
sunni ulema council announce protest for muslim community India
अब उत्तर प्रदेश में जुमे के नमाज के प्रदर्शन या हिंसा नहीं होंगी। इस दिवस की अजमत यानि महत्व को बचाने के लिए सुन्नी उलमा काउंसिल ने यह निर्णय लिया है। इसके लिए प्रदेशभर में हस्ताक्षर अभियान चलाकर मुसलमानों को जागरूक भी किया जाएगा। यदि भविष्य कभी जरूरत पड़ी बी तो गांधीवाद अपनाएंगे। तीन जून को कानपुर और फिर प्रदेश के विभिन्न जनपदों में जुमे की नमाज के बाद हिंसक झड़पें हुईं थीं। जुमे के दिन ही पूर्व में प्रदर्शनों और हिंसा को देखते हुए आम जनमानस के बीच कई तरह के सवाल उठाए जा रहे थे। इसे संजीदगी से लेते हुए सुन्नी उलमा काउंसिल ने कई फैसले लिए हैं। शनिवार को होने वाली बैठक में इसका पूरा प्रारूप भी सामने आ जाएगा।
शुक्रवार को कई भी प्रदर्शन नहीं, पत्थरबाजी गैर शरई अमल
सुन्नी उलमा काउंसिल का मानना है कि जब भी जुमे के दिन कोई कॉल दी जाती है तो उसमें भीड़ को नियंत्रित करना आसान नहीं होता।ऐसे में जुमा के दिन शांतिपूर्ण प्रदर्शन भी नहीं किए जाएंगे। अन्य दिवसों में लोकतांत्रिक व शांतिपूर्ण ढंग से विरोध सुरक्षित व गांधीवादी ढंग से जताया जा सकता है। उलमा काउंसिल के अनुसार भीड़ बनाकर कहीं भी पत्थरबाजी या हिंसा करना गैर शरई कार्य है। इस्लाम हिंसा की इजाजत नहीं देता। इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। विरोध का मुद्दा कमजोर हो जाता है।
जुमे को कब-कब हुए प्रदर्शन
2000 के बाद से कानपुर में जितनी भी हिंसा प्रदर्शन के दौरान हुई है, उसकी कॉल जुमे को ही दी गई थी। मार्च 2001 में जिस दिन हिंसा भड़की वह दिन शुक्रवार का था। एनआरसी के विरोध में प्रदर्शन भी शुक्रवार को हुआ था, जिसमें तीन की जानें गई थीं। एनआरसी को लेकर ही एक अन्य प्रदर्शन शुक्रवार को हुआ था जिसमें हिंसा हुई थी।
इस्लाम नहीं देता इजाजत
ऑल इंडिया सुन्नी उलमा काउंसिल के महामंत्री हाजी मोहम्मद सलीस ने कहा कि इस्लाम हिंसा की इजाजत नहीं देता। हमारा व्यवहार और हमारा अच्छा व्यक्तित्व ही हथियार होना चाहिए। जुमा की अजमत (महत्व) बहुत है। कुछ लोगों ने जुमा को बदनाम कर दिया है। इसके महत्व को बरकरार रखने के लिए इस दिन हर तरह के प्रदर्शन पर रोक को लेकर काउंसिल ने सहमति बनाई है। उलमा फैसले का समर्थन भी कर रहे हैं।
Updated on:
15 Jun 2022 03:40 pm
Published on:
15 Jun 2022 03:39 pm
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