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हिन्दू समाज में नए वर्ष की शुरूआत शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा से होती है। यानि चैत्र के नवरात्रि के साथ नव वर्ष का भी शुभारंभ होता है। नवरात्रि के इन दिनों में लगभग सभी घरों में पूजा-पाठ और भक्तिमय माहौल रहता है। नवरात्रि के हर दिन अलग अलग मां के स्वरूपों की पूजा करके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मां शैलपुत्री की पूजा से नवरात्रि शुरू होते हैं और सिद्धिदात्री की पूजा का साथ समाप्त होते हैं।
चैत्र नवरात्रि में अब कुछ ही दिन बचे हैं। इन दिनों में हर कोई मां को सच्चे दिल और आत्मा से पूजा करके याद करता है। नवरात्रि के पावन 9 दिनों हर कोई पूजा-पाठ सुख शांति के लिए अपने तरीकों से पूजा पाठ करती है। जिससे मां भगवती की आप पर हमेशा कृपा दृष्टि बनी रहे और जीवन में सुख समृद्धि और खुशहाली छाई रहे। लोग उपवास रखते हैं और माता के हर स्वरूप को प्रसन्न करने के लिए मंत्र उच्चारण और पाठ करते हैं। माता के वह नौ स्वरूप के जानने के साथ साथ इनसे जुड़े रहस्य भी जानिए।
पहला दिन - माता शैलपुत्री
नवरात्रि के पहले दिन माता के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा होती है। मां पार्वती को शैलपुत्री के नाम से भी जाना जाता है। पर्वतराज हिमालय के घर पर जन्म लेने के कारण मां पार्वती को शैलपुत्री कहा जाता है। शैल का शाब्दिक अर्थ पर्वत होता है।
दूसरा दिन – ब्रह्मचारिणी
माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए वर्षों कठोर तप किया था। इस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम मिला। ब्रह्मचारिणी का अर्थ है कठोर तपस्या का आचरण करने वाला।
तीसरा दिन - चंद्रघंटा
मां पार्वती के मस्तक पर अर्ध चंद्रमा के आकार का तिलक लगा रहता है, इस कारण उनका एक स्वरूप चंद्रघंटा कहलाता है
चौथा दिन - कूष्मांडा
मां आदिशक्ति ने अपने भीतर उदर से अंड तक ब्रह्मांड को समेट रखा है। उनमें पूरे ब्रह्मांड को उत्पन्न करने की शक्ति है, इसलिए उन्हें माता कुष्मांडा के नाम से भी जाना जाता है।
पांचवा दिन - स्कंदमाता
माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय जी को स्कंद के नाम से भी जाना जाता है। इस कारण मां पार्वती को स्कंद माता भी कहते हैं।
छठा दिन - कात्यायनी
महिषासुर नामक अत्याचारी दैत्य का वध करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ने मिल कर अपने तेज से माता को उत्पन्न किया था। देवी के प्रकट होने के बाद सबसे पहले उनके पूजा महर्षि कात्यायन ने की थी। इसलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा।
सातवां दिन - कालरात्रि
संकट हरने के लिए माता के कालरात्रि स्वरूप का जन्म हुआ। संकट को काल भी कहते हैं, हर तरह के काल का अंत करने वाली मां कालरात्रि कहलाती हैं। उनके पूजन से सभी संकटों का नाश होता है।
आठवां दिन - महागौरी
भगवान शिव की अर्धांगिनी बनने के लिए माता गौरी ने वर्षों तक इतना तप किया था कि वह काली पड़ गई थीं। बाद में महादेव ने उनके तप से प्रसन्न होकर उन्हें अपनी पत्नी स्वीकार कर लिया था। उसके बाद भोलेनाथ ने माता गौरी को गंगाजी के पवित्र जल से स्नान कराया। मां गंगा के पवित्र जल से स्नान के बाद माता का शरीर बहुत गोरा और अद्भुत कांतिमान हो उठा, तब उसे उनका नाम महागौरी हो गया।
नौवां दिन - सिद्धिदात्री
माता का नौवां स्वरूप सिद्धिदात्री है। वह भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती है। इस कारण उन्हें सिद्धिदात्री कहते हैं। मान्यता है कि माता के इस स्वरूप की पूजा करने से सभी देवियों की उपासना हो जाती है।
Updated on:
27 Mar 2022 10:48 am
Published on:
27 Mar 2022 10:31 am
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