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आपकी मौत के बाद आपके सोशल मीडिया अकाउंट्स का क्या होता? जानिए भारत में क्यों जरूरी है ‘डिजिटल विरासत’ कानून

Social Media Accounts After Death: डिजिटल विरासत या डिजिटल अवशेष क्या है? मौत के बाद फेसबुक, इंस्टाग्राम, जीमेल, व्हाट्सऐप जैसे ऑनलाइन अकाउंट्स का क्या होता है, डिजिटल पहचान कैसे सुरक्षित रखें और भारत में डिजिटल विरासत कानून की स्थिति क्या है, समझिए विस्तार से।

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Social Media Accounts After Death

Social Media Accounts After Death (Image: Gemini)

Social Media Accounts After Death: आज कई लोग ऐसे हैं जो मौत के मुंह में समा गए लेकिन वे ऑनलाइन प्लेट फॉर्म पर हैं। हाल ही कई ऐसी घटनाएं हुई हैं कि वह शख्स तो मर गया लेकिन उसके बर्थ डे पर उसके ऑनलाइन फ्रेंड्स को बर्थ डे विश करने के मैसेज मिल रहे हैं। ऐसा हो रहा है कि किसी के प्रियजन का निधन हो गया है, लेकिन सालों बाद भी उनके जन्मदिन पर फेसबुक आपको ‘सेलेब्रेट विद् ए पोस्ट’ की याद दिला रहा है।

इंस्टाग्राम पर उनकी मुस्कुराती तस्वीर, जीमेल इनबॉक्स में आती सूचनाएं और वाट्सऐप पर उनका आखिरी सीन…यह सब मिलकर एक नया सवाल खड़ा करता है। मौत के बाद हमारी डिजिटल पहचान का क्या होता है? इसे अंग्रेजी में डिजिटल रिमेंस (Digital Remains) कहते हैं और हिंदी में ‘डिजिटल अवशेष’ या ‘डिजिटल विरासत’ कह सकते हैं। चलिए जानते हैं डिजिटल विरासत से जुड़े विभिन्न पहलू के बारे में।

डिजिटल विरासत क्या है?

जब किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है तब उनके सोशल मीडिया अकाउंट्स, ईमेल, क्लाउड स्टोरेज, गूगल ड्राइव, ऑनलाइन बैंकिंग लॉगिन, ओटीटी सब्सक्रिप्शन जैसे सभी डिजिटल प्लेटफॉर्म सक्रिय रह जाते हैं। इनका मालिक अब इस दुनिया में नहीं होता है। लेकिन उनकी डिजिटल मौजूदगी जारी रहती है, जो कभी भावुक कर देती है तो कभी चौंकाती है। इसे विशेषज्ञ अब डिजिटल रिमेंस या डिजिटल विरासत कहने लगे हैं। डिजिटल विरासत केवल तकनीकी विषय नहीं है यह संवेदनशीलता, निजता और उत्तराधिकार का नया यथार्थ है। आज जब हम अपनी पूरी जिंदगी ऑनलाइन जी रहे हैं तो यह तय करना भी जरूरी है कि हमारी ऑनलाइन मौत कैसी होगी।

भावनात्मक और सामाजिक असर

कई बार किसी मृत व्यक्ति की तस्वीर या पुराना मैसेज अचानक सामने आने से भावनात्मक आघात होता है। यही नहीं कुछ स्कैमर्स इन प्रोफाइल्स को हैक करके फर्जीवाड़ा भी करते हैं। जैसे बैंक पासवर्ड, पर्सनल डिटेल्स का दुरुपयोग किया जा ता है। कुछ लोग चाहकर भी अपने प्रियजनों की डिजिटल यादें मिटा नहीं पाते, बस एक भावनात्मक द्वंद्व बना रहता है।

कौन-से प्लेटफॉर्म क्या करते हैं?

यदि कोई यूजर मृत्यु प्रमाण पत्र के साथ निवेदन करे, तो फेसबुक अकाउंट को मेमोरियलाइज्ड किया जा सकता है। जहां लिखा आता है, Remembering…या परिवार चाहे तो डिलीट भी किया जा सकता है।

अगर कोई कुछ नहीं करता तो अकाउंट अनिश्चित काल तक एक्टिव रह सकता है। इंस्टाग्राम अकाउंट भी फेसबुक की तरह मेमोरियल मोड में जा सकता है। कोई कार्रवाई न हो तो अकाउंट कई साल तक बना रह सकता है। जीमेल में एक सुविधा इनऐक्टिव अकाउंट मैनेजर की है। इसमें यूजर खुद तय कर सकता है कि अगर वह निश्चित अवधि तक लॉगिन न करे, तो उसका डेटा नष्ट कर दिया जाए या किसी ट्रस्टी को ट्रांसफर कर दिया जाए। मौत के बाद परिजनों द्वारा वैध दस्तावेज देने पर डेटा एक्सेस और नष्ट हो सकता है।

एक्स अकाउंट में यदि कोई लॉगिन न करे और मृत्यु प्रमाण पत्र न दिया जाए, तो छह महीने से एक साल तक निष्क्रिय रहने पर ट्विटर अकाउंट डिलीट हो सकता है। यू-ट्यूब, वाट्सएप में कोई स्पष्ट पॉलिसी नहीं है कि कितने समय बाद ये अकाउंट स्वत: बंद हो जाएंगे। कई बार ये सालों तक यूजर के बिना एक्टिव रह सकते हैं। लिंक्डइन पर भी Remembering फीचर है, लेकिन इसके लिए आवेदन जरूरी है।

भारत में कानून क्या कहता है?

भारत में फिलहाल कोई स्पष्ट डिजिटल उत्तराधिकार कानून नहीं है। आईटी अधिनियम 2000 या डेटा प्रोटेक्शन कानून इस विषय को सीधे नहीं छूते। परिवार के सदस्य आम तौर पर मृत्यु प्रमाण पत्र भेजकर कंपनियों से अकाउंट बंद करने का अनुरोध करते हैं, लेकिन इसमें कोई कानूनी बाध्यता नहीं होती है।

समाधान क्या हो सकते हैं?

जैसे संपत्ति की वसीयत होती है, वैसे ही व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद डिजिटल खातों को कौन संभाले, यह पहले से तय कर सकता है। लोगों को अकाउंट सेटिंग्स में जाकर इन एक्टिव पॉलिसी सक्रिय करनी चाहिए। सरकार को डिजिटल उत्तराधिकार नीति बनानी चाहिए ताकि किसी की डिजिटल पहचान सुरक्षित और सम्मानजनक तरीके से समाप्त हो।