
लावारिस लाशों का दाह संस्कार कर रही लखनऊ की बेटी वर्षा वर्मा
पत्रिका सोशल प्राइड
लखनऊ. कोरोना महामारी (Corona Pandemic) ने इंसानियत को भी शर्मशार किया है। संक्रमण के भय से लोग कोविड-19 से जान गंवाने वाले अपने प्रियजनों का शव लेने तक नहीं जा रहे हैं। ऐसे ही लावारिश लाशों को श्मशान घाट तक पहुंचाने के काम में जुटी हैं लखनऊ की वर्षा वर्मा (Varsha Verma)। यह पिछले कई दिनों से 10 से 12 लाशों को अंतिम क्रिया कर्म के लिए अपनी गाड़ी से शवदाहगृह तक पहुंचाती हैं। वर्षा का कहना है यह काम वह आत्मा की शांति के लिए कर रही हैं। इससे खुद मेरी मेरे मन को शांति मिलती है, दूसरे मरने वाले का विधिवत अंतिम संस्कार होने से उसकी आत्मा को भी शांति मिलती है। मानवता की यह सबसे बड़ी सेवा है।
राजधानी के डॉ. राममनोहर लोहिया अस्पताल, गोमतीनगर के गेट के सामने पीपीई किट पहने वर्षा खड़ी मिल जाती हैं। उनके हाथ में होती है तख्ती जिस पर लिखा है नि:शुल्क शव वाहन। 42 साल की वर्षा यूं तो पिछले कई सालों से लावारिश लाशों के अंतिम संस्कार के काम में जुटी हैं। लेकिन, इस महामारी में उनकी जिम्मेदारियां कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी हैं। अपनी जान को जोखिम में डालकर वह हर सुबह अस्पताल पहुंच जाती हैं। कोविड प्रोटोकॉल की गाइडलाइन के अनुसार वह अपने दो वाहनों के साथ काम में जुट जाती हैं। वर्षा के पति लोक निर्माण विभाग में इंजीनियर हैं। और बेटी हाई स्कूल की छात्रा है। पूरा परिवार उनके इस नेक काम में उनका हाथ बंटाता है। वर्षा बताती हैं कि उनकी संस्था एक कोशिश ऐसी भी पिछले तीन सालों में 500 से अधिक लावारिश लाशों का अंतिम संस्कार करवा चुकी हैं।
विदेशों से आती है ज्यादा कॉल
वर्षा का कहना है कि कोविड काल में अधिकतर कॉल विदेेशाों से आती है। ऐसे लोग जिनके बूढ़े मां-बाप लखनऊ में रह रहे थे और उनकी आकस्मिक मौत हो गयी उनके अंतिम संस्कार करने का अनुरोध किया जाता है। इसी के साथ राजधानी में तमाम ऐसे परिवार भी हैं जिनका पूरा परिवार संक्रमित है और अस्पताल में भर्ती उन परिवारों से भी फोन आता है। कई बार अस्पताल भी खुद फोन कर लावारिश लाशों की जानकारी देते हैं। मुफ्त शव वाहन सेवा "एक कोशिश ऐसी भी" के साथ कुछ लोग भी जुड़ गए हैं। वे भी आर्थिक रूप से मदद कर रहे हैं। लेकिन वर्षा का कहना है भौतिक रूप से मदद करने वाले अब भी नहीं हैं। वर्षा बताती हैं वह कई बार खुद ही मुखाग्नि देती हैं।
बॉडी को कोई हाथ लगाने नहीं आता
वह बताती हैं कि कोविड के नए वायरस का खौफ इतना है कि संक्रमण फैलने के डर से तमाम ऐसे लोग भी हैं जो अपने संक्रमित परिजनों की मौत पर घर से निकलना नहीं चाहते। वह अंतिम संस्कार में नहीं पहुंचते। कई बार तो परिवार वाले मृतकों के शव नहीं उठाते। बुरा तब लगता है जब पूरा परिवार बाहर खड़े होकर वीडियो बनाता रहता है, लेकिन पीपीई किट में रखी बॉडी को हाथ तक नहीं लगाने आता है।
सामाजिक कामों में रुचि
वर्षा अपनी पहचान सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में बताती हैं। वह लड़कियों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग भी देती हैं और जूडो भी सिखाती हैं। अभी उन्होंने श्मशान घाट पर नि:शुल्क पानी सेवा भी शुरू की है।
Published on:
04 May 2021 01:33 pm
बड़ी खबरें
View Allलखनऊ
उत्तर प्रदेश
ट्रेंडिंग
