पछुआ पवन पृथ्वी के दोनों गोलार्द्धों में प्रवाहित होने वाली स्थायी पवनें हैं। पश्चिमी दिशा से पूरब की ओर चलने के कारण इन्हें पछुआ पवन या या वेस्टर्लीज कहा जाता है। अक्सर महसूस किया जाता है कि जो हवायें पूरब से चलकर पश्चिम दिशा की ओर जाती हैं, उन हवाओं में ठंड नहीं रहती है या यूं कहें कि पूर्वी हवाओं में ठंड का एहसास कम होता है। लेकिन पश्चिम की दिशा की ओर से आने वाली पछुआ हवाओं के चलने से लोगों को हर मौसम में ठंड का एहसास कुछ ज्यादा होता है।
यह भी पढ़ें
बूंदाबांदी से बढ़ी ठंड, फिलहाल सर्दी से राहत नहीं
हिमालय से टकराकर चलती हैं हवायें
मौसम के जानकार डॉ. जेपी त्रिपाठी कहते हैं कि पछुआ हवायें पहाड़ों से होकर आती हैं जो हिमालय पर्वत से टकराकर चलती हैं। ऐसे में पहाड़ों पर मौजूद पानी और बर्फ से टकराकर चलने के कारण पश्चिमी हवायें लोगों को ठंड का आभास कराती हैं, जबकि पूरब की ओर से चलने वाली हवायें किसी ऐसे पहाड़ से टकराकर नहीं चलती, जिस पर्वत पर बर्फ पड़ती हो। इसलिए पूरब से चलने वाली हवाओं में ठंडक नहीं होती हैं।
यहां कहलाती हैं गरजती चालीसा-प्रचंड पचासा और चीखती साठा
पछुआ पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर प्रवाहित होती हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में पछुआ पवनों की प्रचंडता के कारण ही 40 से 50 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के बीच इन्हें ‘गरजती चालीसा’ तथा 50 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के समीपवर्ती इलाकों में ‘प्रचंड पचासा’ और 60 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के पास ‘चीखती साठा’ नाम से पुकारा जाता है। ध्रुवों की ओर इन पवनों की सीमा काफी अस्थिर होती है, जो मौसम एवं अन्य कारणों के अनुसार परिवर्तित होती रहती है।
पछुआ पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर प्रवाहित होती हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में पछुआ पवनों की प्रचंडता के कारण ही 40 से 50 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के बीच इन्हें ‘गरजती चालीसा’ तथा 50 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के समीपवर्ती इलाकों में ‘प्रचंड पचासा’ और 60 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के पास ‘चीखती साठा’ नाम से पुकारा जाता है। ध्रुवों की ओर इन पवनों की सीमा काफी अस्थिर होती है, जो मौसम एवं अन्य कारणों के अनुसार परिवर्तित होती रहती है।