10 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

विघ्नहर्ता पर्युषण-1: आत्मशुद्धि का अभियान, अहिंसा का अनुष्ठान

दिगम्बर जैन समाज के पर्युषण भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी से चतुर्दशी तक अर्थात दस दिनों तक होते हैं।

3 min read
Google source verification
विघ्नहर्ता पर्युषण-1: आत्मशुद्धि का अभियान, अहिंसा का अनुष्ठान

दिगम्बर जैन समाज के पर्युषण भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी से चतुर्दशी तक अर्थात दस दिनों तक होते हैं।

पहला दिन
दिगम्बर जैन समाज के पर्युषण भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी से चतुर्दशी तक अर्थात दस दिनों तक होते हैं। दशलक्षण पर्व/धर्म भी इसीलिए कहा जाता है। आचार्य उमा स्वाति द्वारा रचित 'तत्वार्थसूत्र' के नवें अध्याय के छठे सूत्र में कहा गया है, 'उत्तम क्षमा/मार्दव (मृदुता)/ आर्जव (भाव की शुद्धता या ऋजुता)/शौच (लोभ न रखना)/सत्य/संयम/तप/ त्याग/ अङ्क्षकचनता (अपरिग्रह)/ ब्रह्मचर्य, उत्तम धर्म के ये दस अंग (लक्षण) हैं।' यह संयोग भी है और सुयोग भी कि सनातन हिन्दू धर्म के प्रथम पूज्य देवता गणेशजी (जिन्हें विघ्नहर्ता कहा जाता है) का जन्मोत्सव भी दस दिन तक चलता है और वह भी भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से। चतुर्देशी को गणेश प्रतिमा का विसर्जन हो जाता है।

Read More: हमारे जिनालय-1: जंगल में बनी मंदिर विकास की योजना

तिथि की वृद्धि या क्षय होने पर कभी-कभार अंतर हो जाता है, वरना विघ्नहर्ता (गणेशजी) का उत्सव दस दिन का ही होता है। अद्भुत और सुखद साम्य है दिगंबर जैन समाज के पर्युषण यानी दशलक्षण पर्व और सनातन हिन्दू धर्म के प्रथम पूज्य देवता विघ्नहर्ता गणेशजी के दस दिवसी उत्सव में। तात्पर्य यह कि दोनों में भाद्रपद माह की समानता, शुल्कपक्ष की समानता, दस दिनों की समानता।

Read More: Abstract of Ganesha-1, कोटा में गणेशोत्सव की धूम...देखिए तस्वीरें

अनंत चतुर्दशी को गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन होता है तो इसी दिन दिगंबर जैन समाज के पर्युषण पूर्ण होते हैं। और क्षमावाणी के रूप में क्षमा मांगकर अपने अहंकार का विसर्जन किया जाता है। अहंकार का विसर्जन यानी कषायों (क्रोध/ मान/माया/लोभ) से मुक्ति। कषायों से मुक्ति अर्थात आत्मा की शुद्धि। आत्म की शुद्धि अर्थात अहिंसा की सिद्धि। इस प्रकार पर्युषण भी गणेश जी की तरह विघ्नहर्ता ही तो है। गणेशजी विघ्नों का हरण करके शुभ-लाभ देते हैं तो पर्युषण कषाय रूपी विघ्नों का हरण करके अपरिग्रह का शुभ और अनेकांत का 'लाभ' देता है। मोक्ष का पथ प्रशस्त करता है।

दूसरा दिन - संयम की साधना, तृष्णा को त्यागना
आ चार्य कुन्दकुन्द द्वारा रचित 'समयसार' (गाथा 206) में कहा गया है, 'हे भव्यप्राणी! तू इस ज्ञानपद को प्राप्त करके इसमें ही लीन हो जा, इसमें ही निरंतर संतुष्ट रह और इसमें ही पूर्णत: तृप्त हो जा, इससे ही तुझे उत्तम सुख (अतीन्द्रिय आनंद) की प्राप्ति होगी।' उल्लेखनीय है कि 'समयसार' की यह गाथा (दो सौ छह) ज्ञानपद को प्राप्त करके उसमें लीन होने के लिए संयम की साधना का संकेत कर रही है तथा तृष्णा को त्यागना यानी अपरिग्रह का निर्देश दे रही है। गौरतलब है कि आचार्य कुन्दकुन्द दिगम्बर जैन आचार्य परम्परा अर्थात् भगवान महावीर की मूल दिगम्बर परम्परा के सर्वश्रेष्ठ आचार्य के रूप में सर्वमान्य है।

Read More: खुदा की बारगाह में झुके हजारों सिर, ईद की नमाज अदा कर मांगी अमन चैन की दुआ

कानजी स्वामी का दिगम्बर जैन समाज में आचार्य कुन्दकुन्द के साहित्य के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान है। आचार्य कुन्दकुन्द के 'समयसार' का वाचन दिगम्बर जैन समाज के पर्युषण पर्व के दौरान होता है। 'समयसार' की उक्त गाथा ज्ञानपद को प्राप्त करके उसमें लीन होने के लिए, जिस संयम की साधना के लिए और तृष्णा को त्यागने के लिए इंगित कर रही है उससे वास्तव में मोक्ष के मार्ग में आने वाले विघ्नों का हरण होता है।

पर्युषण दरअसल आत्मशुद्धि के जिस अभियान का प्रतीक है संयम की साधना उसका संस्कार और तृष्णा को त्यागना उसका व्यवहार है। भगवान महावीर ने तो महलों को त्यागा यानी तृष्णा को त्यागा और मन-वचन-कर्म से किसी की भी हिंसा न करके संयम को साधा। सनातन हिन्दू धर्म में प्रथम पूज्य देवता भक्तों के लिए तो समृद्धि और संपदा के द्वार खोल देते है किंतु स्वयं अपने पर संयम रखते है और तृष्णा का त्याग भी करते है, जिसका प्रमाण उनका वाहन मूषक (चूहा) यानी नितांत छोटा जीव है जो अपरिग्रह का प्रमाण है। गणेशजी स्वयं में अपरिग्रही होकर विघ्नहर्ता है तो अपरिग्रह के आचरण से लोभ रूपी बाधा हरने वाला पर्युषण भी तो विघ्नहर्ता हुआ।