
रिसर्च में खुलासा: देश के 10 बड़े शहरों में अध्ययन, 15% किशोर कर चुके हैं नशा (फोटो सोर्स : WhatsApp News Group)
Drug Awareness Study Reveals Alarming Rise: बच्चे अपने आसपास के माहौल और घर-परिवार से जो सीखते हैं, वही उनकी आदतों और भविष्य की दिशा तय करता है। ताजा शोध ने इसी सच्चाई को एक बार फिर उजागर किया है। लखनऊ समेत देश के 10 बड़े शहरों में किए गए, एक बड़े अध्ययन में सामने आया है कि हर सात में से एक किशोर (15.1%) नशीली चीजों का सेवन कर चुका है। हैरानी की बात यह है कि इनमें से 40 फीसदी बच्चों के घरों में खुद बड़े लोग तंबाकू, शराब या अन्य मादक पदार्थों का सेवन करते हैं। यह अध्ययन चेतावनी देता है कि अगर घर का माहौल बदला नहीं गया, तो आने वाली पीढ़ी को नशे की लत से बचाना और भी मुश्किल हो जाएगा।
यह संयुक्त अध्ययन किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (KGMU) समेत देश के शीर्ष चिकित्सा और मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों द्वारा किया गया। इसमें देश के 10 प्रमुख शहरों को शामिल किया गया। बेंगलुरु, चंडीगढ़, दिल्ली, डिब्रूगढ़, हैदराबाद, इंफाल, जम्मू, लखनऊ, मुंबई और रांची।
प्रत्येक स्कूल से 200-200 छात्र-छात्राओं, यानी हर शहर से कुल 600 विद्यार्थी शामिल किए गए। इस तरह कुल 5,920 छात्र-छात्राओं पर यह अध्ययन आधारित है।
अध्ययन में कक्षा 8वीं से 12वीं तक के छात्र-छात्राओं को शामिल किया गया।
सभी विद्यार्थियों से नाम गोपनीय रखते हुए विस्तृत प्रश्नावली भरवाई गई, ताकि वे बिना डर और दबाव के अपनी बात रख सकें।
शोध के आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं-
यानी नशा केवल प्रयोग तक सीमित नहीं है, बल्कि धीरे-धीरे नियमित आदत बनता जा रहा है।
अध्ययन में सामने आया कि किशोरों में तंबाकू और शराब का सेवन सबसे ज्यादा है। इसके बाद भांग, गांजा और अफीम जैसे मादक पदार्थों का भी इस्तेमाल पाया गया। विशेषज्ञों के मुताबिक, तंबाकू और शराब को समाज में अपेक्षाकृत “सामान्य” समझे जाने के कारण बच्चे इन्हें कम खतरनाक मान लेते हैं।
इस अध्ययन का सबसे चौंकाने वाला निष्कर्ष यह है कि नशा करने वाले 40% विद्यार्थियों के घरों में माता-पिता या अन्य बड़े सदस्य खुद नशा करते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चे बड़ों को देखकर सीखते हैं। अगर घर में तंबाकू या शराब का सेवन आम बात है, तो बच्चों को भी यह गलत नहीं लगता। ऐसे में बच्चों को रोकना बेहद मुश्किल हो जाता है। यही कारण है कि शोधकर्ताओं ने इसे “पीढ़ी दर पीढ़ी फैलने वाली समस्या” बताया है।
अध्ययन में यह भी सामने आया कि 25.7% छात्र-छात्राओं के घरों में अक्सर झगड़े होते हैं। शोधकर्ताओं ने आशंका जताई कि पारिवारिक तनाव,घरेलू विवाद,मानसिक दबाव भी बच्चों को नशे की ओर धकेल सकता है। कई किशोर तनाव से बचने के लिए नशे का सहारा लेने लगते हैं।
हैरानी की बात यह है कि 95% विद्यार्थियों को यह जानकारी है कि नशीली चीजें उनकी सेहत के लिए नुकसानदायक हैं। इसके बावजूद वे नशा कर रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, जानकारी होना काफी नहीं है। जब तक परिवार, स्कूल और समाज साथ नहीं आएंगे, तब तक रोकथाम मुश्किल है। नाबालिगों को आसानी से मिल रहा नशा। अध्ययन का एक और गंभीर पहलू यह है कि 46.3% विद्यार्थियों ने माना कि नाबालिग होने के बावजूद उन्हें मादक पदार्थ आसानी से मिल जाते हैं।
यह आंकड़ा कानून के क्रियान्वयन पर भी सवाल खड़े करता है।
शोध में यह भी पाया गया कि-
इस शोध में देश के कई प्रतिष्ठित संस्थानों के विशेषज्ञ शामिल रहे, जिनमें—
जैसे प्रमुख संस्थान शामिल हैं। यह अध्ययन नेशनल मेडिकल जर्नल के ताजा अंक में प्रकाशित हुआ है।
सभी विशेषज्ञों का मानना है कि नशे की रोकथाम की शुरुआत घर से होनी चाहिए। माता-पिता को खुद उदाहरण पेश करना होगा, स्कूलों में काउंसलिंग और जागरूकता कार्यक्रम बढ़ाने होंगे। नाबालिगों को नशा बेचने वालों पर सख्ती जरूरी है
केजीएमयू के प्रणोब दलाल, एम्स नई दिल्ली की अंजू धवन, बिस्वदीप चटर्जी, रचना भार्गवा, पियाली मंडल, रविंद्र राव, अतुल अंबेकर, अश्वनी मिश्रा व आलोक अग्रवाल, राष्ट्रीय नशा मुक्ति उपचार केंद्र की अनीता चोपड़ा, असम मेडिकल कॉलेज (डिब्रूगढ़) के ध्रुब ज्योति भुयान, केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान (रांची) के सीआरजे खेस, राजकीय मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (चंडीगढ़) के अजीत सिदाना, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थान (बंगलूरू) के अरुण कंडासामी, भारतीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान (हैदराबाद) के एम. उमाशंकर, क्षेत्रीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान (मणिपुर) के आरके सिंह, जीएस मेडिकल कॉलेज और किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल (मुंबई) की शुभांगी पारकर, शेर-ए-कश्मीर चिकित्सा विज्ञान संस्थान (श्रीनगर) के अब्दुल वाहिद खान।
Published on:
15 Dec 2025 02:12 pm
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