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जनिए कैसे हुई गणेशोत्सव की शुरूआत, अंग्रजों से क्या है नाता…पढ़ें इतिहास से जुड़े रोचक तथ्य

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने की थी गणेशोत्सव की शुरूआत

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कोटा

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Rajesh Tripathi

Sep 02, 2019

जनिए कैसे हुई गणेशोत्सव की शुरूआत, अंग्रजों से क्या है नाता...पढ़ें इतिहास से जुड़े रोचक तथ्य

जनिए कैसे हुई गणेशोत्सव की शुरूआत, अंग्रजों से क्या है नाता...पढ़ें इतिहास से जुड़े रोचक तथ्य

कोटा.गणेशोत्सव के इतिहास पर गौर करें तो कहा जाता है है कि पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया था। शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई ने पुणे में कस्बा गणपति नाम से प्रसिद्ध गणपति की स्थापना की थी।

लेकिन साल 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने सार्वजनिक तौर पर गणेशोत्सव की शुरूआत की। हालांकि तिलक के इस प्रयास से पहले गणेश पूजा सिर्फ परिवार तक ही सीमित थी। तिलक उस समय एक युवा क्रांतिकारी और गर्म दल के नेता के रूप में जाने जाते थे। वे एक बहुत ही स्पष्ट वक्ता और प्रभावी ढंग से भाषण देने में माहिर थे। तिलक 'पूर्ण स्वराजÓ की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे थे और वे अपनी बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहते थे इसके लिए उन्हें एक ऐसा सार्वजानिक मंच चाहिए था, जहां से उनके विचार अधिकांश लोगों तक पहुंच सके।

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तिलक ने गणेशोत्सव को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे महज धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने, समाज को संगठित करने के साथ ही उसे एक आंदोलन का स्वरूप दिया, जिसका ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा।

गणेशोत्सव से घबरा गई थी अंग्रेजी हुकूमत
अंग्रेजो की हुकूमत को उखाड़ फेंकने और देश को आज़ादी दिलाने के मकसद से शुरु किए गए गणेशोत्सव ने देखते ही देखते पूरे महाराष्ट्र में एक नया आंदोलन छेड़ दिया।

अंग्रेजों की पूरी हुकूमत भी इस गणेशोत्सव से घबराने लगी. इतना ही नहीं इसके बारे में रोलेट समिति की रिपोर्ट में भी चिंता जताई गई।

इस रिपोर्ट में जिक्र किया गया था कि गणेशोत्सव के दौरान युवकों की टोलियां सड़कों पर घूम-घूम कर अंग्रेजी शासन विरोधी गीत गाती हैं व स्कूली बच्चे पर्चे बांटते हैं, जिसमें अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाने और मराठों से शिवाजी की तरह विद्रोह करने का आह्वान किया जाता था।

गौरतलब है कि तिलक द्वारा सार्वजनिक तौर पर गणेशोत्सव की शुरूआत करने से दो फायदे हुए। एक तो वह अपने विचारों को जन-जन तक पहुंचा पाए और दूसरा यह कि इस उत्सव ने आम जनता को भी स्वराज के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी और उन्हें जोश से भर दिया।
बहरहाल आज़ादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इस गणेशोत्सव को आज भी सभी भारतीय बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं और इस उत्सव को आगे भी इसी तरह से मनाते रहेंगे।