scriptचित्रकूट में शोधार्थियों को मिला अद्भुत स्थान, यहां देवराज इंद्र ने प्रकट की थी सप्त गंगा | Sapt Ganga historical place tourist spot in chitrakoot bundelkhand | Patrika News
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चित्रकूट में शोधार्थियों को मिला अद्भुत स्थान, यहां देवराज इंद्र ने प्रकट की थी सप्त गंगा

सप्त गंगा को प्रकृति ने भी इसे अपना असीम प्यार-दुलार देकर ख़ूबसूरती प्रदान करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी है

चित्रकूटSep 16, 2017 / 12:57 pm

Hariom Dwivedi

Sapt Ganga tourist place
चित्रकूट. चित्रकूट क्षेत्र को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में मान्यता दिलवाने और सरकारों द्वारा इस अनादि भू-भाग को पर्यटन मानचित्र में शामिल करवाने के उद्देश्य से शोधार्थियों द्वारा प्रारंभ की गई यात्रा उन स्थानों तक पहुंच रही है, जिन्हें पर्यटन की दृष्टि से काफी विकसित किया जा सकता है। यात्रा दल को कई चौंकाने वाले स्थान मिल रहे हैं, जिनका उल्लेख विभिन्न शास्त्रों पौराणिक ग्रंथों में जिस प्रकार से किया गया है। वे स्थान बिलकुल उसी प्रारूप में प्रकृति की सुरम्य वादियों के बीच स्थित हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि अब तक कई सरकारों व प्रशासन ने इन इलाकों को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और न ही वहां तक पहुंचने की जहमत उठाई।
विभिन्न अगूढ़ तथ्यों रहस्यों की खोज में निकला शोधार्थियों का दल बुंदेलखंड की अपार पर्यटन संभावनाओं को तलाशते हुए कई अद्भुत स्थानों पर पहुंच रहा है। यात्रा के दौरान शोधार्थियों का दल एक ऐसे स्थान पर पहुंचा जो किसी रहस्य से कम नहीं। जनश्रुति व पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर देवगुरु बृहस्पति ने देवराज इंद्र से नाराज होकर तपस्या की थी व समाधिलीन हो गए थे। गुरु की नाराजगी से सहमे इंद्र ने यहां अपने बज्र से सप्त गंगा प्रकट की थी। आश्चर्य यह कि आज भी इस स्थान पर सात पानी के सात कुंड मौजूद हैं। आदिमानवों की निवास स्थली रहा यह इलाका आज भी निर्जन और बियावान होने के चलते प्राकृतिक सुन्दरता से भरपूर है।
यह है पूरा महात्म
स्थानीय जनश्रुति के अनुसार एक दिन देवराज इंद्र जब रास रंग की महफ़िल सजाये थे तभी देवगुरु बृहस्पति उनके दरबार जा पहुंचे। नृत्य गान में मन रमाये इंद्र को देवगुरु बृहस्पति के दरबार में आने का भान ही नहीं हुआ। इंद्र की इस हरकत से खिन्न होकर बृहस्पति गंगा स्नान की बात कह स्वर्ग लोक से पृथ्वी लोक चले आये। जब दैत्यों को यह बात पता लगी तो बढ़िया अवसर समझ उन्होंने देवताओं के पर धावा बोल दिया। युद्ध में जब देवता कमजोर पड़ने लगे तब इंद्र को गुरुदेव की याद आयी। वह सहायता मांगने उनके घर पहुंचे, लेकिन यहां आने पर जब इंद्र को पता लगा कि बृहस्पति जी तो काफी दिनों से गंगा स्नान के लिए पृथ्वी लोक गए हुए हैं, तब इंद्र ने सूर्यदेव को गुरु की खोज खबर लाने की जिम्मेदारी सौंपी। सूर्यदेव चित्रकूट के इस क्षेत्र में समाधि लगाये बृहस्पति जी के पास पहुंचे और उनसे सारा वृत्तान्त कह सुनाया।
देवगुरु बृहस्पति ने सूर्य को भी वहीं तपस्या करने का आदेश दिया। सूर्यदेव भी अपनी गति रोक तपस्या में लग गए। सूर्य की गति रुक जाने से समस्त लोकों में हाहाकार मच गया। इंद्र तक जब यह खबर पहुंची, तब वह एरावत हाथी पर सवार हो पृथ्वी लोक में साधनारत अपने गुरु बृहस्पति के पास पहुंचे और तुरंत स्वर्ग चल देवताओं की रक्षा करने की प्रार्थना करने लगे। इंद्र की बात सुन बृहस्पति ने कहा कि मैं तो गंगा स्नान के लिए पृथ्वी पर आया था तुम लोग चलो गंगा स्नान करके मैं भी आता हूं। गुरुदेव की बात सुन इंद्र सहम गए कि स्वर्ग पहुंचने में यदि गुरुदेव ने देर लगा दी तो हम सब देवता मारे जायेंगे। ऐसा विचार कर इंद्र ने अपने वज्र के प्रहार से इस स्थान में सप्त गंगा प्रकट कर दीं और गुरुदेव को इनमें स्नान करा अपने साथ स्वर्ग ले गए।।
मनोहारी स्थान को देखते ही सुध-बुध खो बैठेंगे आप
सप्तगंगा को प्रकट करने से बना सात कुण्डों वाला यह स्थान इतना मनोहारी और दिव्य है। यहां आकर लोग अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं। इस स्थान में वे सातों कुण्ड आज भी देखे जा सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन कुंडों में स्नान करने से व्यक्ति को गंगा स्नान का पुण्य प्राप्त होता है।
कुदरत ने इस स्थान को दिया है असीम प्यार-दुलार
यह स्थान पौराणिक कथाओं की वजह से तो महत्वपूर्ण है ही, प्रकृति ने भी इसे अपना असीम प्यार-दुलार देकर ख़ूबसूरती प्रदान करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोडी है। सैकड़ों फीट ऊंचाई से गिर रहे जल प्रपातों और विशाल चट्टानों के नीचे से गुजर कर जाने के रोमांच का अनुभव कराने वाले कई सौ मीटर लम्बे मार्गों वाले इस स्थान में आने का मजा ही निराला है। यहां आदिमानवों द्वारा बनाये गए शैलचित्रों की भी बहुतायत है। हीरे की वैध अवैध खदानों में काम करने वाले मजदूर ही यहां कदमताल करते नजर आते हैं।

प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन बेखबर
पौराणिक कथाओं और पुरातात्विक धरोहरों को समेटे साहसिक पर्यटन की असीम संभावनाओं वाला यह स्थान आज भी प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन की नजरों से दूर होने के चलते मूलभूत सुविधाओं से महरूम है। पर्यटन के नाम पर लाखों करोड़ों का बजट बनाकर फूंकने वाली सरकारों ने यदि इन प्राकृतिक ऐतिहासिक और पौराणिक स्थानों को थोड़ा भी विकसित किया होता तो आम लोग भी इन दुर्गम स्थानों पर सुगमता से पहुंच सकते थे और आज चित्रकूट ही नहीं बुंदेलखंड की एक अलग पहचान होती पर्यटन को लेकर। देश दुनिया में खनन माफिया यहां के पर्वतों को तोड़ न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि ऐतिहासिक और पुरातात्विक धरोहरों को भी नष्ट भी कर रहे हैं।
बुंदेलखंड को अलग पहचान दिलाने का करेंगे प्रयास
यात्रा संयोजक संतोष बंसल ने बताया अभी तक जिन पौराणिक मान्यताओं संदर्भों जनश्रुतियों के आधार पर चित्रकूट के रहस्यात्मक स्थानों के बारे में उल्लेख मिलता था। खोज करने पर वे स्थान उसी दृष्टि से मौजूद पाए गए। यात्रा के बाद इन सारे तथ्यों से केंद्र व प्रदेश सरकार को अवगत कराया जाएगा और बुंदेलखंड को अलग पहचान दिलाने का प्रयास होगा।

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