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maha shivratri special : आखिर भोलेनाथ क्यों पीते हैं भांग, क्या है उनका इससे नाता…जानिए

भगवान शिव का नाम आता है तो बिन भंग के बात हो रही नहीं सकती। जी हां भांग और भोले का अजब नाता है।

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कोटा

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Zuber Khan

Feb 13, 2018

maha shivratri special

कोटा . बात महाशिवरात्री की हो रही है। यानी कि भगवान शिव की। और जहां भगवान शिव का नाम आता है तो बिन भंग के बात हो रही नहीं सकती। जी हां भांग और भोले का अजब नाता है। हिंदू पुराणों में भी भगवान शिव के भांग प्रेम की कई कहानियां बताई गई हैं, क्या आप जानते हैं आखिर शिव को क्यों है भांग पसंद। पुराणों में भी शिव और भांग के रिश्ते का जिक्र है। अलग अलग लोगों से इसे लेकर अलग अलग कहानियां सुनने को मिलती है। पर क्या आपको मालूम है कि आखिर शिव को क्यों है भांग पसंद।

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शिव हमेशा ध्यान लगाए रहते हैं, और भांग ध्यान केंद्रित करने में काफी मदद करती है। इससे वो हमेशा परमानंद में रहते थे और कभी भी ध्यान लगा सकते थे। शायदी इसी वजह से योगी, अघोरी और साधु भी भांग पीते हैं। शिव हमेशा ध्यान लगाए रहते हैं, और भांग ध्यान केंद्रित करने में काफी मदद करती है। इससे वो हमेशा परमानंद में रहते थे और कभी भी ध्यान लगा सकते थे। शायदी इसी वजह से योगी, अघोरी और साधु भी भांग पीते हैं। प्राचीन कथाओं में कहा गया है कि देवता हमेशा सोमरस का सेवन करते थे और इसी को पाने के लिए असुरों ने उनसे लड़ाई की थी, ये माना जाता है कि सोमरस और भांग दोनों एक ही हैं।

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प्राचीन कथाओं में कहा गया है कि देवता हमेशा सोमरस का सेवन करते थे और इसी को पाने के लिए असुरों ने उनसे लड़ाई की थी, ये माना जाता है कि सोमरस और भांग दोनों एक ही हैं। एक यह भी कहा जाता है कि भगवान ने मसुद्र मंथन के मौके पर अपने गले में विष धारण कर लिया था और वे नीलकंठ बन गए थे। विष गर्मी देने वाला है और भांग ठंडी तासिर वाली है , इसी के चलते भगवान शिव ने भांग का सेवन किया।

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शिव भांग के पौधे को ले गए हिमालय

भांग यूं तो अन्य देवताओं को भी भाती थी, लेकिन शिव का भाग प्रेम इतना था कि वे मद्र पर्वत से भांग का पौधा ही हिमालय पर्वत पर ले गए थे। कहा जाता है कि समुद्र मंथन से एक बूंद मद्र पर्वत पर गिरने से एक पौधा उग गया। इस पौधे का रस देवताओं को इतना पसंद आया कि उन्होंने भी भांग को पीना शुरू कर दिया। लेकिन बाद में भगवान शिव भांग के पौधे को हिमालय में ले आये ताकि हर कोई इसका सेवन कर सकें। उन्होंने इसका सेवन करना शुरू कर दिया और बाद में शिव इसे हिमालय में ले आये ताकि हर कोई इसका सेवन कर सकें।