
2027 के चुनाव से पहले यूपी की राजनीति में एक बार फिर से हलचल तेज हो गई है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी का चीफ नेशनल कोऑर्डिनेटर नियुक्त कर दिया है। यह पद बसपा में पहले कभी अस्तित्व में नहीं था। क्या ये फैसला मायावती मास्टरस्ट्रोक है या फिर गिरते जनाधार की मजबूरी?
2024 लोकसभा चुनाव के बाद मायावती की पार्टी का वोट शेयर गिरकर 9.39% तक पहुंच गया। विधानसभा में यह गिरावट और भी तेज़ रही 2017 में 22% से घटकर 2022 में सिर्फ 12.88%। दलित युवा वोटर चुपचाप सपा, भाजपा या चंद्रशेखर आज़ाद की ओर खिसक गया। ऐसे में मायावती के लिए आकाश आनंद ही वो चेहरा हैं, जिससे बसपा को फिर से ताकत मिल सकती है। मायावती के इस फैसले को दो तरह से देखा जा रहा है। एक पक्ष इसे दलित राजनीति के नए नेतृत्व की शुरुआत मान रहा है। आकाश आनंद के जरिए बसपा अपनी पुरानी छवि को युवाओं के बीच दोबारा प्रासंगिक बनाना चाहती है। वहीं दूसरा पक्ष इसे राजनीतिक मजबूरी बता रहा है।आकाश आनंद की वापसी ऐसे समय में हुई है जब दलित मतदाता अलग-अलग ध्रुवों में बंटता नजर आ रहा है।
बसपा की कमजोर होती नींव में आज़ाद समाज पार्टी यानी चंद्रशेखर आज़ाद ने पिछले कुछ सालों में सेंध लगाई और पश्चिमी यूपी में बसपा को कई सीटों पर डेंट भी किया। आक्रमक छवी के कारण चन्द्रशेखर दलित युवाओं में पैठ बनाने में कामयाब हुए। यही कारण था की चन्द्रशेखर अब तक खुद को दलित युवा नेतृत्व’ का एकमात्र विकल्प मानते थे। लेकिन आकाश की वापसी ने अब उन्हें एक संगठित और पारंपरिक दलित नेतृत्व से सीधी टक्कर में ला खड़ा किया है।
यह पहली बार नहीं है जब आकाश आनंद को बड़ी भूमिका दी गई हो। फर्क बस इतना है कि इस बार मायावती ने अलग प्रयोग किया है। लेकिन मायावती के निर्णय लेने की शैली, और परिवार को लेकर उनका सतर्क रुख, कई सवाल खड़े करता है। क्या आकाश को अपने हिसाब से फैसले लेने दिए जाएंगे? क्या बसपा सोशल मीडिया और डिजिटल राजनीति में उनकी क्षमता का पूरा उपयोग करेगी? ये वो तमाम सवाल है जिनका जवाब मायावती के अलगे सियासी फैसलों में देखने को मिल सकता है।
उत्तर प्रदेश की दलित राजनीति आज तीन चेहरों के बीच फंसी है, मायावती की परंपरा, आकाश का नया प्रयोग और चंद्रशेखर की बगावती छवि। आकाश आनंद इस चक्रव्यूह में फंसेंगे या बाहर निकलेंगे इसका जवाब 2027 के विधानसभा चुनाव में मिलेगा।
Published on:
19 May 2025 03:34 pm
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