
जहरीली हवा में मुस्कराता लखनऊ: राजधानी की बिगड़ती सांसों की दर्दनाक हकीकत (फोटो सोर्स : Ritesh Singh )
Lucknow Chokes Under Toxic Air: लखनऊ अपनी तहज़ीब, अपनी नवाबी शान और अपनी नफासत के लिए मशहूर यह शहर इन दिनों एक ऐसी सच्चाई से जूझ रहा है, जिसके सामने उसकी चमक और रंगत भी फीकी पड़ती दिख रही है। शहर की सुबहें अब कोहरे से नहीं, बल्कि प्रदूषण की बारीक धुंध से शुरू हो रही हैं। रातें धुएं की परत ओढ़कर सो रही हैं। बाजारों की रौनक, पार्कों में टहलते लोग, गोमती किनारे की सुकून देने वाली हवा सबकुछ है, लेकिन इनमें सांस लेने की आजादी गुम है। लखनऊ का Air Quality Index (AQI) पिछले कई दिनों से “खराब” से “बहुत खराब” श्रेणी के बीच झूल रहा है। कई इलाकों में यह 300 से ऊपर दर्ज हुआ,जो स्वास्थ्य विशेषज्ञों की भाषा में “slow poison” यानी धीमा लेकिन खतरनाक जहर है। शहर की मुस्कान अभी भी कायम है, लेकिन उसकी सांसें अब साफ तौर पर भारी सुनाई देने लगी हैं।
लखनऊ के प्रमुख इलाकों गोमती नगर, हजरतगंज, चारबाग, अलीगंज, आशियाना और इंदिरा नगर में हवा का स्तर लगातार खराब होता जा रहा है। मौसम विभाग और CPCB के आंकड़े बताते हैं कि हवा में मौजूद PM 2.5 और PM 10 कण सामान्य मानक से कई गुना ज्यादा दर्ज हो रहे हैं।
इसका सीधा असर स्वास्थ्य पर बढ़ते श्वसन रोग,गले में खराश,आंखों में जलन,सीने में भारीपन,अस्थमा के मामले चरम पर,हार्ट पेशेंट्स में जोखिम बढ़ा बाल रोग विशेषज्ञों के अनुसार, बच्चों और बुजुर्गों के लिए यह हवा बेहद खतरनाक है, क्योंकि उनके फेफड़े प्रदूषण को झेल नहीं पाते। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) और SGPGI में पिछले 15 दिनों में सांस से जुड़े मरीजों की संख्या में 20–25% की वृद्धि दर्ज हुई है।
विशेषज्ञों के अनुसार, राजधानी में प्रदूषण बढ़ाने वाले प्रमुख कारण निम्न हैं-
लखनऊ में वाहनों की संख्या पिछले 10 वर्षों में दोगुनी से अधिक हो चुकी है।
हर दिन शहर की सड़कों पर 10–12 लाख गाड़ियां दौड़ती हैं।
पेट्रोल-डीजल का धुआं PM 2.5 का सबसे बड़ा स्रोत है।
चारबाग, अमौसी, गोमती नगर विस्तार, कैसरबाग, आलमबाग सहित कई इलाकों में बड़े-बड़े निर्माण कार्य चल रहे हैं।
इनसे निकलने वाली धूल हवा में उड़कर प्रदूषण को कई गुना बढ़ा देती है।
सर्दी बढ़ते ही लोग और कई सफाईकर्मी गली-मोहल्लों में कचरा जलाने लगते हैं।
यह PM 10 और कार्बन मोनोऑक्साइड के स्तर को तेजी से बढ़ाता है।
विकास परियोजनाओं और शहरीकरण के नाम पर हजारों पेड़ कट गए।
गोमती किनारे की हरियाली राहत देती है, लेकिन पूरा शहर संभालने के लिए वह नाकाफी हो चुकी है।
सर्दियों में हवा जमीन के करीब रुक जाती है और प्रदूषक ऊपर नहीं जा पाते। इससे AQI तेजी से खराब होता है।
लखनऊ नगर निगम और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से कुछ कदम उठाए जा रहे हैं, मुख्य सड़कों पर पानी का छिड़काव, कचरा जलाने पर रोक, निर्माण स्थलों पर एंटी-स्मॉग मशीनों का उपयोग, ट्रैफिक मैनेजमेंट,प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर चालान,लेकिन हकीकत यह है कि इनका प्रभाव न तो शहर की हवा में दिख रहा है, न ही लोगों की परेशानियों में कमी हो रही है। कई जगह पानी के छिड़काव की व्यवस्था कागज़ों में ज्यादा और मैदान में कम दिखती है।
पर्यावरण कार्यकर्ता छोटे-छोटे प्रयासों का बड़ा असर बताते हैं,जैसे-पेड़ लगाना, पौधों की रखवाली, प्लास्टिक कम करना, कचरा न जलाना इत्यादि।
यह शहर सिर्फ अपनी इमारतों, बाजारों या खानपान से नहीं, बल्कि यहाँ के लोगों से पहचाना जाता है। आज वह हमसे एक ही बात कह रहा है,“मेरी हवा को बचाओ, ताकि मैं फिर से शान से सांस ले सकूं।”लखनऊ मुस्करा जरूर रहा है, लेकिन उसकी मुस्कान के पीछे छिपी थकान को समझना अब बेहद जरूरी है। शहर का भविष्य हमारे फैसलों पर निर्भर करता है और सही फैसले समय रहते लिए गए तो लखनऊ फिर उसी तरह चमकेगा, जैसे वह हमेशा से चमकता आया है।
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Published on:
12 Dec 2025 04:00 am
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