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हमारे जिनालय-1: जंगल में बनी मंदिर विकास की योजना

कोटा के आरकेपुरम में स्थित त्रिकाल चौबीसी जैन मंदिर में भगवान पाश्र्वनाथ की एक प्राचीन प्रतिमा है जो 250 से 300 वर्ष पुरानी है।

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त्रिकाल चौबीसी जैन मंदिर, आर के पुरम, कोटा

कोटा के आरकेपुरम में स्थित त्रिकाल चौबीसी जैन मंदिर में भगवान पाश्र्वनाथ की एक प्राचीन प्रतिमा है जो 250 से 300 वर्ष पुरानी है।

कोटा. करीब 10 साल पहले जंगल वाले बाबा के नाम से प्रख्यात मुनि चिन्मय सागर कोटा आए थे। उन्होंने कोटा में चातुर्मास किया था। उन्होंने अपना चातुर्मास कोलीपुरा के जंगलों में किया। इसी जंगल में शहर के पहले नवीन त्रिकाल चौबीसी मंदिर निर्माण की योजना बनी थी। आरकेपुरम में स्थित यह मंदिर अब क्षेत्र के लोगों के लिए आस्था का प्रमुख केन्द्र है।

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मंदिर समिति के मंत्री पवनकुमार पाटौदी के अनुसार यह मंदिर करीब सत्रह वर्ष प्राचीन है। क्षेत्र में जैन समाज के लोगों की बसावट हुई तो दर्शन-पूजन के उद्देश्य से मंदिर बनाने का विचार आया। शुरू में एक पार्क में वर्ष 2000 में धूपदशमी पर मंदिर की आधारशिला रखी और एक कक्ष में भगवान पाश्र्वनाथ की प्रतिमा को विराजित किया गया।

पदाधिकारियों के अनुसार क्षेत्र के एस.के. जैन, पंडित कोमल प्रसाद शास्त्री, संजीव जैन व संजय ने निर्माण के प्रयास किए। मंदिर में पूजा-अर्चना का दौर चलता रहा, फिर वर्ष 2007 में आचार्य विद्या सागर महाराज के शिष्य जंगल वाले बाबा 13 मई 2007 को कोटा आए थे। उन्हें मंदिर में कई वास्तुदोष नजर आए। उन्होंने समाजबन्धुओं को दोषोंं के बारे में बताया और दूर करने को कहा।

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समाज के लोगों ने संत से वास्तु दोषों को दूर करने और मंदिर निर्माण करने के लिए निवेदन किया। संत का आशीष मिला। इसी दौरान 17 जून 2007 को त्रिकाल चौबीसी की मुख्य वेदी का शिलान्यास किया गया। महज कुछ ही महिनों में भव्य मंदिर बनकर तैयार हो गया।

मंदिर बनने पर 21 से 29 जनवरी तक मुनि चिन्मय सागर के सान्निध्य में पंचकल्याण महोत्सव का आयोजन किया और धूमधाम के साथ त्रिकाल चौबीसी मंदिर की स्थापना की। मंदिर में कुल 98 प्रतिमाएं हैं। इनमें से भगवान पाश्र्वनाथ की एक प्राचीन प्रतिमा ककरावदा से लाई गई थी। यह प्रतिमा 250 से 300 वर्ष पुरानी है। इसके अलावा भगवान चन्द्रप्रभु की दो और प्राचीन प्रतिमाएं भी यहां विराजमान हैं। ये भी करीब इतनी ही प्राचीन हैं।

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मंदिर के विकास से पूर्व पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर के नाम से जाना जाता था, लेकिन मूल नायक के रूप में भगवान मुनि सुव्रतनाथ की प्रतिमा व त्रिकाल चौबीसी की प्रतिष्ठा के बाद मंदिर का नाम मुनि सुव्रतनाथ दिगम्बर जैन मंदिर त्रिकाल चौबीसी कर दिया गया। यहां विराजमान मुनि सुव्रतनाथ की प्रतिमा करीब सवा सात फीट की है। यह काले पाषाण से निर्मित है।

मंदिर में मोक्ष सप्तमी, दशलक्षण पर्व व अन्य पर्व धूमधाम से मनाए जाते हैं। मंदिर करीब 90 फीट ऊंचा है। 51 फीट का मान स्तंभ है। सफेद मार्बल से निर्मित है। दीवारों पर अष्ट प्रतिहारों की आकृतियां उकेरी गई हैं। मंदिरों में संभवतया सबसे ऊंचा मान स्तंभ है।