
बीएसपी अपना जनाधार पाने के लिए 4 दशक पुराने नारे को एक बार फिर से उठाया है।
UP Politics: विधानसभा और निकाय चुनाव में बसपा को करारी हार का समाना करना पड़ा। इसके बाद बसपा सुप्रीमों मायावती ने पदाधिकारियों के साथ बैठक की। इसमें निकाय चुनाव में पार्टी को मिली हार पर समीझा की। इसी बैठक में मायावती ने पदाधिकारियों को कांशी राम का नारा ‘वोट हमारा राज तुम्हारा नहीं चलेगा’ याद दिलाया।
बसपा सुप्रीमों मायावती ने बैठक में पार्टी के पदाधिकारियों से फीडबैक लिया और जरूरी दिशा निर्देश दिए। मायावती ने कहा कि 'वोट हमारा, राज तुम्हारा' के हालात को आने वाले लोकसभा चुनाव में बदले जाने की जरूरत है। इसके लिए गांव-गांव तक पहुंचकर प्रयास करने होंगे। अब इसको लेकर हर तरफ सवाल यही है कि आखिर चार दशक बाद मायावती को इस नारे की याद क्यों आई?
दलित वोटरों को जोड़ने में जुटी बसपा
पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा ने ब्राह्मण कार्ड खेला था लेकिन उन्हें महज 1 सीट मिली। इसके बाद अब नगर निकाय चुनाव में मुस्लिम कार्ड अपनाया लेकिन इस चुनाव में भी बसपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। इस हार के बाद बसपा सुप्रीमों ने पदाधिकारियों के साथ समीझा बैठक की और सभी कोऑर्डिनेटरों से फीडबैक लिया।
इसमें एक बात सामने आई कि वोटिंग प्रतिशत काफी कम रहा है। महापौर की सभी 17 सीटों पर प्रत्याशी को महज 12 प्रतिशत वोट मिले हैं। पार्टी छिटके हुए दलित वोटरों को वापस जोड़ नहीं पा रही है। जाटव को छोड़कर बाकी दलित वोटर अन्य पार्टियों की तरफ शिफ्ट हो गए हैं।
बसपा छिटके हुए दलित वोटर को वापस जोड़ने के लिए एक फिर से चार दशक पुराना नारा को उठाया है। पार्टी के कार्यकर्ता का कहना है कि बसपा एक बार फिर से इस नारे के सहारे अपने खोए हुए जनाधार को वापस पाना चाहती है।
कांशी राम ने गढ़े थे कई नारे
बसपा की स्थापना से पहले और बाद में कांशी राम ने कई नारे दिए। जब उन्होंने 'डीएस-4' नाम का एक संगठन बनाया था, तब उन्होंने नारा दिया था कि 'ठाकुर, बामन, बनिया छोड़, बाकी सब हैं डीएस-4'। 1983-84 के दौर में जब कांशी राम अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत कर रहे थे, तब उन्होंने 'वोट हमारा, राज तुम्हारा, नहीं चलेगा' का नारा दिया। यह नारा बसपा की स्थापना के बाद भी पार्टी के कार्यक्रमों में खूब गूंजता रहा। दलितों और अति पिछड़ों में राजनीतिक चेतना का संचार करने के लिए यह नारा गढ़ा गया था।
हालांकि, बाद में वह दौर भी आया जब ये नारा बसपा के लिस्ट से गायब हो गया। साल 2007 में मायावती ने नई तरह की सोशल इजीनियरिंग की। ब्राह्मण और अन्य सवर्णों को पार्टी में तवज्जो मिली। प्रदेश में बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। उसके बाद से यह सोशल इंजीनियरिंग बसपा के काम नहीं आई और लगातार जनाधार घटता जा रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में मात्र एक सीट पर सिमट गई और निकाय चुनाव में 1 भी मेयर तक नहीं जीत पाए।
Updated on:
20 May 2023 10:14 pm
Published on:
20 May 2023 10:11 pm
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