27 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

कांग्रेस मुख्यालय के मालिकाना हक का मामला और उलझा, पहुंचा रजिस्ट्रार ऑफिस

कांग्रेस की तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष मोहसिना किदवई की ओर से शपथ पत्र पेश किया गया है

2 min read
Google source verification

लखनऊ

image

Dikshant Sharma

Oct 04, 2017

up congress

up congress

लखनऊ। कांग्रेस मुख्यालय के मालिकाना हक को लेकर अब विवाद रजिस्ट्रार ऑफिस के दरवाज़े पहुँच चुका है। नगर निगम मुख्यालय में बुधवार को इस मामले में हुई दूसरी सुनवाई के बाद ये पेंच फंसा है। दरअसल कांग्रेस की तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष मोहसिना किदवई की ओर से शपथ पत्र पेश किया गया है जिसमें कहा गया है कि 1977 में कांग्रेस मुख्यालय की ज़मीन को राज्य सरकार से नीलामी में लिया गया था। इसकी रजिस्ट्री भी कांग्रेस कमिटी ने 25 जुलाई 1979 को कराइ थी। अब निगम इस एफिडेविट का सत्यापन रजिस्ट्री विभाग से कराएगा।

जोनल अधिकारी अशोक सिंह ने बताया कि दोनों पक्षों को बुलाकर सुनवाई की गयी है। कांग्रेस द्वारा मुख्यालय ज़मीन की रजिस्ट्री के सम्बन्ध एफीडेविट पेश किया गया है। अब इसका सत्यापन करने पर ही कोई निर्णय लिया जाएगा।

हालांकि कांग्रेस की ओर से इस सम्बन्ध में और कोई भी कागज पेश नहीं किया गया है। कांग्रेस की पैरवी कर रहे अधिवक्ता ज्ञान सिंह ने कहा कि हमारी ओर से दूसरे पक्ष के दावे पर आपत्ति दाखिल की गयी है। इस सम्बन्ध में शपथ पथ भी जमा कर दिया गया है।

कांग्रेस मुख्यालय की ज़मीन पर अपना दावा करने वाले व्यापारी मनीष अग्रवाल ने कहा कि यदि कांग्रेस के पास सभी पत्रावली मौजूद हैं तो वे उसे पेश क्यों नहीं कर रहे। पत्रवली के सामने आने से समय बचेगा और निगम भी आसानी से अपना निर्णय कर सकेगा।

क्या है व्यापारी का तर्क
दरअसल जो दस्तावेज व्यापारी मनीष अग्रवाल की ओर से पेश किये गए हैं उसमें दर्शाया गया है कि 1986 में कांग्रेस नेता का नाम मोहसिन किदवई केयर ऑफ कर के उनके दादा रामस्वरूप अग्रवाल और पद्मावती अग्रवाल के नाम के साथ जोड़ दिया गया था। इस पर आपत्ति जताते हुए मनीष ने कपिल अग्रवाल, मनीष अग्रवाल, प्रवीण अग्रवाल, शशि अग्रवाल और अभिषेक अग्रवाल के नाम पर म्युटेशन करने का आवेदन किया था।

क्या है कांग्रेस की दलील
कांग्रेस का तर्क पूरे मामले के पीछे अलग स्टोरी बता रहा है। उनका कहना है कि मालिकाना हक का दावा कर रहे पक्ष द्वारा सरकारी मिल का काफी पैसा बकाया था। इसी के चलते राज्य सरकार ने इस जमीन को नीलाम करने के आदेश दिए थे। 1979 में हुई उस नीलामी में यह जमीन कांग्रेस ने लगभग 3 लाख 75 हज़ार की ली थी।