स्थानीय जनश्रुति के अनुसार एक दिन देवराज इंद्र जब रास रंग की महफ़िल सजाये थे तभी देवगुरु बृहस्पति उनके दरबार जा पहुंचे। नृत्य गान में मन रमाये इंद्र को देवगुरु बृहस्पति के दरबार में आने का भान ही नहीं हुआ। इंद्र की इस हरकत से खिन्न होकर बृहस्पति गंगा स्नान की बात कह स्वर्ग लोक से पृथ्वी लोक चले आये। जब दैत्यों को यह बात पता लगी तो बढ़िया अवसर समझ उन्होंने देवताओं के पर धावा बोल दिया। युद्ध में जब देवता कमजोर पड़ने लगे तब इंद्र को गुरुदेव की याद आयी। वह सहायता मांगने उनके घर पहुंचे, लेकिन यहां आने पर जब इंद्र को पता लगा कि बृहस्पति जी तो काफी दिनों से गंगा स्नान के लिए पृथ्वी लोक गए हुए हैं, तब इंद्र ने सूर्यदेव को गुरु की खोज खबर लाने की जिम्मेदारी सौंपी। सूर्यदेव चित्रकूट के इस क्षेत्र में समाधि लगाये बृहस्पति जी के पास पहुंचे और उनसे सारा वृत्तान्त कह सुनाया।
सप्तगंगा को प्रकट करने से बना सात कुण्डों वाला यह स्थान इतना मनोहारी और दिव्य है। यहां आकर लोग अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं। इस स्थान में वे सातों कुण्ड आज भी देखे जा सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन कुंडों में स्नान करने से व्यक्ति को गंगा स्नान का पुण्य प्राप्त होता है।
यह स्थान पौराणिक कथाओं की वजह से तो महत्वपूर्ण है ही, प्रकृति ने भी इसे अपना असीम प्यार-दुलार देकर ख़ूबसूरती प्रदान करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोडी है। सैकड़ों फीट ऊंचाई से गिर रहे जल प्रपातों और विशाल चट्टानों के नीचे से गुजर कर जाने के रोमांच का अनुभव कराने वाले कई सौ मीटर लम्बे मार्गों वाले इस स्थान में आने का मजा ही निराला है। यहां आदिमानवों द्वारा बनाये गए शैलचित्रों की भी बहुतायत है। हीरे की वैध अवैध खदानों में काम करने वाले मजदूर ही यहां कदमताल करते नजर आते हैं।
प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन बेखबर
पौराणिक कथाओं और पुरातात्विक धरोहरों को समेटे साहसिक पर्यटन की असीम संभावनाओं वाला यह स्थान आज भी प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन की नजरों से दूर होने के चलते मूलभूत सुविधाओं से महरूम है। पर्यटन के नाम पर लाखों करोड़ों का बजट बनाकर फूंकने वाली सरकारों ने यदि इन प्राकृतिक ऐतिहासिक और पौराणिक स्थानों को थोड़ा भी विकसित किया होता तो आम लोग भी इन दुर्गम स्थानों पर सुगमता से पहुंच सकते थे और आज चित्रकूट ही नहीं बुंदेलखंड की एक अलग पहचान होती पर्यटन को लेकर। देश दुनिया में खनन माफिया यहां के पर्वतों को तोड़ न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि ऐतिहासिक और पुरातात्विक धरोहरों को भी नष्ट भी कर रहे हैं।
यात्रा संयोजक संतोष बंसल ने बताया अभी तक जिन पौराणिक मान्यताओं संदर्भों जनश्रुतियों के आधार पर चित्रकूट के रहस्यात्मक स्थानों के बारे में उल्लेख मिलता था। खोज करने पर वे स्थान उसी दृष्टि से मौजूद पाए गए। यात्रा के बाद इन सारे तथ्यों से केंद्र व प्रदेश सरकार को अवगत कराया जाएगा और बुंदेलखंड को अलग पहचान दिलाने का प्रयास होगा।