
अखिलेश आखिर क्यों हैं चुप, उनकी क्या है बसपा से निपटने की रणनीति?
लखनऊ. गठबंधन (spBSPBreakup ) तोड़ने के बाद मायावती (Mayawati) लगातार समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) पर हमलावर हैं। वह मुलायम तक को नहीं बख्श रही हैं। बावजूद अखिलेश यादव चुप हैं। अक्सर बोलने वाली उनके ट्विटर हैंडल की चिड़िया भी 15 जून से खामोश है। इतना ही नहीं सपा प्रमुख ने इस मुद्दे पर पार्टी के नेताओं को भी मौन रहने का आदेश दिया है। दरअसल समाजवादी पार्टी को खामोशी में ही अपना फायदा दिख रहा है। पार्टी रणनीतिकारों को लगता है कि मायावती के मामले पर मौन रहकर ही उन्हें करारा जवाब दिया जा सकता है। मायावती द्वारा सपा से गठबंधन तोड़े जाने से बसपा के वोटरों का एक बड़ा वर्ग नाराज है। उसे लगता है कि मायावती ने अखिलेश यादव के साथ धोखा किया है।
मायावती के संगीन आरोपों पर अखिलेश चुप क्यों हैं? पत्रिका के इस सवाल पर सपा नेता तो चुप हैं, क्योंकि इस मुद्दे पर अखिलेश ने पार्टी नेताओं को किसी भी तरह की बयानबाजी करने से रोक रखा है, लेकिन सपा समर्थक खासे भड़के हुए हैं। हरदोई जिले में बालामऊ विधानसभा क्षेत्र के कृष्णपाल यादव इस सवाल का जवाब बहुत ही फिल्मी अंदाज में देते हैं। उन्होंने कहा कि शेर जब बदन सिकोड़ तो यह मत समझना की वह डर गया, बल्कि वह जोरदार हमले की तैयारी में है। मतलब साफ है कि सपा अंदर ही अंदर मायावती से बदले की रणनीति पर काम कर रही है।
नाम न छापने की शर्त पर सपा के एक बड़े नेता ने कहा कि अखिलेश यादव चाहें तो मायावती के आरोपों का तगड़ा जवाब दे सकते हैं, लेकिन इससे सिर्फ स्थितियां बिगड़ेंगी ही। पार्टी भले ही खामोश है, लेकिन जनता में मायावती की छवि नकारात्मक बन रही है। उपचुनाव (UP Byelections 2019) इसका पूरा लाभ सपा को मिलना तय है। उन्होंने कहा कि मायावती द्वारा गठबंधन तोड़े जाने से पिछड़ों को ही नहीं, बल्कि दलितों को भी बहुत तकलीफ हुई है।
बसपा के वोटबैंक पर सपा की नजर
मायावती के बयानों पर समाजवादी पार्टी भले ही खामोश है, लेकिन पार्टी ने अपने खिसकते जनाधार को वापस लाने के साथ-साथ मायावती के दलित वोट बैंक में सेंध लगाने पर नजर गड़ा दी है। दलित उत्पीड़न के मामलों पर मायावती खामोश हैं, लेकिन अखिलेश यादव सक्रिय हैं। प्रतापगढ़ में दबंगों द्वारा दलित की झोपड़ी में आग लगाकर मारने का मामला हो या फिर उन्नाव में दलित लड़की से बलात्कार का मामला। सपा ने एक टीम बनाकर जांच रिपोर्ट तैयार करने को कहा है। इसके अलावा समाजवादी पार्टी पासी नेता इंद्रजीत सरोज समेत कई दलित नेताओं को अहम पद देकर उन्हें आगे बढ़ाने की तैयारी में है। मकसद साफ है कि 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले दलितों का बड़ा तबका सपा के खेमे में लाने की तैयारी शुरू हो गई।
2012 की तर्ज पर यूपी का दौरा करेंगे अखिलेश यादव
सपा नेता ने बताया कि संसद सत्र खत्म होते ही अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के सभी जिलों का दौरा करेंगे। लोगों से मिलेंगे और उन्हें पार्टी की नीतियों से अवगत कराएंगे। जनता की समस्याओं को लेकर अखिलेश यादव खुद पार्टी कार्यकर्ताओं संग सड़क पर उतरकर संघर्ष करेंगे। गौरतलब है कि वर्ष 2012 में मुख्यमंत्री बनने के बाद से अखिलेश यादव ने जिलों का दौरा नहीं किया है। समाजवादी पार्टी ने अपने नेता, पदाधिकारी, जिला, बूथ और गांव स्तर के कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया है कि वो जनता के बीच जाएं। सभी वर्गों खासकर कमजोर वर्ग की आवाज बनें।
अखिलेश नहीं मायावती के सामने बड़ी चुनौती
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो आने वाले दिनों में चुनौती अखिलेश (Akhilesh Yadav) के लिए नहीं, मायावती (Mayawati) के सामने बड़ी है। अखिलेश के लिए राजनीतिक संकट तात्कालिक है।क्योंकि अखिलेश यादव अभी युवा हैं और अपनी पारी को शुरू कर रहे हैं। जैसा कि अखिलेश यादव खुद कहा कि वह विज्ञान के छात्र रहे हैं, राजनीति में भी उन्होंने एक प्रयोग किया था। उनका मानना है कि मायावती के लिए आगे की राह आसान नहीं रहने वाली है। क्योंकि गठबंधन (SP BSP Breakup) की संजीवनी के कारण ही लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी शून्य से दस जीत सकीं। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती मुस्लिमों को साथ लेने की होगी, जो लंबे समय से बड़ी संख्या में समाजवादी पार्टी के साथ रहा है। सपा और भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस भी नजर दलित वोटरों पर है।
Updated on:
26 Jun 2019 03:45 pm
Published on:
26 Jun 2019 03:39 pm
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