
मायावती के रुख ने अखिलेश की बढ़ाई मुश्किलें, सपाइयों में बढ़ी बेचैनी
लखनऊ. अखिलेश यादव भले ही बसपा को अधिक सीटें देने से पीछ नहीं हटने की बात कहकर लचीला रुख अपना रहे हों, लेकिन मायावती बार-बार सम्मानजनक सीटों की बात कहकर अड़ियल रुख अपनाये हैं। अखिलेश कह रहे हैं कि बीजेपी को हराने के लिये वह हर कुर्बानी देने को तैयार हैं, लेकिन मायावती सशर्त ही गठबंधन में शामिल होने बात कह रही हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यूपी में समाजवादी पार्टी किसी भी कीमत पर बसपा से कम नहीं है, लेकिन जिस तरह से अखिलेश यादव हर हाल में गठबंधन की बात कह रहे हैं, राजनीतिक तौर पर उनके लिये ये काफी जोखिम भरा हो सकता है। वक्त से पहले अखिलेश यादव का यूं अपने कदम पीछे खीचना उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता का संकेत है। विश्लेषकों का कहना है कि बीजपी को हराने के लिए अखिलेश कुछ ज्यादा ही झुक गए हैं, जिसका फायदा राजनीति की माहिर खिलाड़ी मायावती उठाना चाहती हैं।
पिछले लोकसभा चुनाव में सपा ने जहां पांच सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि बसपा का खाता भी नहीं खुला था। 2017 के विधानसभा में भी बसपा कोई खास करिश्माई प्रदर्शन न कर सकी थी, जबकि सपा दूसरे नंबर की पार्टी रही थी। इसके बाजवूद मायावती खुद को गठबंधन की नेता के तौर पर प्रमोट कर रही हैं, यह उनकी सियासी परिपक्वता को दर्शाता है और अखिलेश की राजनीतिक अपरिपक्वता को। राजनीति विश्लेषकों का कहना है कि परिवार की रार में भले ही अखिलेश यादव बाजी मार ले गये हैं, लेकिन शायद वह अपने पिता से वो फेमस 'चरखा दांव' आज तक नहीं सीख सकें हैं, जिसमें वह आखिर तक अपना तुरुप का पत्ता संभाल कर रखते थे।
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बढ़ेंगी सपा की मुश्किलें
जिस तरह से मायावती और अन्य विपक्षी दल सीटों की डिमांड कर रहे हैं, सपा के खाते में मुश्किल से दो दर्जन सीटें ही आएंगी। ऐसा हुआ तो अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी के लिये यह काफी घातक साबित हो सकता है। समाजवादी पार्टी के कई बड़े नेताओं ने अपने क्षेत्र में लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं, लेकिन अगर टिकट मिला तो उन्हें और समर्थकों को संभाल पाना काफी मुश्किल भरा हो सकता है। नाम न छापने की शर्त पर सपा के एक नेता कहा कि बीजेपी को हराने के लिये गठबंधन ठीक है, लेकिन सपा को बसपा के बराबर सीटों पर ही दावेदारी करनी चाहिये।

Updated on:
17 Sept 2018 03:19 pm
Published on:
17 Sept 2018 02:56 pm
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