
कोटा-सवाईमाधोपुर
कोटा . बीड़ी सिगरेट का उड़ता धुआं, मोबाइल में तेज आवाज में बजते गाने, चारों ओर गंदगी, सामानों से अटी पड़ी सीटें, घंटों इंतजार का दंश, बिलखते चीखते बच्चे और ना जाने कितनी ही परेशानियों के बीच रेलवे की लोकल ट्रेन यात्रियों को अपने मुकाम तक तो पहुंचा रही है लेकिन, यात्रियों की जान के साथ। यात्री खुद ही समस्याओं से जूझते हुए सफर करने को मजबूर हैं। करें भी क्या, कोई विकल्प ही नहीं। कोटा से चलने वाली या यहां से गुजरने वाली लगभग सभी लोकल ट्रेनों की स्थिति खस्ताहाल है। सुरक्षा बंदोबस्त तो जैसे सोच में ही नहीं। लगता ही नहीं कि रेलवे को लोकल ट्रेन में सफर करने वाले यात्रियों की परवाह है। हजारों लोग प्रतिदिन जान जोखिम में डाल इन ट्रेनों में सफर कर रहे हैं।छिटपुट हादसे, चोरी-चकारी, धक्का-मुक्की, जगह को लेकर हाथापाई, या अन्य अपराध का शिकार होना इनके यात्रियों की जैसे नियति ही है। चढ़ते-उतरते वक्त जोर आजमाइश में जान चली जाने तक की बेबसी भी। लेकिन, व्यवस्थाओं में सुधार की ओर किसी ने हाथ नहीं बढ़ाया। रेलवे को शायद इन्हें पटरी पर दौड़ाने से ज्यादा कोई मतलब ही नहीं। कैसे होता है इन ट्रेनों में सफर जानिये यात्रियों और हालात से रूबर होकर तैयार की गई है इस लाइव रिपोर्ट में।
रात के अंधेरे में रहती है जान-माल की चिंता
07 नवंबर
गाड़ी संख्या-59812, हल्दीघाटी पैसेंजर
रूट: कोटा-सवाईमाधोपुर, आगरा फोर्ट रूट पर चलने वाली हल्दीघाटी पैसेंजर रात 8.50 बजे कोटा रेलवे स्टेशन से रवाना होती है। ट्रेन की सीटी बजते ही ट्रेन स्टेशन से रवाना होती है। स्टेशन निकलते ही घनघोर अंधेरा हो जाता है। और उसके बाद शुरू होता है, यात्रियों का असुरक्षित सफर। इस ट्रेन में हमने सफर किया तो सबसे बड़ी परेशानी सुरक्षा को लेकर थी। कोटा से सवाईमाधोपुर तक एक बार भी न तो आरपीएफ की गश्त टीम आई और न ही टिकट चैकिंग स्टाफ। कुछ डिब्बों में लाइटें नहीं जल रही थी, तो कई जगह टे्रन के डिब्बों में सीटें फटेहाल थी। रात को 11 बजे ट्रेन सवाई माधोपुर पहुंची, उसके पहले कई बार घनघोर अंधेरे में खड़ी रही। सवाईमाधोपुर तक रोज अपडाउन करने वाले यात्रियों का कहना था कि ट्रेन में महीने में बमुश्किल से एक या दो बाद चेकिंग स्टाफ आता है। रात के समय पानी की कोई व्यवस्था नहीं रहती। यात्री घंटों पानी के लिए बोतल हाथ में लिए ट्रेन के गेट से नलों को ढूंढने का प्रयास करते हैं। जिन लोगों के साथ महिलाएं व बच्चे होते हैं वह डरे व सहमे से रहते हैं। रात में ट्रेन का सफर होता है तो कई समाजकंटक शराब के नशे में रहते हैं।
यात्रियों की जुबानी
कोटा से इंद्रगढ़ के लिए यात्रा कर रहे मुकेश गौतम ने बताया कि वह सप्ताह में तीन या चार बार इस टे्रन से आते हैं। लेकिन, उन्होंने कभी यहां सुरक्षाकर्मी नहीं देखे। पुलिस के जवान केवल रिजर्वेशन में ही रहते हैं। जनरल कोच में कोई सुध लेने नहींं आता। उन्होंने कहा कि सप्ताह में एक या दो बार भी चेकिंग स्टाफ आ जाए तो अपराधियों में भय बनेगा। ट्रेन की हालत: कई डिब्बों में लाइटें नहीं जल रही थी। कई डिब्बों में सीटें फटेहाल थी। पानी का नहीं था कोई प्रबंध। जगह जगह पसरी थी गंदगी।
Updated on:
01 Dec 2017 01:20 pm
Published on:
01 Dec 2017 01:10 pm
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