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UP Government Scheme: अब शिक्षा दूर नहीं: 5 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तय करने वाले छात्रों को मिलेगा ₹6000 का परिवहन भत्ता

UP Govt Education: उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड और सोनभद्र जैसे दूर-दराज इलाकों के छात्रों को अब स्कूल आने-जाने की दूरी शिक्षा में बाधा नहीं बनेगी। 5 किलोमीटर से अधिक दूर रहने वाले कक्षा 9 से 12 तक के छात्रों को वार्षिक ₹6000 का परिवहन भत्ता मिलेगा। इससे शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा।

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लखनऊ

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Ritesh Singh

Jul 10, 2025

Student Support फोटो सोर्स :Social Media

Student Support फोटो सोर्स :Social Media

UP Government Scheme Rural Education: उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र और सोनभद्र जिले के दूरदराज क्षेत्रों में शिक्षा का रास्ता अब आसान होने जा रहा है। प्रदेश सरकार ने माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा निर्णय लेते हुए उन छात्र-छात्राओं के लिए परिवहन भत्ता देने की योजना लागू की है, जो अपने विद्यालय तक पहुँचने के लिए प्रतिदिन पांच किलोमीटर या उससे अधिक की दूरी तय करते हैं। इस योजना के अंतर्गत पात्र छात्रों को प्रति वर्ष 6000 रुपये का परिवहन भत्ता मिलेगा, जिससे उन्हें स्कूल आने-जाने में होने वाली आर्थिक कठिनाइयों से राहत मिलेगी।

यह योजना बुंदेलखंड के सात जिलों, जालौन, झांसी, हमीरपुर, ललितपुर, महोबा, बांदा, चित्रकूट और पूर्वांचल के सोनभद्र जिले में लागू की गई है। ये सभी क्षेत्र भौगोलिक और संसाधन की दृष्टि से प्रदेश के अन्य क्षेत्रों की तुलना में पिछड़े माने जाते हैं, जहां विद्यालयों की दूरी छात्रों के स्कूल छोड़ने का एक प्रमुख कारण रही है।

योजना का उद्देश्य

शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण और वनवासी क्षेत्रों में शिक्षा की पहुंच बढ़ाना, छात्र संख्या में गिरावट को रोकना और विशेष रूप से किशोरियों की स्कूल में निरंतरता बनाए रखना है। इसके तहत: माध्यमिक विद्यालयों (9वीं से 12वीं) में पढ़ने वाले सभी छात्र-छात्राओं को लाभ मिलेगा, यदि वे विद्यालय से 5 किलोमीटर से अधिक दूरी पर निवास करते हैं। पीएम-श्री विद्यालयों (प्रधानमंत्री स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया) में यह भत्ता केवल छात्राओं को दिया जाएगा, जिससे बालिकाओं को उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहन मिल सके।

बुंदेलखंड और सोनभद्र जैसे क्षेत्रों में राज्य के अन्य हिस्सों की तुलना में माध्यमिक विद्यालयों की संख्या बेहद कम है। कई गांवों में आज भी बच्चों को विद्यालय पहुंचने के लिए लंबी पैदल दूरी तय करनी पड़ती है। शिक्षा मंत्रालय के मानकों के अनुसार, हर 5 किलोमीटर के दायरे में एक राजकीय माध्यमिक विद्यालय होना चाहिए, लेकिन इन जिलों में यह व्यवस्था पूरी तरह लागू नहीं हो सकी है। परिणामस्वरूप कई होनहार छात्र-छात्राएं केवल आवागमन की असुविधा या आर्थिक समस्याओं के कारण विद्यालय छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं।

यह स्थिति विशेष रूप से किशोरियों के लिए और भी चुनौतीपूर्ण बन जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में बालिकाओं की शिक्षा में आने वाली सबसे बड़ी अड़चन सुरक्षित परिवहन और दूरी की समस्या होती है। ऐसे में यह भत्ता उनके माता-पिता के लिए भी एक आर्थिक संबल बनेगा और वे अपनी बेटियों को स्कूल भेजने के लिए अधिक प्रेरित होंगे।

बजट

प्रदेश सरकार द्वारा केंद्र सरकार के सहयोग से शुरू की जा रही इस योजना के लिए शिक्षा मंत्रालय ने विशेष बजट का प्रावधान किया है। सूत्रों के अनुसार, मंत्रालय ने योजना के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक बजट स्वीकृत कर दिया है, जिससे 2025-26 शैक्षणिक सत्र से ही छात्रों को लाभ मिलना शुरू हो जाएगा। शासन स्तर पर जिलों को निर्देशित किया गया है कि वे पात्र छात्रों की सूची तैयार कर समयबद्ध रूप से भत्ते का वितरण सुनिश्चित करें। इस कार्य में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन और आधार सत्यापन की प्रक्रिया अपनाई जाएगी।

शिक्षाविदों और अभिभावकों की प्रतिक्रिया

शिक्षा विशेषज्ञों ने इस निर्णय का स्वागत किया है। प्रो. आर. के. शर्मा, शिक्षा समाजशास्त्र के विशेषज्ञ, कहते हैं, “यह कदम ग्रामीण क्षेत्रों में माध्यमिक शिक्षा की गिरती दर को सुधारने में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। विशेषकर लड़कियों के लिए यह एक बड़ा प्रोत्साहन है।” वहीं बुंदेलखंड क्षेत्र के हमीरपुर जिले की एक ग्रामीण छात्रा की मां शांति देवी बताती हैं, “हमारी बेटी को स्कूल आने-जाने में रोज़ 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। इस वजह से वह कई बार बीमार भी हो जाती है। अगर सरकार की तरफ से यात्रा भत्ता मिलेगा तो हम उसे साइकिल दिला सकेंगे या ऑटो का खर्च उठा सकेंगे।”

यह योजना जहां एक ओर छात्रों की शिक्षा में निरंतरता लाएगी, वहीं दूसरी ओर स्कूली ड्रॉपआउट दर को कम करने में भी सहायक होगी। इसके अतिरिक्त सरकार का यह प्रयास, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के उद्देश्यों सार्वभौमिक माध्यमिक शिक्षा, लैंगिक समानता, और शिक्षा में समावेशिता के अनुरूप है। यदि योजना का सफल क्रियान्वयन होता है, तो यह अन्य पिछड़े क्षेत्रों के लिए भी एक आदर्श मॉडल बन सकता है। शिक्षा का अधिकार तभी सार्थक होगा जब छात्र विद्यालय तक पहुंच सकें और इसके लिए सरकार की यह पहल अत्यंत महत्वपूर्ण है।