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कोटा सेंट्रल जेल में खूंखार अपराधियों का खौफ, पति की जान बचाने को पत्नियां बेच रही मंगलसूत्र

राजस्थान के इस जिले की सेंट्रल जेल में बंद खूंखार अपराधी बंदियों की जान बख्शने के लिए उनके परिजनों से अवैध वसूली कर रहे हैं।

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कोटा

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Zuber Khan

Jan 03, 2018

Kota central jail

कोटा . नौ महीने पहले डिप्टी जेलर बत्तीलाल मीणा के एसीबी की गिरफ्त में आने पर सामने आया कोटा सेंट्रल जेल में बंदियों के परिजनों से अवैध वसूली का खेल अब भी जारी है। बंद खूंखार बंदियों की फरमाइश पूरी करने और अपने पतियों को पिटने से बचाने के लिए कई महिलाओं को मंगलसूत्र गिरवी रखना पड़ा तो किसी को बच्चों की स्कूल फीस के रुपए जेल में पहुंचाने पड़े। जेल में वर्तमान में करीब 1371 बंदी हैं। हत्या के मामले में जेल में बंद दो बंदी सत्येन्द्र सिंह भाया और राकेश जैन बैरक नम्बर 21 से यह वसूली का खेल चला रहे हैं। यह काम अभी भी भाया के वही दो दलाल राजू व हेमराज नागर तथा शकील बकरा के आदमी कर रहे हैं। राजू व हेमराज तो बत्तीलाल मामले में अनूप पाडिय़ा के साथ पकड़े भी गए थे।

जेल से छूटकर बाहर आए कई बंदियों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि जेल में नई आमद के बंदियों को अभी भी परेशान किया जा रहा। बंदियों को भाया व जैन के आदमी '21 नम्बर बैरकÓ में लेकर जाते हैं। वहां उनकी परिजनों से फोन पर बात करवाई जाती है और मारपीट नहीं करने की एवज में रकम मंगाई जाती है। हाल ही दोनों ने दो बंदियों के परिजनों पर इतना दबाव बनाया कि एक महिला ने मंगलसूत्र गिरवी रखकर और एक महिला ने बच्चे की स्कूल फीस के रुपए इनको पहुंचाए। स्कूल फीस समय पर जमा नहीं होने से बच्चे की पढ़ाई पर संकट आ गया। सूत्रों के अनुसार यह खेल जेल प्रशासन की मिलीभगत से ही चल रहा।

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जैमर की दिशा गड़बड़
जेल में बंदियों का मोबाइल नेटवर्क खत्म करने के लिए यहां 4 जी जैमर लगाए गए। लेकिन, इनकी दिशा मिलीभगत से इस तरह कर रखी है कि अन्दर से आराम से मोबाइल काम करते हैं जबकि जेल के बाहर आस पास नहीं। बंदी परिजनों व वकीलों से बात कर सकें इसके लिए दो साल पहले एसटीडी बूथ शुरू किया लेकिन उसे अब तक जेल प्रशासन ने चालू नहीं किया। यह धूल खा रही है।

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चैंकिंग में नहीं मिलते मोबाइल
जेल में बंदी लम्बे समय से मोबाइल फोन का उपयोग कर रहे। यह बात बत्तीलाल मीणा व अनूप पाडिय़ा के एसीबी की गिरफ्त में आने के बाद अप्रेल 2016 में साबित भी हुई थी। तत्कालीन जिला कलक्टर व पुलिस अधीक्षक ने लवाजमे के साथ छापा मार जेल का औचक निरीक्षण किया था लेकिन उस समय भी उनके हाथ कुछ भी नहीं लगा। जाहिर है, मिलीभगत से इन्हें इधर-उधर छिपा दिए जाते हैं।

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आरोप गलत
कोटा जेल अधीक्षक सुधीर प्रकाश पूनिया ने बताया कि एसटीडी बूथ में बंदियों की रूचि नहीं है। वे मुलाकात के समय ही बात करते हैं। बंदियों की वसूली का आरोप पूरी तरह गलत है। ऐसा कुछ जेल में नहीं हो रहा। कोई शिकायत भी नहीं आई।