
...तो क्या बीजेपी के साथ गठबंधन करेंगी मायावती, सपा को छोड़कर एनडीए में होंगी शामिल?
लखनऊ. गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा उपचुनाव में मिली जीत के बाद जहां समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव गदगद हैं और मायावती का गुणगान करने में लगे हैं। जबकि बसपा प्रमुख मायावती अबतक खामोश हैं। मायावती की इस इस खामोशी को राजनीति के जानकार किसी बड़े तूफान की आहट के रूप में देख रहे हैं। मायावती की चुप्पी को देखते हुए बीजेपी भी अब मायावती की तरफ उम्मीद की नजरों से देख रही है। सूत्रों की अगर माने तो बीजेपी ने मायावती से दोस्ती के लिए अपने खास रणनीतिकारों को लगा भी दिया है।
अमित शाह ने चला दांव
सूत्रों के मुताबिक बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने मायावती तक अपनी बात पहुंचाने के लिए मोदी सरकार में मंत्री और महाराष्ट्र के बड़े दलित नेता केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले को लगा दिया है। कुछ दिन पहले यूपी आए अठावले ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा भी था कि मायावती को एनडीए के साथ आ जाना चाहिए। क्योंकि समाजवादी और कांग्रेसियों ने आजादी के 60 साल तक दलितों के वोट तो लिए, लेकिन विकास नहीं किया। जिसका परिणाम रहा कि दलित पिछड़ता गया और इन पार्टियों का कुनबा बढ़ता गया।
यूपी पर सभी दलों की नजर
दरअसल सभी राजनीतिक दल ये जानते हैं कि दिल्ली की कुर्सी का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर निकलता है। जिस दल ने इस राज्य में फतह हासिल कर ली, उसकी सरकार केंद्र में बननी तय है। खुद आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी ने उत्तर प्रदेश को पहली रैली के लिए चुना था। 1977 में फुलबाग मैदान में इंदिरा दहाड़ी और मजदूरों का शहर पंजे के साथ खड़ा हो गया और फिर से सत्ता इंदिरा गांधी के हाथों में आ गई। इसके बाद कई इलेक्शन हुए और जिस दल ने यूपी को जीता, वहीं दिल्ली का सिकंदर बना। इसी के तहत सपा, बसपा, कांग्रेस और भाजपा की नजर उत्तर प्रदेश पर टिकी है। तीन लोकसभा उपचुनाव में मिली जीत के बाद अखिलेश ने बसपा के साथ गठबंधन का ऐलान तो कर दिया लेकिन मायावती का अब तक कोई स्पष्ट रुख न आना यूपी की राजनीति को गर्म किए हुए है।
अठावले के जरिए भिजवाया पैगाम
तीन लोकसभा उपचुनावों में मिली हार के चलते भाजपा हाईकमान खासा चिंतित है। गैर जाटव वोट दोबारा बसपा के साथ आ गया है और इसी के चलते अब अमित शाह और उनकी टीम हर हाल में दलितों को अपने पाले में लाने के लिए जुटे हुए हैं। खुद एनडीए के घटक दल और महाराष्ट्र के एक बड़े दलित नेता एवं केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले को बीजेपी ने इस काम के लिए लगा दिया है। कुछ दिन पहले अठावले ने मीडिया से बातचीत के दौरान सपा और बसपा की दोस्ती पर कई सवाल खड़े किए और कहा कि साफ दिख रहा है, सपा मायावती को धोखा दे रही है। अठावले का कहना था कि कि दलितों की भलाई करने के लिए मायावती को एनडीए में शामिल होना ही पड़ेगा।
अठावले ने मायावती को दिया ऑफर
केंद्रीय मंत्री और दलित नेता रामदास उठावले ने कुछ दिनों पहले कहा था कि मायावती पहले भी बीजेपी के साथ मिलकर तीन बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं और सपा ने कई बार मायावती को धोखा दिया है। मायावती को एनडीए के साथ आना चाहिए जिससे दलितों के हित में काम हो सके। इन सभी बयानों के बाद ये अटकलें लगाई जाने लगीं कि कहीं मायावती बीजेपी के साथ गठजोड़ करने की दिशा में कोई रणनीति तो नहीं बना रही हैं। क्योंकि अठावले कहा कि अगर मायावती की तरफ से कोई सकारात्मक रुख देखने को मिलता है तो वह उनसे मुलाकात करेंगे। अठावले का कहना है कि मायावती ने बीजेपी के साथ मिलकर यूपी में तीन बार सरकार बनाई है। ऐसे में मायावती को बीजेपी से दोस्ती करनी चाहिए।
80 में 80 सीटों पर जीत पक्की
वहीं इटावा से भाजपा के लोकसभा सांसद अशोक दोहरे 2014 से पहले बसपा में थे और इनकी गिनती मायावती के करीबी नेताओं में हुआ करती थी। भाजपा सांसद ने इस मामले पर कहा कि भले मैं भारतीय जनता पार्टी में हूं, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर आज भी बहन जी की पूजा करता हूं। उन्होंने पूरा जीवन दलित, गरीब और पिछड़ों के लिए लगा दिया। दोहरे के मुताबिक बसपा प्रमुख मायावती कभी भी समाजवादी पार्टी के साथ नहीं जा सकती। क्योंकि मेरा राजनीतिक कॅरियर बसपा से शुरू हुआ और पूरी गारंटी के साथ कह सकता हूं कि वह कांग्रेस या अन्य दल के साथ चुनाव में उतरेंगी। सांसद दोहरे ने कहा कि अगर बहन जी भाजपा के साथ चुनाव लड़ने को तैयार हो जाएं तो हम 80 में से 80 सीटें फतह कर लेंगे। कन्नौज, रायबरेली, अमेटी, मैनपुरी सहित परिवारवाद दलों के किले भी ढहा देंगे। दोहरे ने कहा कि केंद्रीय मंत्री अठावले के बयान का हम स्वागत करते हैं और हमारी भी इच्छा है कि बहन जी गेस्टहाउस कांड वालों के बजाए सबका, साथ, सबका विकास करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ आए और उनके नेत्त्व में केंद्र की सरकार में शामिल हों।
सपा के साथ गठबंधन के आसार कम
जानकारों का कहना है कि मायावती भलीभांति जानती हैं कि अगर सपा के साथ वह गठबंधन करती हैं तो कैडर नाराज हो जाएगा। बसपा का वोटर तो सपा में ट्रांसफर हो जाएगा, लेकिन अखिलेश के मतदाता हाथी के बजाए अन्य दलों में जा सकते हैं। जबकि भाजपा के साथ गठबंधन करने से दलित-ब्राह्मण सहित गैर जाटव वोट के साथ आने से पार्टी को मजबूती मिल सकती है। इसके साथ ही 2019 के बाद 2022 के विधानसभा चुनाव पर भी मायावती की नजर है इसलिए वे जल्दबाजी में कोई भी फैसला लेने के मूड में नहीं हैं। जिसके चलते मायावती अभी पूरी तरह खामोश हैं, लेकिन उनकी ये खामोशी कहीं न कहीं सभी राजनीतिक दलों की धड़कनें बढ़ाए हुए है।
Updated on:
03 Jul 2018 12:12 pm
Published on:
03 Jul 2018 09:32 am
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