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यहां स्थित है देश में एकमात्र रामभक्त विभीषण का 2000 साल पुराना मंदिर, हर साल जमीन में समा जाता है कुछ भाग

Vibhishan Mandir Kota: चारचौमा शिव मंदिर और रंगबाड़ी बालाजी दोनों ही प्रसिद्ध धार्मिक स्थान है। दोनों मंदिरों के मध्य जहां कावड़ की धूरी रही वहां विभीषण ठहर गए।

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कोटा

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Akshita Deora

Apr 06, 2025

Ram Navami 2025: देश में भगवान राम के अनन्य भक्त विभीषण का मंदिर सिर्फ कोटा में है। यह मंदिर कोटा से करीब 15 किलोमीटर दूर कैथून में है। मंदिर 2000 साल प्राचीन है। मंदिर का इतिहास व परम्पराएं भी अनूठी है। यहां धुलंडी पर हिरण्यकश्यप के पुतले का दहन किया जाता है व मेला भरता है। मंदिर समिति के अध्यक्ष सूरजमल व महामंत्री ओम प्रकाश प्रजापति के अनुसार, संभवतया देश में इसके अलावा विभीषण मंदिर अन्यत्र कहीं नहीं है।

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किवदंती के अनुसार, मंदिर का इतिहास राम के राज्याभिषेक से जुड़ा है। राम राज्याभिषेक हो चुका था और मेहमानों की विदाई की बेला थी। भगवान महादेव व बालाजी आपस में भारत भ्रमण की चर्चा कर रहे थे। विभीषण ने यह बात सुनी तो बोले- भगवान राम ने उन्हें कभी सेवा का अवसर नहीं दिया। मैं आपको भारत भ्रमण करवाना चाहता हूूं। महादेव व बालाजी सहर्ष तैयार हो गए, लेकिन उन्होंने शर्त रखी कि जहां कहीं कावड़ जमीन पर टिक जाएगी वे वहीं ठहर जाएंगे।

शर्तानुसार 8 कोस लंबी कावड़ में एक तरफ महादेव व दूसरे पलड़े में बालाजी को बिठा लिया। यात्रा चलती रही, लेकिन कनकपुरी कैथून में किसी कारणवश विभीषण को रुकना पड़ा। एक पलड़ा चारचौमा गांव में टिका, वहां महादेव विराजमान हो गए। दूसरा रंगबाड़ी में जहां बालाजी विराजमान हो गए। चारचौमा शिव मंदिर और रंगबाड़ी बालाजी दोनों ही प्रसिद्ध धार्मिक स्थान है। दोनों मंदिरों के मध्य जहां कावड़ की धूरी रही वहां विभीषण ठहर गए। भगवान विभीषण के मंदिर से शिव मंदिर व रंगबाड़ी बालाजी मंदिर की दूरी बराबर है।

दुर्लभ है प्रतिमा, नजर आता है केवल शीश

मंदिर समिति से जुड़े सत्यनारायण सुमन और सत्येन्द्र शर्मा बताते हैं कि मंदिर में स्थापित प्रतिमा का केवल शीश नजर आता है। मंदिर से करीब 150 फीट की दूरी पर सामने की ओर कुंड है, जहां विभीषण के पैर हैं। इससे प्रतिमा की विशालता नजर आती है। सिर्फ पैर व शीश ही नजर आते हैं। ग्रामीण बताते हैं कि हर वर्ष एक मूंग के दाने के बराबर प्रतिमा जमीन में बैठ जाती है। संभव है कि समय के साथ मिट्टी के आवरण में प्रतिमा का शेष भाग दब गया हो। प्रारंभ में यहां एक चबूतरा था। धीरे-धीरे मंदिर की ख्याति बढ़ी और विकास होता चला गया। कुछ वर्षों से यहां धुलंडी पर हिरण्यकश्यप के पुतले का दहन किया जाता है।

कैथून थी कौथमपुरी

इतिहासविद फिरोज अहमद बताते हैं कि कैथून को कौथमपुरी के नाम से जाना जाता था। यहां 9वीं-10वीं शताब्दी के मंदिर के अवशेष भी मिलते हैं। विभीषण का देश में एक मात्र मंदिर है। प्रतिमा को देखने से लगता है कि भगवान विभीषण कंधे के सहारे लेटे हैं।

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