
फोटो: पत्रिका
Blind Cricket World Cup Winner: संघर्ष हर किसी के जीवन में होता है। कोई हार कर बैठ जाता है, कोई चुनौती के रूप में स्वीकार कर लेता है। जो संघर्षाें को चुनौती के रूप में स्वीकार कर लक्ष्य की ओर बढ़ जाते हैं, वही आसमां छूते हैं। कुछ इसी तरह की मिसाल पेश की तालेड़ा क्षेत्र बाजड गांव की सिमरनजीत कौर ने। वह क्रिकेटर के रूप में देश दुनिया में छाप छोड़ रही है।
सिमरन हाल ही में फर्स्ट वूमन्स टी-20 वर्ल्ड कप क्रिकेट फॉर द ब्लाइंड -2025 में बतौर ऑल राउंडर भारतीय टीम का हिस्सा रही। उसने गेंद व बल्ले से प्रदर्शन कर विदेशी टीमों को पराजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और वर्ल्ड कप भारत की झोली में डाला। सिमरन 2021 से क्रिकेट खेल रही है।
सिमरन को गांव के स्कूल में पढ़ाई के दौरान बोर्ड पर धुंधला नजर आता था। सिमरन के शिक्षक और भारतीय दृष्टिबाधित क्रिकेट संघ (सीएबीआइ) के पश्चिम क्षेत्र सचिव इस्लाम अली को समस्या से अवगत करवाया। उन्होंने सिमरन को दृष्टिबाधित (बी2 श्रेणी) के रूप में पहचाना और सिमरन को दृष्टिबाधित क्रिकेट में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
इसके बाद तो जैसे सिमरन पर क्रिकेट का जुनून सवार हो गया। कुछ ही समय में अच्छे ऑल राउंडर के रूप में पहचान मिल गई। राष्ट्रीय, अंतराष्ट्रीय खेल की हिस्सा बनते हुए वर्ल्ड कप के लिए चयन हुआ तो खुशियों का ठिकाना नहीं रहा। प्रतियोगिता में सिमरन ने एक मैच में ओपनिंग करते हुए 12 गेंदों पर 31 रन बना टीम को विजेता बना दिया। इस मैच में कौर ने 2 विकेट भी हासिल किए। आखिर 23 नवंबर को फाइनल में क्रिकेट के इस फॉरमेट में भारत चैंपियन बन गया।
एक राष्ट्रीय टूर्नामेंट में राजस्थान की ओर से खेलते हुए टीम की कप्तानी करने का सम्मान मिला और अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए उसे प्लेयर ऑफ द मैच चुना गया। नागेश ट्रॉफी में उप-कप्तान रहते प्लेयर ऑफ द मैच का खिताब जीता।
सिमरन के किसान पिता गुरपाल सिंह और मां सरबजीत कौर शुरू में बेटी को लेकर काफी चिंतित थे। सुरक्षा और खेल की अनिश्चितता को लेकर चिंता सता रही थी। स्कूल के शिक्षक व अन्य ने सिमरन की लगन व प्रतिभा के बारे में बताया तो वे राजी हो गए। अब वे खुद बेटी का हौंसला बढ़ाते हैं और उनकी सारी चिंता दूर हो गई।
12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाओं के कारण भारत-नेपाल महिला द्विपक्षीय दृष्टिबाधित क्रिकेट श्रृंखला में भारत का प्रतिनिधित्व करने का अवसर चूक गई, लेकिन उम्मीद नहीं छोड़ी। समर्पण के साथ प्रशिक्षण जारी रखा और अंततः कानपुर में अंतरराज्यीय टूर्नामेंट में राजस्थान का प्रतिनिधित्व किया, जहां उसकी टीम मध्य प्रदेश के खिलाफ विजेता बनी।
सिमरन बताती है कि क्रिकेट से पहले वह घर पर ही रहती थी और अपनी निशक्तता के कारण खुद को सीमित महसूस करती थी। लेकिन क्रिकेट से आत्मविश्वास, प्रेरणा और जीवन का नया मकसद मिला। पिता गुरपाल सिंह कबड्डी के खिलाड़ी रहे हैं। वह बताते हैं कि उन्हें और परिवार को बिटिया पर नाज है।
Published on:
03 Dec 2025 03:22 pm
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