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4 साल से ताले में बंद है दिव्यांगों की उम्मीद, मशीनें खरीदने के बाद भी नहीं बन रहे कृत्रिम अंग

भाजपा के राज में अराजकता का आलम ये है कि दिव्यांगों के कृत्रिम अंग बनाने के लिए लाखों की मशीनें तो खरीद ली गईं, लेकिन 4 साल से ताले में बंद पड़ी हैं।

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विकलांगों की मदद के लिए हर कोई उनका हाथ थामने को तैयार रहता है लेकिन संभाग के सबसे बड़े एमबीएस चिकित्सालय में विकलांगों के लिए नई तकनीक की सहायता से कृत्रिम अंग व अन्य सपोर्टिव उपकरण बनाने की वर्कशॉप चार साल से बंद पड़ा है, यहां रखी मशीनें व अन्य उपकरण धूल खा रहे हैं। वर्कशॉप बनने से एक साल पहले ही खरीद ली गई मशीनें ५ साल से बेकार पड़ी हैं। कई उपकरण की तो वारंटी खत्म हो गई पर उनके कवर तक नहीं हटे। इस वर्कशॉप में करीब 15 लाख की मशीनें लगी हैं।

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इंस्टॉल तक नहीं हुईं मशीनें

पुनर्वास केन्द्र का निर्माण दिसम्बर 2013 में हुआ लेकिन उससे एक वर्ष पूर्व ही अस्पताल अधीक्षक ने इन उपकरणों को मंगा लिया था। बिना किसी कर्मचारी की नियुक्ति किए अधीक्षक ने इन उपकरणों को मंगा तो लिया लेकिन आज तक इन्हें इंस्टॉल तक नहीं किया गया। वर्कशॉप में दो बडे़ इलेक्ट्रिक ओवन, वेक्यूम मशीन, बैंच राउटर, टेबल राउटर, इलेक्ट्रोनिक कटर, ड्रिल मशीन, जिक्शो कटर मशीन, हीट गन, लेजर लाइटर सहित कई उपकरण बंद कमरे में पड़े हुए हैं।

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तकनीशियन आए तो बने बात

वर्कशॉप को शुरू करने के लिए बीपीओ व तकनीशियन की आवश्यकता है। जब तक इनकी नियुक्ति नहीं होती, इसे शुरू नहीं किया जा सकता। वर्कशॉप शुरू करने के लिए पुनर्वास केन्द्र के अधिकारी और ऑर्थोपेडिक विभागाध्यक्ष कई बार अस्पताल अधीक्षक को पत्र लिख चुके लेकिन नतीजा नहीं निकला। यहां कुछ तकनीशियन के पदस्थापन हुए भी लेकिन उन्होंने ज्वाइन नहीं किया।

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पिछली सरकार का ये था इरादा

दिव्यांगजनों को महंगे दामों पर बाजार से कृत्रिम अंग व अन्य सपोर्ट खरीदने पड़ते हैं। आधुनिक वर्कशॉप शुरू होने पर वे यहां नि:शुल्क या बहुत ही कम कीमत पर कृत्रिम अंग या सपोर्ट देने वाले उपरण बनवा सकते हैं। इस वर्कशॉप को शुरू करने से आर्थोपेडिक केस में व न्यूरो के मरीजों को लाभ होता। कुछ समय के लिए आंशिक विकलांगों को कुछ सपोर्ट उपकरण लगाकर ठीक किया जा सकता है। लेकिन, यहां वर्कशॉप बंद रहने से सारी मंशाएं धूल-धूसरित हो रही है। अस्थि रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. केके तिवारी कहते हैं कि हमने कई बार अधिकारियों को पत्र लिख दिया, तीन माह पहले भी पत्र लिखा है, लेकिन कोई नियुक्ति ही नहीं हो रही। जो लोग पहले आए उन्होंने ज्वाइन ही नहीं किया।