21 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

UP Politics: यूपी में लगातार जनाधार खोती जा रही सपा, जानें इसकी वजह

UP Politics: विधानसभा, लोकसभा और उपचुनावों में लगातार हार राज्य में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। 2017 के बाद से ही सपा लगातार अपना जनाधार खोती जा रही है।

3 min read
Google source verification

लखनऊ

image

Anand Shukla

Jun 25, 2023

Samajwadi Party continuous fall down in up

2017 विधानसभा चुनाव के बाद से ही सपा सत्ता में वापसी के लिए तड़प रही है।

UP Politics: उत्तर प्रदेश में जब 2017 में विधानसभा के चुनाव हुए थे। उस समय प्रदेश में सपा की सरकार थी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे। इसके बावजूद समाजवादी पार्टी को हार सामना करना पड़ा। तभी से पार्टी लगातार सत्ता पाने के लिए संघर्ष कर रही है। आइए जानते हैं इसके पीछे की वजह क्या है?

2017 विधानसभा चुनाव सात चरणों में हुए। इन चुनावों में 61% वोटिंग रही। भारतीय जनता पार्टी ने 312 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत हासिल किया, जबकि सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी गठबंधन को 54 सीटों और बहुजन समाज पार्टी को 19 सीटों से संतोष करना पड़ा।

अखिलेश और मायावती ने साथ मिलकर लड़ा था चुनाव
इसके बाद 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को टक्कर देने के लिए यूपी की दो घोर विरोधी पार्टियां सपा और बसपा ने गठबंधन कर लिया। शायद ही किसी ने सोचा होगा कि मायावती और अखिलेश कभी एक साथ एक मंच पर आएंगे। सपा और बसपा ने मिलकर बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन बीजेपी के समीकरण के आगे विपक्ष के सारे दांव धरे के धरे रह गए थे।

भाजपा ने 78 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से 62 सीटों पर कमल खिला। वहीं, बीजेपी की सहयोगी अपना दल एस को 2 सीटों पर जीत मिली। बसपा के खाते में जहां 10 सीटें आई तो वहीं सपा को सिर्फ पांच सीटों पर जीत हासिल हुई थी।

यह भी पढ़ें: पति को गायब करवा दिया, बेटे पर फायरिंग, फिर भी नहीं डरी, अतीक के आंतक से लोहा लेती रही जयश्री कुशवाहा

समाजवादी पार्टी ने जिन पांच सीटों पर जीत हासिल की थी वो हैं- मैनपुरी, रामपुर, आजमगढ़, संभल और मुरादाबाद। अखिलेश, आजम के इस्तीफे के बाद आजमगढ़ और रामपुर में हुए उपचुनाव में दोनों सीटों बीजेपी के खाते में चली गईं। वहीं, मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद सपा की डिंपल यादव मैनपुरी सीट को बचाने में कामयाब रहीं।

सत्ता विरोधी लहर के बावजूद योगी को हरा नहीं पाए अखिलेश यादव
2022 विधानसभा चुनाव के पहले ही सपा और बसपा की राहें अलग हो गई। सपा ने विपक्षी दलों के वोटरों को अपने पाले में लाने के लिए नई रणनीति बनाई। इसी रणनीति के तहत, अखिलेश यादव ने बीजेपी को हराने के लिए कई छोटे दलों को साथ में लेकर एक नया गठबंधन बनाया और विपक्षी दलों के नाराज नेताओं को पार्टी में भी शामिल कराया। ये प्रयास केवल भाजपा विरोधी मतदाताओं को एकजुट कराने के लिए थे।

सपा ने नए गठबंधन के साथ चुनाव लड़ा, लेकिन बीजेपी ने शानदार वापसी की। भारतीय जनता पार्टी को अकेले 403 सीटों में से 255 सीटों पर जीत मिली। वहीं, मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी ने 111 सीटों पर जीत हासिल की। भाजपा की सहयोगी पार्टी अपना दल (एस) 12 सीटों और निषाद पार्टी ने छह सीटों पर जीत दर्ज की। सपा की सहयोगी पार्टी राष्ट्रीय लोक दल को 8 सीटें और सुभासपा को 6 सीटें मिलीं। कांग्रेस 2 सीटों, बसपा 1 सीट, जनसत्ता दल लोकतांत्रिक को 2 सीटें मिली। इस चुनाव में सपा की सीटें और उसका वोट प्रतिशत दोनों बढ़ा, लेकिन सत्ता में वापसी करने में विफल रही।

सपा क्यों खो रहीं जनाधार?
खास तौर पर समाजवादी पार्टी को दो कारणों से हार का सामना करना पड़ रहा है। पहला है मुसलमानों के साथ सपा की पहचान, दूसरा कमजोर संगठन।

यूपी के लोगों के अंदर हिंदुत्व की चेतना गहराई तक पहुंच चुकी है। सपा पर बीजेपी आरोप लगाती है कि सपा मुस्लिम अपराधियों को संरक्षण देती है। बीजेपी जोर देकर कहती है कि यदि सपा सत्ता में आई तो मुस्लिम अपराधियों के प्रभुत्व वाले शासन को बहाल करेगी और हिंदुओं को खतरे में डाल देगी। वहीं, बीजेपी कई बार दावा कर चुकी है कि सपा मुखिया अखिलेश यादव खुले तौर पर मुस्लिम अपराधियों से राजनेता बने, जैसे मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद का समर्थन करते हैं।

यह भी पढ़ें: UP का वो 'डॉन' जिसके खौफ से थरथराती थीं सरकारें, तांगेवाले का बेटा अतीक अहमद कैसे बना माफिया

कमजोर संगठनात्मक संरचना
सपा कभी भी कैडर आधारित पार्टी नहीं रही। यह पार्टी हमेशा प्रदेशभर के स्थानीय नेताओं के साथ मुलायम सिंह यादव के निजी नेटवर्क के माध्यम से काम करती रही है। इसी का नतीजा है कि अखिलेश यादव ने कभी भी पार्टी संगठन के निर्माण पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया। सपा का कमजोर संगठन होने के नाते अखिलेश यादव अपनी बातें जनता तक नहीं पहुंच पाते हैं। वहीं, बीजेपी अपने संगठन पर ज्यादा जोर देती है और अपने पार्टी पदाधिकारियों को अभियान और चुनाव प्रबंधन सिखाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाती है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बीजेपी के संगठन के मुकाबले सपा कितनी पीछे है।

इन्हीं कारणों से सपा लगातार अपनी जनाधार को खोती जा रही है।