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Health: एनीमिया, कुपोषण और मिथकों के बीच फंसी गर्भवती सविता-समय पर देखभाल से ही सुरक्षित रहता है मातृत्व

Pregnancy Care: गर्भावस्था के दौरान एनीमिया, कुपोषण और नियमित जांच की कमी महिलाओं और शिशुओं की जान के लिए बड़ा खतरा बन जाते हैं। मलिहाबाद की 35 वर्षीय सविता की कहानी बताती है कि जागरूकता, समय पर जांच और आवश्यक दवाओं का सेवन मातृत्व को सुरक्षित बनाने के लिए अनिवार्य है।

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लखनऊ

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Ritesh Singh

Dec 12, 2025

गर्भावस्था मांगती है फोकस्ड केयर : एनीमिया, कुपोषण और मिथकों के बीच मातृत्व की असली चुनौती (फोटो सोर्स : Whatsapp News Group)

गर्भावस्था मांगती है फोकस्ड केयर : एनीमिया, कुपोषण और मिथकों के बीच मातृत्व की असली चुनौती (फोटो सोर्स : Whatsapp News Group)

When Pregnancy Becomes a Silent Risk: गर्भावस्था एक प्राकृतिक अवस्था है, लेकिन भारतीय समाज में यह अक्सर ‘सहज’ और ‘सामान्य’ समझ ली जाती है। जबकि चिकित्सा विज्ञान कहता है कि यह एक अत्यंत संवेदनशील अवधि है, जिसमें माँ और शिशु दोनों की सेहत निरंतर निगरानी और संतुलित देखभाल मांगती है। लेकिन यूपी के ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में अब भी गर्भवती महिलाओं के बीच कुपोषण, एनीमिया, नियमित जांच की कमी और दवाओं से जुड़े मिथक गहरा असर डाल रहे हैं। इसका परिणाम अक्सर गंभीर होता है,जैसे मलिहाबाद निवासी सविता की कहानी।

आठ साल बाद मिला मातृत्व, पर अनदेखी पड़ी भारी

35 वर्षीय सविता विवाह के आठ वर्ष बाद गर्भवती हुईं। परिवार में खुशी का माहौल था, लेकिन उनकी गर्भावस्था शुरू से ही जोखिमों से घिरी थी। सीएचसी में प्रसव के बाद अचानक उन्हें तीव्र प्रसवोत्तर रक्तस्राव (PPH) शुरू हो गया। स्थानीय अस्पताल ने पूरी कोशिश की, पर स्थिति गंभीर होने पर उन्हें तत्काल क्वीन मेरी अस्पताल रेफर किया गया। समय रहते इलाज मिलने से सविता की जान बच सकी, मगर डॉक्टरों ने जो तथ्य सामने पाए, वह किसी भी गर्भवती महिला और परिवार के लिए चेतावनी से कम नहीं।

गर्भावस्था के दौरान सविता की हालत

पूरी गर्भावस्था में उनका वजन 34 किलो से अधिक नहीं गया। हीमोग्लोबिन अधिकतम 10.2 ग्राम/डीएल रहा-जो सामान्य 12 ग्राम/डीएल से काफी कम है। अर्थात सविता गर्भावस्था के दौरान लगातार,एनीमिक थी,गंभीर रूप से कुपोषित थी। आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने उन्हें आयरन-फोलिक एसिड (IFA), विटामिन C, कैल्शियम और पौष्टिक भोजन की सलाह दी, पर सविता ने नियमित सेवन नहीं किया। कारण पूछने पर उन्होंने कहा मुझे दवा खाना अच्छा नहीं लगता था। मुझे कोई दिक्कत भी तो नहीं थी। मैं सब काम कर लेती थी। यही सोच उनके लिए खतरनाक साबित हुई।

“घर का काम कर लेना, स्वास्थ्य का पैमाना नहीं-डॉ. सुजाता देव

क्वीन मेरी अस्पताल की वरिष्ठ स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ. सुजाता देव बताती हैं कि भारतीय महिलाओं में यह गलतफहमी आम है कि अगर महिला घर का काम कर लेती है, चक्कर नहीं आता ,कमजोरी महसूस नहीं होतीतो वह स्वस्थ है। लेकिन गर्भावस्था में जोखिम दिखाई नहीं देते, बल्कि शरीर के भीतर धीरे-धीरे स्थिति खतरनाक होती जाती है। वे कहती हैं-कि एनीमिया, कुपोषण, संक्रमण और गर्भावस्था से जुड़े कई जोखिम ऐसे हैं जो बाहरी तौर पर नहीं दिखते। इसलिए नियमित जाँच, हीमोग्लोबिन की निगरानी और समय पर सप्लीमेंट सबसे जरूरी हैं।

एनीमिया-मां और बच्चे दोनों के लिए ‘साइलेंट किलर’

डॉ. सुजाता के अनुसार, गर्भावस्था में एनीमिया प्रसव के बाद होने वाले खून बहने (PPH) का सबसे बड़ा कारण है। कम हीमोग्लोबिन के कारण,गर्भाशय की मांसपेशियां कमजोर रहती हैं। प्रसव के बाद गर्भाशय सिकुड़ नहीं पाता। रक्त जमने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है।  शरीर हल्के रक्तस्राव को भी सहन नहीं कर पाता। रक्तस्राव तेजी से बढ़ता है और महिला की जान पर खतरा आ सकता है।

शिशु पर असर

मां में एनीमिया होने पर बच्चे को भी गंभीर नुकसान होता है,कम वजन,ऑक्सीजन की कमी (हाइपोक्सिया),समय से पहले जन्म,जन्म के तुरंत बाद जटिलताएँ,गंभीर मामलों में नवजात मृत्यु अर्थात गर्भावस्था में एक छोटी-सी लापरवाही दो जिंदगी को खतरे में डाल देती है।

सविता जैसी महिलाओं के लिए ‘फोकस्ड केयर’ क्यों जरूरी

सविता का अत्यधिक कम वजन बताता है कि वह गंभीर कुपोषण का शिकार थीं। ऐसे मामलों में जोखिम कई गुना बढ़ जाते हैं-

  • प्री-टर्म डिलीवरी
  • कम वजन का बच्चा
  • संक्रमण का खतरा
  • उच्च स्तरीय देखभाल की जरूरत
  • प्रसवोत्तर जटिलताएँ

ऐसी महिलाओं को विशेषज्ञों के अनुसार जरूरत होती है-

  • .  नियमित ANC (प्रसवपूर्व जांच).  IFA और कैल्शियम का नियमित सेवन.  महीने-दर-महीने वजन और भ्रूण की निगरानी.  आवश्यकता पड़ने पर समय पर रेफरल
  • आखिर गर्भवती महिलाएं IFA दवा क्यों नहीं लेतीं-चौंकाने वाले कारण, दवाओं और सप्लीमेंट से जुड़ी गलत धारणाएं ग्रामीण क्षेत्रों में खूब प्रचलित हैं।

डॉ. सुजाता के अनुसार प्रमुख कारण

  • दवा से बच्चे को नुकसान होने का डर
  • जी मिचलाने या कब्ज की शिकायत
  • परिवार का दबाव
  • जानकारी की कमी
  • “दवा से बच्चा बड़ा हो जाएगा” जैसी गलत धारणा
  • “दवा से शरीर में गर्मी बढ़ती है” जैसे मिथक
  • “अधिक खाना मुश्किल प्रसव कराएगा” जैसी बातें
  • “चेहरे का रंग गहरा हो जाएगा” जैसा अंधविश्वास
  • ये मिथक गर्भवती और शिशु दोनों की जान खतरे में डाल देते हैं।

काउंसलिंग ही सबसे बड़ा हथियार

सविता जैसे मामलों में स्वास्थ्य प्रणाली की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है।
आवश्यक कदम-

  • आशा और एएनएम द्वारा व्यक्तिगत काउंसलिंग
  • परिवार के सदस्यों को भी बातचीत में शामिल करना
  • IFA और कैल्शियम का सही महत्व बताना
  • साइड इफेक्ट को संभालने के उपाय समझाना
  • जोखिम बढ़ते ही उच्चस्तरीय अस्पताल रेफर करना

विशेषज्ञ कहते हैं कि गर्भवती से ज्यादा जागरूक बनाना, उसके परिवार को जरूरी है।

समुदाय में फैलाए जाने वाले मुख्य संदेश

  • . गर्भवती को नियमित ANC करानी चाहिए।
  • . IFA और कैल्शियम लेना अनिवार्य है।
  • . पौष्टिक भोजन-दाल, हरी सब्जियाँ, गुड़, मौसमी फल ज़रूरी।
  • . मिथकों व गलत मान्यताओं को दूर करना होगा।
  • . परिवार गर्भवती का शारीरिक और मानसिक सहयोग करे।
  • . खतरे के संकेत (चक्कर, रक्तस्राव, पेट में तेज दर्द) को कभी न टालें।
  • . प्रसव हमेशा संस्थागत व सुरक्षित स्थान पर कराएं।

गर्भावस्था में लापरवाही नहीं, सजगता ही सुरक्षा

सविता की कहानी एक चेतावनी है। गर्भावस्था में स्वास्थ्य सिर्फ ‘काम कर पाने’ से नहीं, बल्कि पोषण, जांच, सप्लीमेंट और जागरूकता से तय होता है। डॉ. सुजाता देव का संदेश स्पष्ट है कि गर्भावस्था जीवन देने वाली प्रक्रिया है, लेकिन इसकी सफलता फोकस्ड केयर पर निर्भर करती है। दवाओं से डरें नहीं-जानकारी से ताकत मिलती है, और ताकत से सुरक्षित मातृत्व।