फरीदाबाद में हुई थी बैठक भाजपा सांसद और मंत्रियों के कामकाज को परखने के लिए 14, 15 और 16 जून को फरीदाबाद स्थित एक होटल में पार्टी पदाधिकारियों के साथ ही संघ के नेताओं की अहम बैठक हुई थी। इस बैठक में उत्तर प्रदेश के कई नेता भी शामिल हुए थे। बैठक के दौरान यूपी के 19 से ज्यादा सांसदों के कामकाज पर प्रश्न चिन्ह लगा था। बैठक में शामिल सूत्रों का कहना है कि संघ के संगठन मंत्रियों से अपने-अपने प्रभार क्षेत्र में पड़ने वाले सभी संसदीय सीटों के सामाजिक-राजनीतिक समीकरणों का विस्तृत विवरण, सांसद के कामकाज, कमियों, क्षेत्र की समस्यों के बारे में इनपुट जुटाए जाने का आदेश दिया था। इसी के बाद संघ और अमित शाह की टीम जमीन पर उतर चुकी है और जुलाई 2018 के आखिर तक अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया है। उसके आधार पर तय किया जाएगा कि आगामी लोकसभा चुनाव में किन सांसदों को टिकट देना ठीक रहेगा, किनको नहीं। सूत्रों के अनुसार यूपी में करीब 19 सासदों के टिकट कटने की संभावना है।
यूपी में फीडबैक ले रहे सुनील बंसल सांसदों के कार्यो का फीडबैक यूपी के संगठन मंत्री सुनील बंसल ले रहे हैं। वह कानपुर आए थे और संघ व भाजपा पदाधिकारियों के साथ बैठक की थी। बैठक के दौरान भाजपा कार्यकर्ताओं ने जनप्रतिनिधियों के कामकाज पर सवाल दागे थे। इसी के बाद सुनील बंसल कानपुर-बुंदेलखंड के 9 सांसदों के बारे में बूथ अध्यक्षों से रिपोर्ट बनाकर देने का कहा था। सूत्रों की मानें तो बूथ अध्यक्ष कानपुर-बुंदेलखंड के 6 सांसदों के कामकाज से खुश नहीं है। इसी के चलते इनके टिकट कटने की बात निकल कर सामने आई है। सपा-बसपा के गठबंधन के बाद भाजपा को लोकसभा की अधिक सीटें हारने की आशंका है। इसलिए यूपी में जिन ससंदीय सीटों पर भाजपा सांसदों के कामकाज और व्यवहार की अधिक शिकायत है, उनके टिकट काटकर अपने किसी अन्य कार्यकर्ता को दिया जाएगा।
पार्टी छोड़ सकते हैं सांसद वहीं इस बारे में कई भाजपा सांसदों का कहना है कि व्यवहार और कार्य की रिपोर्ट के आधार पर अगर टिकट तय किया जाए तो न केवल लोकसभा बल्कि राज्यसभा के भी आधे से अधिक भाजपा सांसदों को न तो टिकट दिया जाना चाहिए और न ही संगठन व सत्ता में कोई पद। रिपोर्ट के मुताबिक किस तरह से जातिवाद और अन्य कई कारण से राज्यसभा सांसद बनाए गए हैं। किस तरह से अन्य पार्टी के भ्रष्टाचार आरोपी और विवादित लोगों को पार्टी में लाकर टिकट दिया गया है, मंत्री बनाया गया है, यह सबके सामने है। इससे भी कार्यकर्ताओं में नाराजगी पहले से है। वहीं अब जिन कार्यकर्ताओं ने जिंदगीभर नेताओं का झोला ढोया, दरी बिछाई, संगठन के लिए काम किया, वह आज यदि सांसद हैं और एक रिपोर्ट को आधार बनाकर अगले लोकसभा चुनाव में उसका टिकट काट दिया जाएगा, तो ऐसे में उनमें से बहुत से लोग चुप नहीं बैठेंगे। किसी अन्य पार्टी में भी जा सकते हैं या फिर निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे। इससे जिस सोच और योजना के तहत इनके टिकट काटे जायेंगे, वह और उल्टा पड़ जायेगा और केवल किसी के व्यवहार व कार्य के आधार पर टिकट काटेंगे तो क्षेत्र के जातीय समीकरण, अन्य पार्टी का कौन प्रत्याशी है, उसके समीकरण में फंसकर भी मात खा सकते हैं।