन होने पर मतदाता चुनाव आयोग के 'सी विजिलÓ मोबाइल एप के जरिए शिकायत कर सकेंगे। इसके अलावा जिला निर्वाचन अधिकारी कार्यालय में भी शिकायत दर्ज करने की व्यवस्था की गई है। शिकायत आने के बाद जिला कलक्टर की अध्यक्षता में गठित कमेटी मामले की जांच कर कार्रवाई करेगी।

क्यों पड़ी जरूरत
भारत निर्वाचन आयोग द्वारा आचार संहिता के तहत राजनीतिक दलों एवं अभ्यर्थियों को समान अवसर प्रदान करने, विधि की पालना सुनिश्चित करने और आम आदमी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कायम रखने के लिए नए प्रावधान किए गए हैं। जिन्हें अपना कर सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार पर होने वाले खर्च को तो नियंत्रित किया ही जा सकेगा, साथ ही अब बेहद महत्वपूर्ण हो चुके इस प्लेटफॉर्म पर परोसे जा रहे कंटेंट की भी निगरानी की जाएगी। ताकि आचार संहिता की पूरी तरह पालना कराई जा सके।
वासुदेव मालावत, उप जिला निर्वाचन अधिकारी एवं एडीएम प्रशासन