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अलमारी खोलते ही कपड़ों का अंबार सामने होता है, फिर भी मन कहता है…पहनने को कुछ नहीं है। यह सिर्फ एक वाक्य नहीं, बल्कि हमारी बदलती जीवनशैली का आईना बन चुका है। चमचमाते मॉल, हर पल बदलते फैशन ट्रेंड और ऑनलाइन सेल की चकाचौंध ने हमें जरूरत से कहीं ज्यादा खरीदना सिखा दिया है।
कपड़े अब सिर्फ पहनने की चीज नहीं रहे, वे हमारी पहचान, हमारी सोशल इमेज बन गए हैं। इसी कारण एक तरफ घरों में कपड़े रखने की जगह कम पड़ रही है, तो दूसरी तरफ धरती पर बोझ बढ़ता जा रहा है। कपड़ों के उत्पादन में बेहिसाब पानी, रसायन और ऊर्जा खर्च हो रही है, जिसकी कीमत प्रकृति को चुकानी पड़ रही है।
अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों के मुताबिक, लोग पंद्रह साल पहले की तुलना में लगभग 60 प्रतिशत ज्यादा कपड़े खरीद रहे हैं। खास बात है कि इनमें से कई कपड़े कभी पहने ही नहीं जाते है।
लोग मॉल या ऑनलाइन जाते हैं और बिना सोचे-समझे कपड़े खरीद लेते हैं, जिनकी जरूरत भी नहीं होती। इसे इंपल्स बाइंग कहते हैं, जो आदत बन जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर हम आदतें नहीं बदलेंगे, तो पर्यावरणीय संकट बढ़ेगा। भारत में फास्ट फैशन इंडस्ट्री तेजी से फैल रही है और इसके उत्पादन से पानी की बर्बादी और प्रदूषण हो रहा है।
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Published on:
28 Dec 2025 03:40 am
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