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राजस्थानियों ने की PM मोदी से राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने की मांग

locationकोटाPublished: Dec 23, 2017 10:13:17 pm

Submitted by:

abhishek jain

राजस्थानी नै मान्यता सगळा राजस्थान रा साहित्यकार लम्बी टैम सूं मांग रिया है। या प्रदेश रा साहित्यकारां की ही नीं, जण-जण री मांग है।

Rajasthani Language
कोटा .

‘हाड़ौती राजस्थानी भासा री उर्वरक परम्परा री धरती है। यां पै प्रेमजी प्रेम सूं लेकर अबार ताईं घणां सारा साहित्यकार राजस्थानी ने सृमद्ध बणांबा रे सारू प्रयासरत है। म्हारै वास्ते यो सम्मान केंद्रीय साहित्य अकादमी रा सम्मान सूं भी बड़ो है। राजस्थानी नै मान्यता सगळा राजस्थान रा साहित्यकार लम्बी टैम सूं मांग रिया है। या प्रदेश रा साहित्यकारां की ही नीं, जण-जण री मांग है। सगळा दस्तावेज प्रधानमंत्री मोदी रे पास पूग चुक्या।
ई शीतकालीन सत्र में राजस्थानी भाषा री मान्यता पै चर्चा होबा रे पछै मान्यता मलबो तय है। ई के बाद प्रदेश मं रोजगार का अवसर बढ़ेगा। सरकारी दफ्तरां में अनुवादक का पद सृजित होवेगा। पाठ्यक्रमां में भी राजस्थानी शामिल होवेगी।’ यह बात बीकानेर के वरिष्ठ साहित्यकार नीरज दइया ने यहां आयोजित समारोह में कही। दइया को राजस्थानी काव्यकृति ‘पाछौ कुण आसी’ पर कोटा में शनिवार को गौरीशंकर कमलेश राजस्थानी भाषा साहित्य पुरस्कार से नवाजा गया।
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समारोह में कोटा के शायर शकूर अनवर, गीतकार किशनलाल वर्मा, पत्रकार ओम कटारा को भी सम्मानित किया गया। साथ ही ज्ञान भारती संस्थान की निदेशक कमला कमलेश की हाड़ौती की कहावतें, मुहावरे पर आधारित पुस्तक ‘धरोहर’ का विमोचन भी किया गया।
समारोह में मुख्य अतिथि रहे पूर्वमंत्री भरत सिंह ने राजनीति पर सुनाए गए व्यंग्य पर कहा कि वर्तमान में प्रशासन पर राजनीति हावी है। पुरस्कार सचिव जितेन्द्र निर्मोही ने पुरस्कृत कृति ‘पाछो कुण आसी’ और डॉ. नीरज दहिया के कृतित्व, व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। संस्था सचिव सुरेन्द्र शर्मा ने आभार व्यक्त किया।
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पसब नी, बीज मांडबो सीखां

अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ साहित्यकार अम्बिकादत्त चतुर्वेदी ने कहा, 40 साल पहले कमलेश ने हाड़ौती भाषा की खुशबू को पूरे राजस्थान में बिखेरा। उन्होंने बीज बनकर काम किया, हमे भी ऐसा ही साहित्य सृजन करना चाहिए कि बीज का काम करे।
हाड़़ौती आपणी धरोहर

समारोह में ज्ञान भारती संथान की निदेशक कमला कमलेश ने कहा कि बाबू साहब जब गीत कविता लिखते थे तब मैं नहीं जानती थी कि साहित्य क्या होता है। उनके बाद गिरधारीलाल मालव ने गद्य लेखन को प्रेरित किया। कहानी, लोकगीत, 16 संस्कार के गीत लिखे तो नई पहचान मिली। उन्होंने हाड़ौती में कहा, हाड़ौती आपणी धरोहर छै, जण-जण की भासा बणानी छै।
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