
कोटा . शाही शौक पूरा करने के लिए दरा के जंगलों में तामीर कराई गई शिकारगाह ने राजपूताने का इतिहास ही बदल दिया। निर्माण के 200 साल बाद जब यह जगह कोटा रियासत के हाथ से खिसक कर अंग्रेजों के कब्जे में पहुंची तो उन्होंने यहां बैठ राजपूताने की आखिरी रियासत झालावाड़ का नक्शा खींच डाला।
कोटा के महाराव राम सिंह प्रथम (सन् 1696 से 1707) ने जनाना और मर्दाना शिकारगाहों के साथ-साथ रावंठा महल का निर्माण कराया। सन् 1817 में जब कर्नल जेम्स टॉड को पिंडारियों के दमन की कमान मिली तो उसने रावंठा की इसी शिकारगाह को अपना ठिकाना बनाया। यही वो जगह थी जहां टॉड और झाला जालिम सिंह की पहली मुलाकात हुई और गहरी दोस्ती में तब्दील हो गई।
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दोस्ती से हासिल किया अधिकार
झाला टॉड को प्रभावित करने में इस कदर सफल रहे कि उन्होंने अपने वंशजों के लिए कोटा रियासत के मुसाहिबे आला और हाकिम फौज का पद हमेशा के लिए हासिल करने को 26 दिसंबर 1817 के दिन गुप्त संधि पर दस्तखत करा लिए। इस संधि को बदलवाने के लिए महाराव को अपने ही हाकिम फौज और अंग्रेजों से युद्ध करना पड़ा, लेकिन तब तक सियासत से उनकी पकड़ खत्म हो चुकी थी।
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बंट गई कोटा रियासत
जालिम सिंह के बाद उसका पुत्र भी ज्यादा दिन जीवित नहीं रह सका, लेकिन जब पौत्र झाला मदन सिंह ने विरासत में मिला पद संभाला तो तत्कालीन महाराव राम सिंह ने इसका विरोध कर दिया। नतीजन 1834 में दोनों के बीच झगड़ा हो गया। अंग्रजों ने मौके का फायदा उठाया और पुरानी संधि को ढ़ाल बना कोटा रियासत के टुकड़े कर डाले।
कोटा के 17 परगने जिनकी वार्षिक आय 12 लाख रुपये थी, को अलग कर झालावाड़ नाम से नया राज्य स्थापित कर मदनसिंह को इसका प्रथम शासक नियुक्त कर दिया। इतना ही नहीं 8 अप्रैल 1838 को झालावाड़ नरेश और अंग्रेजों ने एक और संधि की जिसके अनुसार मदनसिंह को राजराणा की उपाधि दे दी गई। इस उपाधि में उनका दर्जा राजपूताने के दूसरे राजाओं के बराबर माना गया। बदले में अंग्रेजों को सालाना 80 हजार रुपये कर तथा आवश्यकता पडऩे पर सैन्य सहायता भी देने का वचन दिया गया।
Published on:
18 Apr 2018 11:56 am
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