
कोचिंग स्टूडेंट्स की प्रतीकात्मक तस्वीर
आशीष जोशी
‘कोचिंग सिटी के ‘ब्रांड एम्बेेसडर’ कोई बड़ी सेलिब्रिटी नहीं, बल्कि बच्चे खुद ही है।’ इसी ‘पंच लाइन’ के साथ पूरा कोटा एकजुट होकर शहर का ‘परसेप्शन’ सुधारने में लगा है। मौजूदा कोचिंग सत्र में 30 से 35 फीसदी बच्चे कम आए तो कोटा की इकोनॉमी को धक्का लगा। इस ‘इंडस्ट्री’ से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े डेढ़ लाख लोग बुरी तरह से प्रभावित हुए। अब कोचिंग से लेकर हॉस्टल ही नहीं बल्कि प्रशासन और पुलिस तक सभी लोग बच्चों को कोटा बुलाने के लिए साझा नवाचार कर रहे हैं। वर्तमान में यहां पढ़ रहे स्टूडेंट्स अच्छा संदेश लेकर जाए, इसके लिए हर स्तर पर उनकी ‘मान-मनुहार’ कर बेहतर सुविधाएं दी जा रही हैं। ग्राउंड से लेकर सोशल मीडिया प्लेटफार्म तक नेगेटिविटी को दूर कर सकारात्मक माहौल बनाया जा रहा है।
कई कोचिंग संस्थानों ने बाकायदा सर्वे कर इस साल बच्चे कम आने के कारणों की तलाश की। दो-तीन काेचिंग की ओर से करवाए गए ऑनलाइन और ऑफलाइन सर्वे के नतीजे लगभग एक जैसे ही मिले। करीब 40 फीसदी लोगों ने कहा कि कोटा महंगा शहर है, 35 फीसदी लोग बोले-सुसाइड से भय का माहौल है। वहीं 20 प्रतिशत पेरेेंट्स ने कहा कि अब घर के पास ही कोचिंग सुविधा मिल रही है। पांच फीसदी लोगों ने अन्य कारण गिनाए। फिर इन नतीजों की रियलिटी जानी तो पता चला कि यह महज ‘धारणा’ बन गई है। न तो यहां इतनी महंगाई है और स्टूडेंट सुसाइड के मामलों में तो कोटा क्या, राजस्थान ही देश में 10वें पायदान पर है।
पिछले साल कई स्तर पर कोटा की छवि प्रभावित हुई, लेकिन यहां की पढ़ाई और परिणाम पर कोई सवाल नहीं उठा। हर साल कोटा आउटस्टेंडिंग रिजल्ट दे रहा है। टॉपर्स बढ़ रहे हैं। कोचिंग में तो इनोवेशन के जरिए बच्चों को और बेहतर ‘डोज’ दी जा रही है। यहां सब्जेक्ट ही नहीं टॉपिक एक्सपर्ट टीचर तैयार किए जा रहे हैं। जो संबंधित टॉपिक को बच्चों को बेहतर तरीके से समझा रहे हैं।
Updated on:
15 Nov 2024 03:12 pm
Published on:
15 Nov 2024 03:05 pm
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