जबकि गांव-देहात के लोगों का ज्यादातर लेनदेन ग्रामीण क्षेत्रीय बैंकों में ही होता है। नोटबंदी के बाद तो अधिकांश खाते राष्ट्रीयकृत बैंकों में ही खुले हैं और किसानों ने यहीं से किसान क्रेडिट कार्ड या दूसरे साधनों से कर्ज भी लिया है। राष्ट्रीयकृत और ग्रामीण बैंकों से कर्ज लेने वाले किसान इस घोषणा से ठगे हुए महसूस कर रहे हैं।
सबसे बड़ा छलावा नौकरी सरकार ने आखिरी बजट में बंपर सरकारी नौकरियों देने की घोषणा की है, लेकिन घोषणाओं की ये रेवडिय़ां तो पहले बजट में भी बांटी गईं थी। जिन पर चार साल में भी अमल नहीं हो पाया। जो सरकार भर्तियां करने वाले संस्थान (आरपीएससी) का पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं तलाश सकती वह बजट घोषणा को अमल में कैसे लाएगी? सवाल उठता है कि ऐसा कौन सा जादू का चिराग है जिसे घिसने से सरकार जो काम चार साल में नहीं कर सकी है उसे एक साल में कर डालेगी।
तत्कालिक लाभ हासिल करने की कोशिश
सरकार ने इस बजट को क्रिकेट के टी20 फार्मेट का विजन बताया है। जिससे साफ हो जाता है कि बजट में की गई तमाम घोषणाओं से सरकार तात्कालिक लाभ हासिल करना चाहती है। जिसकी वजह से आने वाले सालों में राज्य के विकास की दशा और दिशा क्या होगी, दर्शाने में यह बजट नाकामियाब रहा है।