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मां का आंचल थाम कर मांगी थी जिंदगी की भीख…

झालरापाटन में 7 दिन की मासूम बच्ची को जिंदा गाड़ने गई मां का बच्ची ने इतनी जोर से आंचल पकड़ रखा था कि उसे झटक कर अलग करना पड़ा।

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7 दिन पहले ही जन्मी थी वो... दुनिया के हर दस्तूर से बेखबर... रिश्तों की समझ तक नहीं थी उसे... बस कुछ याद रहा तो पैदा करने वाली मां... तभी तो जिंदगी के आखिरी लम्हों में जब उसे मौत की आहट सुनाई पड़ी तो... डर के मारे मां का आंचल इतनी रोज से थाम लिया कि गड्ढे में गाड़ने से पहले सोरम बाई को उसे छुड़ाने के लिए हाथ तक झटकना पड़ा था।







नवाजत बेटियों की हत्याओं के लिए बदनाम राजस्थान ने International Day of the Girl Child पर पूरे देश का सिर शर्म से झुका दिया। झालावाड़ जिले के झालरापाटन कस्बे में 7 दिन पहले जन्मी को उसके मां-बाप ने ही गड्ढे में जिंदा गाड़ दिया। मासूम बच्ची की किलकारियां सुनकर आसपास के लोग उसे बचाने के लिए दौड़े। गड्ढा खोदकर बच्ची को बाहर निकाला और अस्पताल भी ले गए, लेकिन मासूम बेटी को बचाया ना जा सका। निर्मम मां ने जब पुलिस को बेटी की हत्या का वाकया सुनाया तो वहां मौजूद हर कोई सिहर उठा। दीवारें तक रो पड़ी।

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घर में जन्मी थी छटी बेटी

सोरम बाई ने बताया कि उसके पहले से ही 5 बेटियां हैं। बेटे की चाह में जब एक और बेटी जन्मी तो घर परिवार में कोहराम मच गया। घर में कोई भी बेटी का बोझ बर्दास्त करने को राजी ना था। हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने के बाद कुछ किमी का रास्ता उसे मीलों का लगने लगा और झालरापाटन पहुंचते-पहुंचते आखिरकार उसके कदम डगमगा गए। पति वीरमलाल ने भी उसे सहारा देने के बजाय बेटी को ही रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया। अंधेरा होते ही दोंने ने तय किया कि बच्ची को रास्ते में ही कहीं गड्ढा खोदकर दबा देते हैं। गांव के लोग पूछेंगे तो कह देंगे हॉस्पिटल से घर लाते समय बच्ची की मौत हो गई।

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कसकर पकड़ लिया था मां का आंचल

बीरमलाल ने जब गड्ढे में गाड़ने के लिए नन्ही जान को उसकी मां सोरम बाई की गोद से खींचा तो 7 दिन की मासूम ने अपने नन्हे हाथों से मां का आंचल कसकर पकड़ लिया। लेकिन बेटी को बोझ समझने वाले माता-पिता उसका डर और पीड़ा नहीं समझ पाए और हाथ झटककर उसे जमीन पर पटक दिया। यहीं नहीं उसके सिर पर भारी पत्थर रख जिम्मेदारी से मुंह मोड़ भाग निकले तो मासूम किलकारी रुदन में बदल गई।

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मानो छोड़ ही दी थी जीने की आस

वेयर हाउस के पास काम कर रहे मजदूरों ने बताया कि उन्होंने जब बच्ची को गड्ढे से बाहर निकाला था तो उसकी धड़कनें सुनकर उम्मीद जागी थी कि बच्ची अब जिंदा बच जाएगी, लेकिन साहब जिले पैदा करने वाले ही मारने पर उतर आए हों तो वह जीकर भी क्या करेगा। शायद यही सोचकर आखिरकार उस लाड़ो ने दोबारा इस देश ना आने की कसम खाकर अपनी सांसें त्याग दीं। झालावाड़ जनाना हॉस्पिटल के अधीक्षक डॉ.राजन नंदा ने बताया कि नवजात की हालत नाजुक बनी हुई थी। डॉक्टरों ने उसे बचाने की जी तोड़ कोशिश की, लेकिन मानो जैसे वह जिंदा रहने के लिए ही राजी ना थी और आखिरकार घटना के 5.30 घंटे बाद ही उसने हमेशा के लिए आंखें मूंद ली।