9 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

मिशन 2019 : बीजेपी के लिये आसान नहीं होगा इन पांच चुनौतियों से पार पाना

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सत्तारूढ़ दल बीजेपी के सामने बीजेपी के सामने चुनौतियों का अंबार है...

3 min read
Google source verification

लखनऊ

image

Hariom Dwivedi

Jun 09, 2018

five big challanges for BJP

मिशन 2019 : बीजेपी के लिये आसान नहीं होगा इन पांच चुनौतियों से पार पाना

लखनऊ. लोकसभा चुनाव 2019 में होंगे। करीब साल भर का वक्त बचा है। लेकिन अभी से सभी दलों ने कील-कांटा दुरुस्त करना शुरू कर दिया है। मौजूदा समीकरणों को देखें तो सत्तारूढ़ दल बीजेपी के सामने बीजेपी के सामने चुनौतियों का अंबार है। वहीं, उपचुनाव में जीत से उत्साहित विपक्षी दल महागठबंधन की ओर बढ़ रहे हैं। हालांकि, भाजपा नेताओं का दावा कि यह सपा-बसपा समेत अन्य पार्टियों का संभावित गठबंधन अवसरवादी है। इससे बीजेपी को कोई नुकसान नहीं होने वाला है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के सामने पांच बड़ी चुनौतियां हैं, जिनसे पार पाये बिना 2019 में जीत का स्वाद चख पाना मुश्किल होगा। आइये जानते हैं कि क्या हैं वे पांच चुनौतियां जो लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के सामने मुंह बाए खड़ी हैं।

उम्मीदों का बोझ
राजनीतिक जानकारों की मानें तो 2014 में चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने किसानों, मजदूरों और व्यापारियों समेत हर वर्ग से तमाम वादे किये थे। जनता के सामने मोदी सरकार को उन वादों की कसौटी पर खरा उतरना अभी बाकी है। जैसे कि यूपी में किसान कर्जमाफी तो हुई, लेकिन अभी भी गन्ना, आलू, मृदा परीक्षण, गेहूं खरीद में कालाबाजारी, किसान फसल बीमा में पेंच जैसी किसानों की कई समस्याएं अभी बरकरार हैं। युवा भी सरकारी नौकरी की राह ताक रहे हैं। जीएसटी से व्यापारी वर्ग परेशान है। प्राइमरी शिक्षा की हालत में कोई कोई खास सुधार नहीं हुआ है। चिकित्सकों और दवाओं के अभाव में ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं भी बदहाल हैं। वरिष्ठ पत्रकार हीरेश पांडेय कहते हैं कि नरेंद्र और भाजपाइयों ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले जनता से इतने वादे कर लिये, चार साल में जो पूरे नहीं हो सके हैं।

यह भी पढ़ें : अपनों की नाराजगी से बढ़ी बीजेपी की टेंशन

अपनों की नाराजगी
लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के करीब आधा दर्जन सांसद व विधायक योगी सरकार से नाराज हैं। यूपी सरकार में मंत्री ओम प्रकाश राजभर तो खुलेआम सरकार पर निशाना साधते रहे हैं। वहीं बहराइच से सांसद सावित्रीबाई फुले आये दिन केंद्र व प्रदेश सरकार के खिलाफ बयानबाजी करती रहती हैं। दलितों, पिछड़ों संविधान और जिन्ना जैसे तमाम मुद्दों पर पार्टी रुख से अलग बयान देकर उन्होंने बगावत की धार और तेज कर दी है। खबरें हैं कि वह चुनाव से ठीक पहले बसपा का दामन थाम सकती हैं। हालांकि, उन्होंने ऐसी किसी भी तरह की खबरों से इनकार किया है। इनके अलावा करीब आधा दर्जन विधायकों-सांसदों ने योगी सरकार के खिलाफ नाराजगी जताई है। इनमें से कुछ ने तो पार्टी आलाकमान को लेटर लिखकर अपना विरोध भी दर्ज कराया है।

कोर वोटर का खिसकना
बीजेपी जब सत्ता में आई तो उसके एजेंडे में राम मंदिर भी शामिल था। यूपी में कट्टर हिंदूवादी नेता रहे योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। भले ही अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, लेकिन बीजेपी के कोर वोटर माने जाने वाले अयोध्या के साधु-संत राम मंदिर निर्माण की मांग कर रहे हैं। मंदिर के पुजारी समेत कई महंतों ने मंदिर निर्माण न होने की सूरत में 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा का विरोध करने का भी ऐलान किया है। हालांकि, उन्हें मनाने का जिम्मा योगी आदित्यनाथ को सौंपा गया है। इसके अलावा अपर कास्ट (ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य) भी बीजेपी सरकार से नाराज बताये जा रहे हैं। हालांकि, ब्राह्मणों को मनाने की जिम्मेदारी पार्टी प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्रनाथ पांडेय के कंधों पर है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भले ही बीजेपी लाख कोशिश करे, लेकिन अगर ऐसा ही रहा तो अपर कास्ट के वोटर बीजेपी से छिटक सकते हैं।

यह भी पढ़ें : आखिर योगी-मोदी से क्यों रूठे हैं ये बाबा

जातीय समीकरण
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सभी वर्गों के वोट मिले थे। पार्टी को अपर कास्ट के अलावा दलितों व पिछड़ों के भी खूब वोट मिले थे। लेकिन मौजूदा हालात को देखें तो जहां मायावती दलित वोटरों को सहेजते नजर आ रही हैं, वहीं अखिलेश यादव भी अगड़े-पिछड़ों को रिझाने की जुगत में जुटे हैं। गोरखपुर-फूलपुर के बाद कैराना और नूरपुर में बीजेपी की हुई हार साबित करती है कि उपचुनाव वाले क्षेत्रों में पार्टी जातीय समीकरण साधने में नाकाम रही। हालांकि, बीजेपी के नेताओं का दावा है उपचुनाव परिणाम का असर 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में नहीं पड़ने वाला। इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी सरकारी योजनाओं के जरिये 2019 से पहले सभी वर्गों के वोटरों को लुभाने की फिराक में है।

संभावित महागठबंधन की चुनौती
लोकसभा चुनाव से पहले महागठबंधन की आहट ने भाजपाइयों के चेहरे की रौनक उड़ा रखी है। ये बात दीगर है कि भाजपाई खुद को बेफिक्र दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। गोरखपुर-फूलपुर के बाद नूरपुर और कैराना उपचुनाव परिणाम के आंकड़े बता रहे हैं कि यहां भारतीय जनता पार्टी सपा-बसपा गठबंधन के सामने टिक नहीं पाई है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अगर 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान सपा-बसपा और कांग्रेस ने अन्य छोटी पार्टियों से मिलकर महागठबंधन किया तो निश्चित ही ये बीजेपी के लिये बड़ा सिरदर्द साबित होगा। आम चुनाव में महागठबंधन होगा या नहीं, भविष्य के गर्त में है, लेकिन इसका ताना-बाना बुना जाने लगा है।

यह भी पढ़ें : मायावती के पेंच से मुश्किल में अखिलेश, महागठबंधन को लेकर संदेह