
लखनऊ. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर सभी दलों ने शंखनाद कर दिया है। इस चुनाव में जहां कई नेता अर्श से सीधे फर्श पर पहुंचेंगे तो कई राजनीति की सीढ़ियां चढ़कर नए जनसेवक के रूप में उभरेंगे। सर्वविदित है कि देश को उत्तर प्रदेश ने कई बड़े नेता दिए हैं, जिन्होंने जनता की सेवा करते हुए देश का प्रतिनिधित्व किया है। इन्हीं में से एक हैं किसान नेता व पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह। जिन्होंने खेतों में ट्रैक्टर चलाकर किसानों के दर्द को समझा और फिर राजनीति में आकर किसानों के हित में कई महत्वपूर्ण कार्य किए। भले ही आज पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उन्हें आज भी किसानों के मसीहा के रूप में याद किया जाता है। आइये जानते हैं स्व. चौधरी चरण सिंह से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।
चौधरी चरण सिंह का जन्म मेरठ के एक गरीब किसान परिवार में 23 दिसंबर 1902 में हुआ था। बेहद गरीब परिवार से होने के बावजूद उन्होंने शिक्षा को प्राथमिकता दी। 1925 में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने एलएलबी की और फिर गाजियाबाद में वकालत के दौरान गायत्री देवी से विवाह किया। 1929 में वह आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। इसके बाद 1930 में गांधी जी के सविनय अवज्ञा आंदोलन और डांडी मार्च में भी हिस्सा लिया। वह 1940 में सत्याग्रह आंदोलन के दौरान जेल भी गए।
चौधरी चरण सिंह का सियासी सफर
आजादी के बाद चौधरी चरण सिंह 1952 में यूपी की कांग्रेस सरकार में राजस्व मंत्री बने तो किसान हित में जमींदारी उन्मूलन विधेयक पारित किया। 3 अप्रैल 1967 को पहली बार किसान नेता चौधरी चरण सिंह यूपी के मुख्यमंत्री बने, लेकिन 17 अप्रैल 1968 को उन्होंने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद हुए मध्यावधि चुनाव में उन्हें फिर सफलता मिली और वह दूसरी बार 17 फरवरी 1970 को यूपी के मुख्यमंत्री बने। इसके बाद उन्होंने केंद्र की राजनीति में कदम रखा। उन्होंने मोरारजी देसाई की सरकार में केन्द्रीय गृहमंत्री बनने के बाद मंडल और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की। इसी दौरान उनके व मोरारजी देसाई के बीच मतभेद हुए तो उन्होंने बगावत करते हुए जनता दल पार्टी भी छोड़ दी।
मोरारजी देसाई की सरकार गिरी तो कांग्रेस व दूसरी दलों के समर्थन से चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई 1979 को देश के पांचवे प्रधानमंत्री बने। इसके बाद इंदिरा गांधी ने शर्त रखी थी कि उनकी पार्टी व उनके खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस लिए जाएं, लेकिन सिद्धांतवादी चौधरी चरण सिंह ने उनकी शर्त नहीं मानी और 14 जनवरी 1980 को प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। इस दौरान उन्होंने देश के किसानों की स्थति सुधारने और उनके अधिकारों के लिए निरंतर कार्य किया। 29 मई 1987 को चौधरी चरण सिंह ने अंतिम सांस ली।
जब गरीब किसान का वेश धर सस्पेंड किया था थाना
1979 में जब वह देश के प्रधानमंत्री थे तो एक दिन कानून व्यवस्था का हाल जानने के लिए काफिले को दूर खड़ा कर इटावा जिला के ऊसराहार थाने में मैला कुर्ता और धोती पहनकर पहुंच गए। उन्होंने दरोगा से बैल चोरी की रिपोर्ट लिखने को कहा, लेकिन दरोगा ने बिना रिपोर्ट लिखे उन्हें चलता कर दिया। उनके जाते समय एक सिपाही रिपोर्ट लिखने के लिए खर्चा-पानी मांगा। अंत में 35 रुपये में रिपोर्ट लिखना तय हुआ। मुंशी ने रिपोर्ट लिखकर कहा कि बाबा अंगूठा लगाओगे या हस्ताक्षर करोगे। इस पर उन्होंने चौधरी चरण सिंह लिख दिया और जेब से प्राइम मिनिस्टर ऑफ इंडिया की मुहर निकालकर लगा दी। यह देख थाने में हड़कंप मच गया। इसके बाद उन्होंने पूरे ऊसराहार थाने को सस्पेंड कर दिया था।
सपने में आते थे चौधरी साहब
मेरठ निवासी सुमेर सिंह कहते हैं कि चौधरी चरण सिंह और जाटों को लेकर एक और किस्सा है। जब अजित सिंह जीवित थे तो हर चुनाव में मतदान से पहले रात के समय चौधरी चरण सिंह बड़े-बुजुर्ग जाटों के सपने में आते थे। सपने में आकर वे रोते थे और कहते थे- कि मुझे भूल गए। मेरे बेटे की न सही, लेकिन मेरी इज्जत की चिंता करो। चलो इस बार मेरे नाम पर अजित को वोट देना। मतदान के दिन सभी जाट द्रवित हो रालोद को वोट दे देते थे।
Published on:
12 Nov 2021 04:09 pm
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