31 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के मामले में सुनवाई टली, लखनऊ खंडपीठ में विचाराधीन है याचिका

याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से गुजारिश की है कि सरकार पहले सीटों के रोटेशन नियमानुसार की प्रकिया की फॉलो करें। इसके बाद चुनाव की अधिसूचना जारी किया जाए।

2 min read
Google source verification

लखनऊ

image

Anand Shukla

Dec 23, 2022

nikay.jpg

नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर आज हाईकोर्ट में एक बार फिर सुनवाई टल गई है। शनिवार को अब अगली सुनवाई होगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ खंड पीठ में याचिका विचाराधीन है। लखनऊ खंडपीठ ने यह आदेश रायबरेली निवासी सामाजिक कार्यकर्ता वैभव पांडेय व अन्य की जनहित याचिकाओं पर दिया है।

लखनऊ खंडपीठ में जब हुधवार को सुनवाई हुई थी तब याचिका कर्चाओं की ओर से दलील दी गई थी। कि निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण एक प्रकार का राजनीतिक आरक्षण है।इसका सामाजिक, आर्थिक अथवा शैक्षिक पिछड़ेपन से कोई लेना देना नहीं है। ऐसे में ओबीसी आरक्षण तय करने से पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई व्यवस्था के तहत डेडिकेटेड कमेटी द्वारा ट्रिपल टेस्ट कराना अनिवार्य है।

यह भी पढ़ें: सपा नेता उदयवीर ने किया पलटवार, बोले- सपा कार्यालय की चौकीदार करें राजभर
2017 में किए सर्वे का आरक्षण में आधार माना जाए

राज्य सरकार की तरफ से कोर्ट में पेश किया हलफनामे में कहा गया है कि 2017 में ओबीसी वर्ग का सर्वे कराया गया था। उसी सर्वे को आरक्षण का आधार मानकर ट्रिपल टेस्ट माना जाए। इसके आगे कहा गया है कि ट्रांसजेंडर्स को चुनाव में आरक्षण नहीं दिया जा सकता।

पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा था कि किन प्रावधानों के तहत निकायों में प्रशासकों की नियुक्ति की गई है? इस पर सरकार ने कहा कि 5 दिसंबर 2011 के हाईकोर्ट के फैसले के तहत इसका प्रावधान है।

सरकार ने तिहरे परीक्षण की औपचारिकता नहीं पूरी की

जनहित याचिकाओं ने निकाय चुनाव में आरक्षण पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत जब तक राज्य सरकार तिहरे परीक्षण की औपचारिकता पूरी नहीं करती तब तक ओबीसी को कोई आरक्षण नहीं दिया जा सकता। राज्य सरकार ने ऐसा कोई परीक्षण नहीं किया।

यह भी पढ़ें: पीएम मोदी से मिलने के बाद संजय निषाद बोले- मुद्दे हल नहीं होते तो जाना पड़ता है अभिभावक के पास